टाइको ब्राहे, एक ऐसे खगोलशास्त्री जो अपने सटीक और व्यापक खगोलीय अवलोकनों के लिए जाने जाते थे। उनका जन्म 14 दिसम्बर, 1546 को स्कैनिया में हुआ था जोकि आज के समय में स्वीडन का भाग है। टाइको एक खगोलशास्त्री होने के साथ-साथ ज्योतिष और प्रसिद्ध अलकेमिस्ट भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐसी खगोलीय घटनाओं के बारे में बताया जो बाद में विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुई थीं। परन्तु यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है बिना टेलीस्कोप के ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन करने वाले अंतिम वैज्ञानिकों में से एक टाइको ब्राहे का निधन बहुत ही कम उम्र में हो गया और उनका आकस्मिक निधन कोई आम बात नहीं बल्कि यह एक हत्या बताई जाती है जोकि आजतक रहस्य बनी हुई है। हालांकि, इसके पीछे प्रसिद्ध वैज्ञानिक योहान्स केप्लर का भी हाथ बताया जाता है और यह भी बताया जाता है कि उन्होंने ब्राहे के खोज का क्रेडिट खा लिया।
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ब्राहे ने दी थी कोपरनिकस के सिद्धांत को चुनौती
दरअसल, टाइको ब्राहे का जन्म डेनमार्क के सबसे प्रभावशाली और कुलीन परिवारों के उत्तराधिकारी के रूप में हुआ था और जिस परिवार में ब्राहे जन्मे थे, उसके संबंध डेनमार्क के राजसी परिवारों से था। इसीलिए प्रारंभ से ही ब्राहे की शिक्षा-दीक्षा अच्छे से हुई थी। टाइको ने अपनी स्कूली शिक्षा न्यकोबिंग के लैटिन स्कूल से प्राप्त की और उसके बाद वो कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में अपनी आगे की पढ़ाई के लिए चले गए। वहां पर इन्होंने अपने चाचा के कहने पर कानून का अध्ययन करने लगे परन्तु ब्राहे का मन तो विज्ञान की ओर आकर्षित होता था।
आखिरकार 21 अगस्त 1560 के सूर्यग्रहण से खगोल विज्ञान में उनकी रूचि और ज्यादा जाग्रत होने लगी। जिसके बाद ब्राहे ने कानून की पढ़ाई छोड़ कर अपना पूरा ध्यान खगोलशास्त्र की ओर लगा दिया और गहन अध्ययन के बाद उस समय एक बड़े खगोलशास्त्रीय निकोलस कोपरनिकस के हेलिओसेंट्रिक के सिद्धांत को चुनौती दे डाली। ब्राहे ने अपने सिद्धांत में सूर्य को ब्रह्मांड का केंद्र बताते हुए कहा था सूर्य ब्रह्मांड के केंद्र में स्थापित है और सभी ग्रह इसकी परिक्रमा लगाते हैं, जोकि टेलीस्कोप की खोज होने के बाद सही साबित हुआ। जबकि कोपरनिकस पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र मानते थे।
जब कट गई थी ब्राहे की नाक
सन् 1566 ई. में टाइको ब्राहे रोस्टॉक विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जाते हैं। वहां उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध मेडिकल स्कूल में मेडिसिन के प्रोफेसरों के साथ मेडिकल अलकेमी और वनस्पति चिकित्सा में गहन अध्ययन किया। परन्तु इस दौरान इनके साथ एक ऐसी घटना हुई जो बाद में इनके मौत का कारण बनी। वो थी तलवारबाजी में नाक का आगे वाला भाग खो देना।
दरअसल, प्रोफेसर लुकास बैचमेस्टर के घर पर ब्राहे के भाई और एक दोस्त के बीच में स्वयं को बेहतर गणितज्ञ बनाने को लेकर लड़ाई हो जाती है जिसके बाद यह लड़ाई तलवारीबाजी का रुप ले लेती है और इसमें टाइको की नाक का आगे का हिस्सा कट जाता है। हालांकि, विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग के द्वारा उनका पूरा ध्यान रखा जाता परन्तु जीवनभर उन्हें प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा लगाई गई नाक के साथ में बिताना पड़ता है। ऐसा बताया जाता है कि इस नाक को सोने या चांदी के द्वारा बनाया गया था। परन्तु 2010 में उनकी नाक से निकाले गए एक छोटे से हड्डी के नमूने का रासायनिक विश्लेषण करने के बाद पता चलता है कि नाक का यह कृत्रिम रूप, पीतल का बना हुआ था।
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टाइको और केप्लर का युग
हालांकि, नाक कटने के बाद भी ब्राहे द्रुत गति से आगे बढ़ते रहे। उन्होंने कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान पर व्याख्यान दिया और पूरे यूरोप पर एक प्रभावशाली छाप छोड़ी। टाइको के काम में सबसे ज्यादा दिलचस्पी रखने वालों में से कोई और नहीं बल्कि खुद डेनमार्क के राजा फ्रेडरिक द्वितीय थे। 1576 में फ्रेडरिक द्वितीय ने ह्वेन द्वीप को बतौर जागीर टायको ब्राहे को सौंप दिया और वहां एक भव्य वेधशाला के निर्माण के लिए राजकोष से प्रचुर धन भी मुहैया कराया। ब्राहे ने ह्वेन द्वीप पर उरानीबर्ग वेधशाला, एक छापाखाना और अल्केमी की प्रयोगशालाएँ बनवाई। ब्राहे ने स्वयं वेधशाला के लिए वैज्ञानिक उपकरणों का निर्माण किया और ग्रहों एवं तारों की स्थिति को दर्ज करना शुरू कर दिया।
खगोल विज्ञान में एक नए युग की शुरुआत में राजनैतिक कारणों से 1597 में टायको ब्राहे को अपनी जागीर छोड़नी पड़ी, उन्होने 1599 में रोमन साम्राज्य के सम्राट रूडोल्फ द्वितीय के संरक्षण में प्राग में एक नई वेधशाला स्थापित की। ब्राहे को खगोलीय गणनाओं में पारंगत एक मेधावी गणितज्ञ की जरूरत थी, जिसकी पूर्ति 1600 में जोहांस केप्लर के मुलाक़ात से हुई। दोनों के मिलने से खगोल विज्ञान में एक नए युग की शुरुआत हुई। टायको और केप्लर के बीच के संबंध मधुर नहीं थे लेकिन बात यह है कि टायको ब्राहे द्वारा जुटाए गए खगोलीय आकड़ें केप्लर के लिए बेहद मूल्यवान साबित हुए।
केप्लर ने ब्राहे द्वारा जुटाए गए आंकड़ों का किया अध्ययन
ब्राहे द्वारा जुटाए गए सर्वोत्तम आंकड़ों का तकरीबन 20 वर्षों तक केप्लर ने सूक्ष्मता से अध्ययन-विश्लेषण किया। केप्लर के ज़्यादातर प्रयास मंगल ग्रह की कक्षा से संबंधित थे। असल में केप्लर का ऐसा मानना था कि मंगल की कक्षा के बारे में अधिकाधिक अध्ययन करने से ही ग्रहों की गति के रहस्य को समझा जा सकता है, क्योंकि इसकी कक्षा वृत्त से काफी अलग है। उसके बाद केप्लर के कई सिद्धांत भी सामने आए, जो ब्राहे के खोज से प्रेरित प्रतीत होते हैं।
हालांकि, ब्रह्मांड के इस रहस्य को प्रचीन भारत के एक वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने कोपरनिकस, गैलीलियो और टाइको ब्राहे के जन्म से बहुत पहले ही बता दिया था परन्तु पर्याप्त प्रचार-प्रसार न होने के कारण उन्हें ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिल पाई थी। यही नहीं, आर्यभट्ट और प्रचीन भारत के अन्य वैज्ञानिकों के बारे में हमने पहले भी विस्तार से बात की है जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं। ब्राहे के बारे में कहा जाता है कि वो दुनिया के उन अंतिम वैज्ञानिकों में से एक थे, जिन्होंने बिना टेलीस्कोप के ब्रह्मांड के रहस्यों को दुनिया के सामने रखा।
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कैसे हुआ ब्राहे का आकस्मिक निधन?
ज्ञात हो कि टाइको ब्राहे के आकस्मिक निधन को लेकर अभी भी चीजें सपष्ट नहीं हो पाई हैं कि टाइको की हत्या हुई थी या सामान्य मृत्यु। यही नहीं, आए दिन इसे लेकर कई तरह के सवाल भी उठते रहते हैं। टाइको की मौत होने के बारे में बताया जाता है कि ब्लैडर के फटने की वजह से उनकी मैत हुई थी। परन्तु 1990 के दशक में हुई जांच में टाइको की मृत्यु मूत्र संबंधी समस्याओं से नहीं बल्कि पारा (mercury) से होने की बात कही गई थी।
यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें जानबूझकर जहर दिया गया है और इसके दो मुख्य संदिग्ध बताए गए पहला उनके सहायक योहान्स केप्लर थे, जिनका मकसद टाइको की प्रयोगशाला और रसायनों तक पहुंच हासिल करना था और दूसरे संदिग्ध उनके चचेरे भाई थे एरिक ब्राहे। इसके अलावा अन्य भी कई कारण बताए गए परन्तु इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हो सकी है। इसीलिए टाइको ब्राहे की मृत्यु अभी तक एक रहस्य बनी हुई है। टाइको ब्राहे की मृत्यु का रहस्य सुलझे या न सुलझे परन्तु इस बात को कोई नहीं नकार सकता है ब्राहे एक अद्भुत वैज्ञानिक थे और उनकी आकस्मिक मृत्य का होना विज्ञान के लिए गहरा झटका था।
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