भारत में कृषि केवल पेट भरने का माध्यम नहीं है, यह तो बड़ा उत्सव है जिसे पूरा देश मनाता है

कृषि केवल अर्थव्यवस्था को शक्ति देने का माध्यम मात्र न होकर यह हमारी संस्कृति का एक अटूट हिस्सा है जिसे हम कभी बड़े त्योहार तो कभी बड़े उत्सव के रूप में मनाते हैं।

त्योहार भारत

कृषि… भारत के लिए यह दो शब्द केवल शब्द या जीवनयापन करने का माध्यम नहीं है बल्कि देश के लोगों और विशेषकर किसानों को इस कृषि शब्द के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव है। भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों और कृषि व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किसान और कृषि इस देश की धरोहर हैं, उनके द्वारा की जाने वाली किसानी इस देश के लिए उत्सव है। उनके परिश्रम को पूरा देश अलग-अलग त्योहारों के रूप में मनाता है।

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भारत कृषि प्रधान देश

दरअसल, भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ त्योहारों, रंगों और मेलों का देश भी रहा है। विशेष यह है कि भारत में अलग-अलग समय के आधार पर कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं। इन्हीं फसलों के उगने से जुड़े समय के आधार पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। कई उत्सव और त्योहार किसानों की मान्यताओं के आधार पर मनाए जाते हैं। इन उत्सवों को मनाने के पीछे कई पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी होती है। फसल की कटाई के पहले और बाद में भी कई उत्सव मनाये जाते हैं, सबसे पहले निकले अन्न से ही भगवान को भोग लगाने से जुड़े कुछ उत्सव भी हैं। इन त्योहारों पर पूजन से लेकर अनेक तरह की विधियों को अपनाकर बड़े धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। ऐसे त्योहारों और उत्सव के कई उदाहरण मिल जाएंगे। चलिए उन्हें एक बार जान लेते हैं।

मकर संक्रांति

सबसे पहले बात मकर संक्रांति की करें तो यह हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार को 14 या 15 जनवरी को हिंदी महीनों के आधार पर पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में आता है तब मनाया जाता है। इस दिन सूर्य की स्थिति बदलकर उत्तरायण हो जाती है और सूर्य उत्तरायण में गति करने लगता है और इस समय फसलें लहलहाने लगती है। जिसकी प्रसन्नता में लोग इस त्योहार को मानते हैं। इस त्योहार पर पतंगबाजी देखने को मिलती है और लोग गंगा स्नान कर दान भी देते हैं। इस दिन लोग गुड़ से बने मिष्ठानों का सेवन करते हैं। उत्तर भारत का यह एक बड़ा त्योहार होता है।

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लोहड़ी और इसका महत्व

कृषि के परिप्रेक्ष्य में देखें तो लोहड़ी एक प्रमुख त्योहार है। लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस त्योहार पर आसपास के लोग एकत्रित होकर शाम के समय आग के चारों तरफ घेरा बनाकर बैठ जाते हैं। लोहड़ी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, मान्यता है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री सती ने इस दिन अपने पिता के अपमान के कारण अग्नि में समाधि ली थी। इस दिन विवाहिता पुत्रियों को उनकी माँ के घर से खाने की चीजें भेजी जाती है। इसके अलावा इस त्योहार को लोग अच्छी फसल होने की कमाना के रूप में भी मानते हैं।

मेघालय का वंगाला

वंगाला त्योहार मेघालय में बसने वाले गारो समुदाय के लोगों का त्योहार है। ये लोग इस त्योहार को नवंबर माह में फसल काटने से पहले अच्छी फसल की कामना के लिए मनाते हैं। इस दिन लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं।

केरल में विषु

विषु के दिन लोग भगवान श्री कृष्ण और विष्णु जी की पूजा करते हैं। इस त्योहार को केरल में मनाया जाता है। इस त्योहार के समय नई फसल की बुवाई की जाती है जिस कारण लोग भगवान विष्णु से लोग अपनी नई फसल के अच्छे होने की कामना करते हैं।

गुड़ी पड़वा और हिन्दू नया वर्ष

गुड़ी पड़वा का त्योहार चैत्र माह की शुरुआत में मनाया जाता है और इसी दिन हिन्दू कलेंडर से नये साल की शुरुआत होती है। इस दौरान फसलों के पकने का वक्त होता है, इस कारण इस दिन लोग भगवान से अच्छी फसल की पैदावार की कामना करते हैं।

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बिहु त्योहार का भी है विशेष महत्व

बिहू असम में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग मौसम की पहली फसल को अपनी शांति और समृद्धि के लिए ब्राई शिबराई के नाम पर अर्पित करते हैं। यह त्योहार अप्रैल के मध्य में शुरू होता हैं और पूरे एक महीने तक चलता है।

बैसाखी का पर्व

बैसाखी का नाम वैशाख माह के आधार पर पड़ा है। यह त्योहार 13 और 14 अप्रैल को मनाया जाता है। सर्दियों की फसल कट जाने के बाद अच्छी पैदावार होने की प्रसन्नता में इस त्योहार को मनाया जाता है।

होली का भी है किसानों से संबंध

होली का त्योहार हिंदू धर्म का मुख्य त्योहार है। यह वसंत ऋतू में फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे कई तरह की पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं। हिंदू धर्म का यह त्योहार दो दिन तक चलता है। पहले दिन संध्या के समय होलिका दहन किया जाता है और उसी आग में गेहूं की बालियों को भुना जाता है और लोग फसलों की अच्छी पैदावार की कमाना भगवान से करते हैं। अगले दिन लोग होली का त्योहार मनाते हैं।

हिलजात्रा का है उत्तराखंड से संबंध

पिछली पांच शताब्दियों से पिथौरागढ़ा क्षेत्र में यह हिलजात्रा त्योहार लगातार मनाया जाता रहा है। पिथौरागढ़ में ऐतिहासिक हिलजात्रा सावन के महीने में कृषि पर्व के रूप में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। “सातूं-आठूं” से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है। इसका संबंध भी सीधे तौर पर किसानों से ही है।

लद्दाख हार्वेस्ट फेस्टिवल

लद्दाख हार्वेस्ट फेस्टिवल लद्दाख और कश्मीर के आसपास मनाया जाता है। यह मुख्य तौर पर सितंबर माह के शुरुआत से मनाया जाता है। यह त्योहार अपनी परंपरा, संस्कृति, सभ्यता, विरासत और जन जातीय जीवन शैली के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस त्योहार के मुख्य आकर्षण का केंद्र भगवान बुद्ध के जीवन पर आधारित ड्रामा और तिब्बती संस्कृति के नृत्यों का आयोजन होता है। इस दिन पूरे लद्दाख शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इस दिन कई तरह के सामाजिक और सांस्कृतिक समारोह आयोजित किए जाते हैं।

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पोंगल

पोंगल का त्यौहार तमिल हिंदुओं का त्योहार है जो 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस त्योहार को सूर्य के मकर रेखा की तरफ प्रस्थान करने पर मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य को अन्न धन का दाता मान कर चार दिनों तक मानाया जाता है। जिसे मकर संक्रांति का ही दूसरा नाम कहा जाता है। पोंगल का त्योहार भारत का एक सबसे रंगीन फसल उत्सव माना जाता है। इसमें लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं और प्रकृति को अच्छी फसलें देने के लिए धन्यवाद भी देते हैं। इस दिन लोग चावल को उबालर उसका भोग सूर्य देवता को घी और शक्कर के साथ लगाते हैं।

नवाखाई

नवाखाई का त्योहार उड़ीसा में मनाया जाता है जो नये अनाज आने की प्रसन्नता में मनाया जाता है। इस दिन लोग नये अनाज का भोग लगाकर धरती मां का धन्यवाद करते हैं और आने वाली फसल अच्छी हो इसकी कामना करते हैं।

हरेली और नबाना

हरेली भारत का एक मुख्य फसल त्योहार है। इस दिन छत्तीसगढ़ में मिट्टी के बैल बनाकर उनकी पूजा की जाती है और इस दिन किसान भाई अपनी खेती के सभी उपकरणों की सफाई कर उनकी पूजा करते हैं। यह त्योहार श्रावण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यहां त्योहार पश्चिम बंगाल में काफी पहले से मनाया जाता है। यह त्योहार चावल की फसल काटने से पहले मनाया जाता है। जिसमें लोग लक्ष्मी देवी को धान का पहला अनाज चढ़ाते हैं।

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ये सभी त्योहार इस बात का प्रमाण हैं कि अनेक विविधताओं से भरे इस देश में एक बात हर जगह पर देखी जा सकती है कि कृषि भारत के कोने-कोने में बसे लोगों के लिए उत्सव है। यह केवल लोगों का पेट भरने या अर्थव्यवस्था को शक्ति देने का माध्यम मात्र न होकर यह हमारी संस्कृति का एक अटूट हिस्सा है जिसे हम कभी बड़े त्योहार तो कभी बड़े उत्सव के रूप में मनाते हैं।

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