अशोक कोई ‘महान’ नहीं बल्कि विशाल मौर्य वंश का बेड़ा गर्क करने वाले शासक थे

अशोक अपने पिता बिंदुसार और दादा चंद्रगुप्त मौर्य से विरासत में मिले साम्राज्य को संभालने में पूरी तरह से विफल रहे थे। इस लेख में समझिए कैसे उन्होंने मौर्य वंश को गर्त में पहुंचाया।

सम्राट अशोक, मौर्य वंश

Source- TFI

भारतीय इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य को तो सभी लोग जानते ही हैं कि उन्होंने किस प्रकार नंद वंश के घमंडी शासक घनानंद का अंत कर 322 ईसा पूर्व में मौर्य वंश की स्थापना की और मौर्य वंश को आगे बढ़ाया। चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उनके बेटे बिंदुसार का आगमन होता है और बिंदुसार, मौर्य वंश के साम्राज्य को अपने पिता से भी अधिक ऊंचाईयों पर लेकर जाते हैं। परन्तु इतिहास में इन दोनों शासकों के बाद मौर्य वंश की गद्दी को संभालने वाले अशोक को ही हमेशा ‘महान’ क्यों बताया जाता है? ये सोचा है कभी आपने कि मौर्य वंश की स्थापना तो चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और बिंदुसार ने उसे आगे बढ़ाया फिर ‘अशोका द ग्रेट’ क्यों? चंद्रगुप्त या बिंदुसार ग्रेट क्यों नहीं? अशोक ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार से लिए लगभग कुछ नहीं किया, उल्टे बने बनाए मौर्य साम्राज्य को भी संभाल नहीं सके और इसके बावजूद उन्हें ‘महान’ क्यों बताया जाता है, चलिए समझते हैं।

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मौर्य साम्राज्य को संभाल नहीं सके अशोक

दरअसल, 345-322 ईसा पूर्व के बीच मगध में नंदवंश के राजा घनानंद का शासन हुआ करता था। घनानंद एक घमंडी और क्रूर शासक था। जनता उसके राज्य में अनावश्यक लगाए गए टैक्स से बुरी तरह परेशान हो चुकी थी। इसी बीच धीरे-धीरे योजना बद्ध तरीके से आचार्य चाणक्य की सहायता द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य ने घनानंद के शासन को समाप्त कर 322 ईसा पूर्व में मौर्य वंश की स्थापना की और उसका विस्तार करते रहे। उस समय मौर्यवंश की राजधानी पाटलिपुत्र हुआ करती थी, जिसे आज के समय में पटना के नाम से जाना जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य के बाद बिंदुसार ने शासन किया और क्या खूब शासन किया कि उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक उन्होंने अपनी सीमाओं का विस्तार कर मौर्य साम्राज्य के ध्वज को फहराया।

इसके बाद कहानी में कुछ ऐसा होता है कि बिंदुसार के शासन के दौरान तक्षशिला में कुछ लोगों ने विद्रोह कर दिया, वहां ग्रीक और यूनानियों की संख्या अधिक थी और बिंदुसार के बड़े बेटे सुसीम के अकुशल प्रशासन के कारण वहां विद्रोह पनप उठा। जिसे दबाने के लिए बिंदुसार ने अशोक को वहां पर भेजा और अशोक ने अपने सूझबूझ और वीरता से विद्रोह को दबा दिया। उसके बाद उन्हें वहां का वायसराय भी बना दिया गया। इसके अलावा अवंति समेत कई जगहों से सम्राट बनने से पूर्व अशोक की वीरता के किस्से जुड़े हैं। बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक की वीरता के कारण ही उन्हें राजगद्दी सौंपी गई थी और लोगों को यह उम्मीद थी कि वो मौर्य वंश का विस्तार करेंगे। लेकिन लोगों को यह बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सम्राट बनने के बाद अशोक ही मौर्य वंश के लिए काल बन जाएंगे।

ज्ञात हो कि बिंदुसार के बाद अशोक को शासक के रूप में एक बहुत बड़ा और समृद्ध साम्राज्य मिलता है, जिसे चंद्रगुप्त मौर्य और बिंदुसार ने अपनी ताकत के बलबूते पर खड़ा किया था। हालांकि, अशोक ने भी मौर्य साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया था परन्तु यह विस्तार काफी कम था। जहां एक ओर बिंदुसार ने हिंदूकुश पर्वत से लेकर दक्षिण के उत्तरी तमिलनाडु तक युद्ध लड़ा और अपनी सीमाओं का विस्तार किया वहीं, अशोक ने 260-61 ईसा पूर्व में सिर्फ कलिंग पर ही विजय प्राप्त की थी। कलिंग युद्ध की बात की जाए तो इसमें लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, 1.5 लाख लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा था और लगभग 3.5 लाख से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

पहले से ही बौद्ध धर्म के करीब थे

ऐसा कहा जाता है कि कलिंग की घटना के बाद ही बौद्ध धर्म की ओर अशोक का रूझान बढ़ा था, जबकि ऐसा था नहीं। मेगस्थनीज की इंडिका बताती है सम्राट बनने से पूर्व ही वो बौद्ध धर्म के करीब थे लेकिन कलिंग युद्ध ने उन्हें कारण दे दिया। अशोक का शासनकाल 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा और अपने शासन के शुरुआती दौर में ही उन्होंने कलिंग पर विजय प्राप्त की थी और कलिंग युद्ध के तुरंत बाद हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया था। हालांकि, अशोक ने बौद्ध धर्म कब और किसकी सलाह पर अपनाया इसके बारें में अधिक जानकारी नहीं मिलती परन्तु श्रीलंका की एक किताब दीपाम्सा में यह कहा गया है कि अशोक कलिंग युद्ध से पहले ही बुद्ध धर्म के बारे में जानते थे। कलिंग युद्ध के बाद निगरोधा ने उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया था और अंत में बौद्ध भिक्षु मोगलीपुत्ता ने उन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी।

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक सम्राट बने रहे लेकिन मौर्यवंश का जो स्वर्णकाल था, वह अशोक के बौद्ध बनते ही खत्म होने की ओर अग्रसर हो चुका था। मौर्य वंश की सेना काफी विशाल थी, अशोक के बौद्ध बनने के बाद भी सेना रही लेकिन उनसे कोई काम नहीं लिया जाता था और हर महीने उनका वेतन भी दिया जाता था। राजकोष पर इसका बोझ लगातार बढ़ता जा रहा था। इसके अलावा बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक का ध्यान राज्य के विस्तार से हटकर बौद्ध धर्म के प्रचार में लग गया था। उन्होंने अपने शासन को सुदृढ़ करने की बजाय बौद्ध धर्म के विस्तार पर ज्यादा ध्यान दिया और इसी का परिणाम रहा कि अशोक के बाद मौर्य वंश को एक भी बेहतर उत्तराधिकारी नहीं मिल पाया। अशोक ने इसके लिए कोई बड़ा कदम भी नहीं उठाया।

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अशोक और मौर्य वंश

कहा जाता है कि अशोक का बेटा कुणाल जांबाज था लेकिन उसकी सौतेली मां ने उसे अंधा कर दिया था, इसलिए वो राजा नहीं बन सका। इसके अलावा उनके बड़े बेटे ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, जिन्हें हम महेंद्र के नाम से जानते हैं। मंझले बेटे तिवारा की मौत अशोक के सामने हो गई थी और उनका सबसे छोटा बेटा तालुका किसी अनचाही वजह से राजा नहीं बन सका। अशोक के बाद लगभग आधी सदी तक (242 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व) मौर्य वंश का शासन रहा और इस दौरान मौर्य वंश के कुल 6 शासक हुए। अब आप समझ सकते कि जिस वंश के शुरूआती 3 राजाओं ने लगभग 90 वर्षों तक शासन किया, अशोक के बाद मात्र 50 वर्षों में 6 राजा हो गए। इनमें से कोई भी राजा ऐसा नहीं हुआ, जो मौर्य वंश को फिर से उसकी ऊंचाईयों पर ले जा सके।

यानी कि वो अशोक ही थे, जो मौर्य वंश के पतन का कारण बने। अगर अपने पिता या दादा की तरह उन्होंने भी साम्राज्य पर ध्यान दिया होता, तो मौर्य वंश का सूरज इतनी जल्दी अस्त नहीं होता लेकिन उन्होंने अपने साम्राज्य पर ध्यान देने से इतर वो सबकुछ किया, जिससे मौर्य वंश की जड़ें कमजोर हुई। हालांकि, बौद्ध ग्रंथों में अशोक को काफी महान बताया गया है, उनका जमकर गुणगान किया गया है। जबकि सच्चाई आपके सामने है। ऐसे में अशोक को महान क्यों बताया जाता है यह बड़ा सवाल है। निष्कर्ष के रूप में हम यहां पर यही कहना चाहेंगे कि पूरे मौर्य साम्राज्य के शासकों में ग्रेट अगर कोई था तो वो बिंदुसार थे जिन्होंने अपने पिता चंद्रगुप्त मौर्य के बाद राज्य का विस्तार किया और कई कीर्तिमान स्थापित किए थे। लेकिन ‘हिंदू’ होने के कारण इतिहास में उन्हें सीमित कर दिया गया।

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