“कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा,
हम किसी के न रहे, कोई हमारा न रहा”
पक्का लड़के का ही दोष है, भला बेचारी स्त्री से क्यों गलती होगी? पिछले कई सदियों से भांति-भांति के नमूनों ने इस भ्रांति को ऐसी विषबेल में परिवर्तित किया है कि यदि पुरुष कोई नेक कार्य करने की सोचे भी तो भी लोग उसे संदेह की दृष्टि से ही देखेंगे। सरल नहीं है एक सौम्य पुरुष होना तब जब आपके घावों पर लेप लगाने वाला कोई न हो, सरल नहीं है अकेले ही उस संसार से लड़ना जिसका मूल उद्देश्य ही दूसरों के घर में ताक झांक करके उनका जीवन नारकीय बनाना और ये बात आभास कुमार गांगुली यानी किशोर कुमार से बेहतर कौन जानता है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे किशोर कुमार को अपने प्रारम्भिक जीवन में केवल निश्छल प्रेम करने के लिए अनेक संकट झेलने पड़े थे, और कैसे मधुबाला से उनका प्रेम कई लोगों की आंखों में शूल की भांति चुभने लगा।
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किशोर कुमार अलग ही मिट्टी के बने थे
बॉलीवुड में या तो आप विशुद्ध अभिनेता हो सकते हैं या फिर विशुद्ध गायक, दोनों नाव पर पैर नहीं रखा जाता। परंतु आभास कुमार गांगुली यानी किशोर कुमार अलग ही मिट्टी के बने थे। कुंदन लाल सहगल से प्रेरित महोदय अपने अग्रज, अशोक कुमार के पदचिह्नों पर चलते हुए बॉलीवुड पधारे, और उन्हें अवसर मिला खेमचंद प्रकाश द्वारा ‘जिद्दी’ में काम करने का, जहां से सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का भी उदय हुआ।
किशोर कुमार स्वभाव से ही अतरंगी थे। आशा भोंसले के अनुसार, “किशोर कुमार एक तरह का था। उसने हर किसी को अपनी मज़ेदार आवाज के साथ घुमाया और यहां तक कि उसके चारों ओर हर किसी को हमेशा खुश कर दिया।”
हंसना हंसाना उनके स्वभाव का ही एक भाग था परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि इस हास्य से परिपूर्ण व्यक्तित्व के पीछे एक घाव भी था जिसे वो कई लोगों से छुपा रहे थे। वह घाव था रुमा गुहा से अलगाव का। वह रुमा से प्रेम तो करते थे परंतु वह उनसे उतना लगाव नहीं रखती थी, ऐसे में 1956 आते-आते दोनों अलग हो चुके थे। परंतु यहां पर कदम पड़े एक अति सुंदर महिला के, जिसके बाद किशोर कुमार का जीवन सदैव के लिए परिवर्तित हो गया।
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मधुबाला का अद्वितीय सौन्दर्य
अद्वितीय सौन्दर्य को पाना सबके भाग्य में नहीं होता, परंतु ऐसी ही एक व्यक्ति थी मुमताज़ जहां बेगम दहलवी, जिन्हें हम मधुबाला के नाम से बेहतर जानते हैं। अनेकों चलचित्रों में अपने लावण्य से लोगों को मोहित करने वाली मधुबाला के भारत में ही नहीं बल्कि देश विदेश में बड़े चर्चे हुआ करते थे। कई तो कहते हैं कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो उनकी एक झलक के लिए अपना सब कुछ लुटाने को तैयार हो सकते थे, परंतु इस पर तो उपन्यास लिखना पड़ जाए।
तो किशोर कुमार का मधुबाला से क्या संबंध? इस अति सुदर महिला का हृदय एक व्यक्ति पर आया था, और वह कोई और नहीं, अपने यूसुफ खान यानी दिलीप कुमार थे। वहीं किशोर बाबू इस संबंध में कूरियर माने दूत की भूमिका में थे। परंतु इस संबंध में खाई बने मधुबाला के अब्बू, अताउल्लाह खान, जिनकी दकियानूसी सोच ने सब पर पानी फेर दिया, ये जानते हुए भी कि दिलीप उन्हीं के समुदाय का है, और यहीं पर समाप्त हो गई एक अद्भुत कथा।
परंतु, असल कथा तो यहीं से प्रारंभ हुई। एक व्यक्ति था जो स्वयं मधुबाला को अवसाद में जाते हुए नहीं देख सकता था और वह थे किशोर कुमार। अपने अतरंगी स्वभाव से इन्होंने उनके जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास किया। इस प्रयास में वो इतने सफल हुए कि मधुबाला और उनमें प्रेम पनपने लगा। परंतु किशोर को इस बात का कम आभास था कि मधुबाला स्वयं इतनी आतुर क्यों थीं।
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कट्टरपंथ की बेड़ियां
मधुबाला के दिल में छेद था, जिसके कारण वह जानती थी कि उनके पास अधिक समय नहीं है। इसलिए वह चाहती थीं कि जितना भी उनके पास समय है, वह किशोर के साथ ही व्यतीत हो। परंतु इस बात से काफी लोग विचलित हुए, विशेषकर वो जो मधुबाला को कट्टरपंथ की बेड़ियों में ही जकड़े रखना चाहते थे। इसीलिए ऐसे लोगों ने कभी ये तक अफवाह फैलाई कि विवाह से पूर्व किशोर कुमार ने इस्लाम अपनाया, तो कभी ये अफवाह फैलाई कि किशोर कुमार ने मधुबाला का जीवन नारकीय बना दिया, परंतु न कभी इस बारे में किसी ने मधुबाला से कुछ पूछा, न ही किशोर कुमार से। पूछते तो उनकी दुकान थोड़े ही चल पाती।
वास्तविकता कुछ और ही थी। अशोक कुमार (भाई) के अनुसार, मधुबाला की बीमारी ने उन्हें तनिक चिड़चिड़ा बना दिया और उन्होंने अपना अधिकांश समय अपने पिता के घर में बिताया। धार्मिक मतभेदों के कारण अपने ससुराल वालों की ‘कड़वाहट’ से बचने के लिए, मधुबाला बाद में बांद्रा के क्वार्टर डेक में किशोर के नये खरीदे गए फ्लैट में चली गईं। किशोर कुछ समय के लिए ही फ्लैट में रहा और फिर उसे एक नर्स और एक ड्राइवर के साथ अकेला छोड़ गया। वो अलग बात थी कि अपनी शादी के दो महीने से भी कम समय में अपने घर लौट आईं, क्योंकि उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था और आलिंगन भी अब उनके लिए घातक प्रतीत हो रहा था।
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निश्छल और स्वच्छ प्रेम
परंतु किशोर कुमार स्वभाव से ही अतरंगी थे। आशा भोंसले के अनुसार, “किशोर कुमार एक तरह का था। उसने हर किसी को अपनी मज़ेदार आवाज के साथ घुमाया और यहां तक कि उसके चारों ओर हर किसी को हमेशा खुश कर दिया।” क्या इस पर कभी किसी ने प्रकाश डाला? क्यों डालते, किशोर दादा एक सौम्य पुरुष जो बन जाते, यही तो नहीं दिखाना था।
1969 में जब इस कष्टदायी रोग से जूझते हुए मधुबाला का अंत हुआ, तो किशोर कुमार ने मानो बहुत कुछ खो दिया, परंतु उनके विरुद्ध लांछनों की शृंखला बहुत समय तक खत्म नहीं हुई। एक साक्षात्कार में उन्होंने ये भी कहा कि वे कितना भी कहेंगे, परंतु लोग कभी नहीं मानेंगे कि उनका मधुबाला के लिए प्रेम निश्छल और स्वच्छ था, और शायद वे गलत भी नहीं थे।
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