कार्तिक पूर्णिमा: क्या है ओडिशा के समृद्ध इतिहास को दिखाने वाली बाली यात्रा?

बाली यात्रा ओडिशा में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। कटक में कार्तिक पूर्णिमा के दिन से ही इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और यह पूरे सप्ताह तक मनाया जाता है। इस लेख में जानिए बाली यात्रा की कहानी और इसका महत्व...

Bali Yatra

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भारत का इतिहास उस पुस्तक की भांति हैं, जिसे जितना पढ़ा जाए उतना ही कम है। भारत का इतिहास हमेशा से ही गौरवपूर्ण रहा है। साथ ही देश के कुछ ऐसे पर्व भी हैं जिनसे आप सभी शायद ही अवगत हो। उनमें से एक है ‘बाली यात्रा’ (Bali Yatra) बाली यात्रा को ओडिशा के समृद्ध समुद्री इतिहास की स्मृतियों को याद करने वाले त्योहार के रूप में मनाया जाता है। बाली यात्रा का शाब्दिक अर्थ है ‘बाली की यात्रा’। इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ पूरे राज्य में मनाया जाता है।

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एक सप्ताह तक मनाया जाता है यह पर्व

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कटक में कार्तिक पूर्णिमा के दिन से ही इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और यह पूरे सप्ताह तक मनाया जाता है। इस दिन सुबह उठकर लोग नदियों, तालाबों, जलाशयों और समंदर के तट पर एकत्रित होकर काग़ज़, केले और कार्क की छाल की नाव बनाकर पानी में छोड़ते हैं। इन नावों को सुपारी, फूलों और दीयों से सजाकर पानी में प्रवाहित किया जाता है। इस परंपरा को बोइतो (नौका) वंदना के नाम से पुकारा जाता है। इस वंदना के माध्यम से लोग अपने पुरखों को याद करते हैं क्योंकि ‘बोइता’ नाम की बड़ी नावों की सहायता से बाली और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की यात्रा करके व्यापार किया करते थे। इन यात्राओं का उद्देश्य व्यापार तथा सांस्कृतिक प्रसार होता था।

बाली यात्रा (Bali Yatra) की शुरुआत

बाली यात्रा का उल्लेख उस समय से किया जा रहा है जब ओडिशा कलिंग साम्राज्य कहलाता था। कलिंग साम्राज्य हमेशा से ही अपने अद्भुत समुद्री इतिहास के लिए जाना जाता है। कलिंग की भौगोलिक स्थिति को मद्देनजर रखते हुए इस क्षेत्र में चौथी और पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही बंदरगाहों का निर्माण होने लग गया था। ताम्रलिप्ति, माणिकपटना, चेलिटालो, पलूर, और पिथुंड जैसे कुछ प्रसिद्ध बंदरगाहों के द्वारा भारत समुद्र के रास्ते अन्य देशों से अपने संबंध स्थापित कर पाया था। जिसके बाद कलिंगवासियों ने श्रीलंका, जावा, बोर्नियो, सुमात्रा, बाली और बर्मा के साथ भी अपने व्यापारिक संबंध बना लिए थे।

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बाली उन्हीं चार द्वीपों का भाग था जिसे सामूहिक रूप से सुवर्णद्वीप के नाम से जाना जाता था, जिसे आज इंडोनेशिया का नाम दिया गया है। कलिंग के लोग ‘बोइता’ नाम की बड़ी नावों की सहायता से इंडोनेशियाई द्वीपों के साथ व्यापार किया करते थे। इन जहाजों के ढांचे तांबे के बने होते थे और इनमें एक बार में 700 व्यक्ति और जानवर सवार हो सकते थे। कलिंगवासी बाली द्वीप (Bali Yatra) के साथ अक्सर ही कारोबार किया करते थे, जिसके बाद इन दोनों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी संभव हो गया। ओडिशा व्यापारियों ने बाली में कई सारी बस्तियों का गठन करके यहां की संस्कृति और आचार नीति पर भी अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद ही यहां पर हिंदू धर्म का विकास हो पाया।

बाली में हिंदू धर्म

बाली में आज भी बहुसंख्यक आबादी ने ‘बाली हिंदू धर्म’ अपनाया हुआ है। इसके चलते यहां विभिन्न हिंदू देवताओं जैसे भगवान शिव, विष्णु, गणेश और ब्रह्मा की पूजा-अर्चना की जाती है। बाली के लोग शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा जैसे हिंदू त्योहार भी बड़े ही धूमधाम से मनाते है। बाली में मनाया जाने वाला ‘मसकपन के तुकड़’ त्योहार ओडिशा में बाली यात्रा उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। इस पर्व में भी समुद्री पूर्वजों को याद किया जाता है।

व्यापारी नौकाओं के माध्यम से महीनों समुद्री यात्रा किया करते थे। समुद्री यात्रा आरंभ करने के लिए कार्तिक पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ माना जाता था। क्योंकि यह वही समय होता है जब उत्तर-पूर्व मॉनसून हवा नवंबर से लेकर फरवरी तक चलती है। जिस कारण वो अलग-अलग द्वीपों पर आसानी से पहुंच जाते थे।

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ओडिशा में बाली यात्रा (Bali Yatra) उत्सव का काफी महत्व है। इस उत्सव का असली आनंद आपको कटक में महानदी के तटों पर गड़गड़िया घाट जाकर देखने को मिलेगा। यहां के रहने वाले लोग पूरे वर्ष इस उत्सव का बड़ी ही बेसब्री से इंतेजार करते हैं। इस पर्व के दौरान एक सप्ताह तक यहां मेला भी लगा रहता है। पूरा दिन जहां लोग मेले का आनंद लेते हैं, वहीं शाम को यहां पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। यहां पर होने वाला मेला बड़े स्तर पर होता है। बता दें कि वर्ष 2019 में नदी के तट पर 1500 स्टाल लगाये गये थे। ओडिशा पंचांग में इस माह को साल का सबसे पवित्र मास माना जाता है, जिसके चलते प्रत्येक वर्ष इस उत्सव के माध्यम से नदी के तट पर हमारी संस्कृति की रोशनी जगमगाती रहती है।

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