“भगवान राम ने दलित शंबूक की हत्या की”, विकास दिव्यकीर्ति लाखों छात्रों में सनातन के प्रति विष भर रहा है

क्या आप जानते हैं कि विकास दिव्यकीर्ति पढ़ाने के नाम पर हिंदू युवाओं के अंदर भगवान श्रीराम के प्रति घृणा भर रहा है। हिंदुओं के बीच जातिवाद को बढ़ावा देने का अभियान चला रहा है।

vikas divyakeerti

विकास दिव्यकीर्ति हिंदू युवाओं के दिमाग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के विरुद्ध विष भर रहा है, इस आदमी के हाव-भाव देखिए, आपको ऐसा प्रतीत होगा कि ये बहुत ही कूल हैं, कितने अच्छे शिक्षक हैं, कितनी सरलता से छात्रों को पढ़ाते हैं। इन्हें बेहतरीन शिक्षक का राष्ट्रपति पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए लेकिन क्या आप जानते हैं कि पढ़ाने के नाम पर यह शख्स हिंदू युवाओं के अंदर भगवान श्रीराम के प्रति घृणा भर रहा है। हिंदुओं के बीच जातिवाद को बढ़ावा देने का अभियान चला रहा है। दलितों को सवर्णों के विरुद्ध भड़का रहा है और वाल्मीकि रामायण के नाम पर झूठ बेच रहा है।

इस लेख में हम आज आपके सामने विकास दिव्यकीर्ति का सच रखने जा रहा हैं।

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विकास दिव्यकीर्ति का वायरल वीडियो

विकास दिव्यकीर्ति का एक वीडियो सोशल मीडिया पर इन दिनों वायरल हो रहा है। दृष्टि IAS के लोगों के साथ वायरल हो रहे इस वीडियो के आधार पर ही हम आज का यह विश्लेषण करने जा रहे हैं। लेख में आगे बढ़ेंगे लेकिन उससे पहले आप यह वीडियो देखिए।-

https://twitter.com/WokePandemic/status/1588269558619860993

देखा होगा आपने कि विकास दिव्यकीर्ति इस वीडियो में कह रहे हैं कि वाल्मीकि रामायण में शंबूक का प्रसंग आता है। वो आगे कहते हैं कि गुरु वशिष्ठ ने भगवान राम से कहा कि राज्य में कुछ बहुत अनैतिक हो रहा है। भगवान राम पूरे राज्य में यह ढूढने के लिए घूमते हैं कि क्या अनैतिक हो रहा है? फिर उन्हें शंबूक तपस्या करता हुआ मिलता है। शंबूक, शूद्र था और शूद्र तपस्या कैसे कर सकता है इसलिए भगवान राम उसकी गर्दन तलवार से काट देते है, विकास दिव्यकीर्ति अपने वीडियो में यही कह रहे हैं।

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सच क्या है?

अब आप सच जानिए- क्या वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई प्रसंग है? इसका सीधा जवाब है- नहीं, बिल्कुल भी नहीं। वाल्मीकि रामायण में ऐसा कुछ भी नहीं है। वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड पर समाप्त हो जाती है। वाल्मीकि रामायण में इसके बाद कोई ‘कांड’ नहीं है। शंबूक की यह कहानी भी उत्तर कांड की है- जैसे कि मां सीता के परित्याग वाली कहानी। जबकि उत्तर कांड तो वास्तविक रामायण यानी वाल्मीकि रामायण में था ही नहीं।

अब यहां एक और बात है जो आपको अवश्य जाननी चाहिए। वाल्मीकि रामायण के नाम पर देश में तमाम रामायण की किताबें मिलती हैं लेकिन वो तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। वास्तविक वाल्मीकि रामायण यदि आपको पढ़नी है, समझनी है तो इंटरनेट पर जाइए और Valmikiramayan.net सर्च कीजिए। यह वेबसाइट आईआईटी के कुछ लोगों ने मिलकर बनाई है। तुलसीदास की रामचरित मानस में उत्तर कांड में मिलता है। इसी उत्तर कांड में यह पल्प फिक़्शन जोड़ा गया था। ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि विकास दिव्यकीर्ति का यह प्रसंग पूरी तरह से भ्रामक है, झूठ है, ग़लत है, फ़ेक न्यूज़ है।

अब आगे बढ़ते हैं। विकास दिव्यकीर्ति रामचरित मानस के जिस प्रसंग की बात कर रहे हैं, उसे एक बार को यदि मान भी लें- तब भी आप सोचिए कि भगवान राम अपने साथ कब तलवार रखते थे जो वो गर्दन काट देंगे? भगवान राम के पास सदैव धनुष-बाण ही रहा है, तलवार नहीं। दूसरा प्रश्न यह है कि प्रभु श्रीराम निहत्थे पर कभी वार नहीं करते थे। यदि शंबूक निहत्था बैठा है तो भगवान राम उस पर कैसे वार कर सकते हैं? इसके बाद और आगे बढ़ते हैं, विकास दिव्यकीर्ति कह रहे हैं कि शंबूक तपस्या कर रहा था, जोकि रामचरित मानस के अनुसार भी ग़लत है क्योंकि राम चरित मानस में बताया गया है कि शंबूक वेद पाठ कर रहा था।

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पूर्वाग्रह से ग्रसित विकास दिव्यकीर्ति

वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति कह रहे हैं कि राम को यह ज्ञान गुरु वशिष्ठ ही दे रहे थे, इसमें उनका इशारा ब्राह्मणों की तरफ है। हम सब जानते हैं कि विकास दिव्यकीर्ति के विचार ब्राह्मणों को लेकर क्या हैं? इसलिए इस पर इसके सिवाय कुछ नहीं कहा जा सकता कि वो पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर छात्रों को पढ़ाते हैं।

अब और आगे बढ़ते हैं- भगवान राम के चरित्र को हम सभी बचपन से पढ़ते आए हैं, हम सभी ने पढ़ा है कि भगवान राम के सबसे करीबी और परम मित्र निषाद राज थे और निषाद राज तो दलित थे, वो आदिवासी थे। यदि भगवान राम दलितों के विरुद्ध होते तो क्या वो एक दलित को अपना परम मित्र बनाते? इसके साथ ही हम यह भी जानते हैं कि प्रभु श्रीराम ने एक वनवासी महिला यानी शबरी के बेर खाए थे। हां, यहां पर आपको यह भी समझ लेना चाहिए कि शबरी ने झूठे बेर नहीं खिलाए थे, बल्कि बेर खिलाए थे।

अब थोड़ा-सा और आगे बढ़ते हैं। प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान निरंतर आदिवासियों से, वनवासियों से, दलितों से संपर्क किया, उनकी सहायता की, उनके साथ रहे। उनके उत्थान के लिए काम किया, उन्हें राक्षसों से बचाया। इसके साथ ही प्रभु श्रीराम ने जब राक्षस रावण से युद्ध किया तब भी उन्होंने इन्हीं वानरों का साथ लिया था।

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शंबूक वध पर अंबेडकर ने क्या कहा है?

इन सभी तथ्यों के साथ चलिए हम अंबेडकर की भी बात कर लेते हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर को दलितों के मसीहा के तौर पर इस दौर में पेश किया जाता है, वो थे या नहीं यह एक अलग विषय है। लेकिन उन्होंने शंबूक के इस प्रसंग को लेकर क्या बोला है वो हमें अवश्य जानना चाहिए। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा है कि शंबूक वध के लिए हमें राम को दोष नहीं देना चाहिए, इसके लिए राम कतई दोषी नहीं थे, इसके लिए उन्हें दोष देना, उनके साथ अन्याय होगा। लेकिन विकास दिव्यकीर्ति जैसे लोगों का समूह अंबेडकर की बात भी नहीं सुनता और प्रभु राम के विरुद्ध षड्यंत्र के साथ ऐसी भ्रामक सामग्री फैलाता है जिससे कि हिंदुओं को जाति के आधार पर तोड़ा जा सके, उनके मन में अपने ही धर्म के प्रति संशय पैदा किया जा सके। ऐसे में हमें इन धूर्तों से बचकर रहने की आवश्यकता है।

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