सुभाषचंद्र बोस फाइल्स – भारत को स्वतंत्र कराने में वैसे तो असंख्य देशभक्तों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, परंतु समस्या यह है कि केवल कुछ लोगों को आजादी का श्रेय देकर हमेशा से ही उनका गुणगान किया जाता रहा है। इस दौरान अनेकों महान लोगों के योगदान को मिटाने के प्रयास किये जाते रहे हैं। इन्हीं में से एक नाम सुभाष चंद्र बोस का भी हैं। देश की आजादी में सुभाष चंद्र बोस का योगदान अतुलनीय रहा। सुभाषचंद्र बोस ही वो क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज भी डरा करते थे। बोस ने ब्रिटिश शासन की चूलें हिलाकर रख दी थी।
परंतु यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है, उन्हीं सुभाष चंद्र बोस के योगदान को कुछ राजनीतिक दलों द्वारा हमेशा से ही कम आंका गया और इसे दबाने के खूब प्रयास किये गये। परंतु कहते हैं कि सच्चाई को ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता। अब ऐसा लगने लगा है कि अब शीघ्र ही सुभाष चंद्र बॉस से जुड़ा सच सबके आ जाएगा। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे रक्षा मंत्री राजनाथ का हालिया बयान से ऐसा लगता है कि वो बोस से जुड़ी फाइलों को खोलने के लिए उतारू हैं और क्या मोदी सरकार इस दिशा में कोई बड़ा कदम उठाने जा रही हैं?
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राजनाथ सिंह का बयान
मोदी सरकार जब से सत्ता में आयी है, तब से ही वो सुभाषचंद्र बोस को सम्मान दिलाने के प्रयास कर रही है, जिनके वे असल में हकदार थे और कांग्रेस के राज में तो वो सम्मान उन्हें कभी मिला ही नहीं। हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए कुछ बड़ी और महत्वपूर्ण बातें कही हैं। ग्रेटर नोएडा में एक यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने इस ओर प्रकाश डाला कि कैसे सुभाष चंद्र बोस के आजादी में योगदान को हमेशा से नजरअंदाज किया गया। इस दौरान रक्षा मंत्री ने एक बड़ा बयान देते हुए सुभाष चंद्र बोस को अखंड भारत का पहला प्रधानमंत्री भी बताया।
राजनाथ सिंह ने अपने बयान में कहा कि अखंड भारत के प्रथम प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस थे। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोगों के द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर और आजादी के लिए अनेक कष्ट सहने वाले क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता हैं। परंतु कम ही लोग उनको अखंड-अविभाजित भारत के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर देखते हैं। “आजाद हिंद सरकार” जो अखंड भारत की पहली स्वदेशी सरकार थी वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही बनायी थी और 21 अक्तूबर 1943 को सुभाष चंद्रबोस ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
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‘सुभाषचंद्र बोस फाइल्स’
राजनाथ सिंह ने आगे यह भी कहा कि बोस के योगदान को जानबूझकर नजरअंदाज या कम किया जाता था, उसका सही मूल्यांकन नहीं किया गया। ऐसा इस हद तक हुआ कि उनसे जुड़े कई दस्तावेज (सुभाषचंद्र बोस फाइल्स) कभी सार्वजनिक तक नहीं हुए। उन्होंने जोर देकर कहा कि नेताजी की भूमिका और दूरदृष्टि का पुनर्मूल्यांकन करने की तत्काल आवश्यकता है। कुछ लोग इसे इतिहास का पुनर्लेखन कहते हैं, पर मैं इसे सुधार कहता हूं।
देखा जाए तो राजनाथ सिंह की यह टिप्पणी कई मायनों में काफी अहमियत रखती है। रक्षा मंत्री के इस बयान के बाद सुभाष चंद्र बोस को लेकर फिर से चर्चाएं और उनसे जुड़े दस्तावेजों, फाइलों को खोलने और उन पर तेजी से जांच करने की मांग बढ़ सकती है। देखा जाये तो सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जिनकी सच्चाई आज तक देश की जनता नहीं जानती। इसमें नेताजी की मौत से जुड़ा बड़ा रहस्य भी शामिल है।
देखा जाये तो मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही इन प्रयासों में रही हैं कि वो सुभाषचंद्र बोस को वो सम्मान दिलाये, जो कांग्रेस के रहते हुए उन्हें कभी मिल नहीं पाया। आपको बता दें कि भाजपा ने ही नेताजी से जुड़े कई दस्तावेजों (सुभाषचंद्र बोस फाइल्स) को सार्वजनिक किया था, जिन्हें कांग्रेस हमेशा से छिपाती आ रही थी। राजनाथ सिंह मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में जब गृह मंत्री का कार्यभार संभाल रहे थे, तब वे नेताजी के परिवार के सदस्यों से मिले थे। इसके बाद सरकार ने उनसे संबंधित 300 से अधिक दस्तावेजों को सार्वजनिक कर भारत के लोगों को समर्पित कर दिया था। वहीं इसके अलावा मोदी सरकार ने सुभाष चंद्रबोस के सम्मान में बड़ा कदम उठाते हुए इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्रबोस की एक भव्य प्रतिमा लगवायी। साथ ही अंडमान निकोबार के रॉस द्वीप का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्रबोस द्वीप रखा गया।
हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू का नाम बड़ी ही प्रसन्नता से लेते हैं और उनका गुणगान भी खूब करते नजर आते हैं। परंतु यह लोग कभी भी देश की आजादी में अतुलनीय भूमिका निभाने वाले सुभाष चंद्र बोस के बारे में बात नहीं करते दिखते। सुभाष चंद्र बोस ही नहीं उनके जैसे और भी कई महान नायक हैं, जिनके योगदान को आज देश भूला चुका है। इसके पीछे का कारण हैं आजादी के बाद देश की सत्ता संभालने वाली राजनीतिक पार्टियां, जिन्होंने कभी इनके योगदान का जिक्र नहीं किया। हालांकि आज भारत इन्हीं गलतियों को सुधारने का काम कर रहा है।
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