“दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा।
ज़िंदगी हमें तेरा एतबार न रहा”।
शैलेन्द्र के कलम से निकले ये शब्द एक मित्र द्वारा दूसरे मित्र के प्रति विश्वासघात को लेकर पीड़ा व्यक्त करने को उद्यत थे। वो काफी सफल भी रहे क्योंकि ‘संगम’ का एक सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर यह गीत भी था। परंतु कम ही लोग जानते थे कि यह गीत पीड़ा कम और कुंठा अधिक थी क्योंकि एक मित्र ने दूसरे के साथ विश्वासघात किया या यूं कहें कि उसकी वास्तविकता से उसे परिचित कराया था। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे “दोस्त दोस्त न रहा” एक गीत नहीं, राज कपूर की कुंठा थी, जो वह खुलेआम राजेन्द्र कुमार के विरुद्ध व्यक्त नहीं कर पाए और जिसकी अंतर्कथा जानकर आप भी चकित हो जाएंगे।
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ये रही पूरी कहानी
दरअसल, 1964 में संगम प्रदर्शित हुई। यह राज कपूर की प्रथम कलर फिल्म थी और इसने बॉक्स ऑफिस पर बम्पर सक्सेस के कई कीर्तिमान स्थापित किये। यह फिल्म लगभग 4 घंटे लंबी थी पर फिर भी इसने 8 करोड़ की कमाई की, जो आज के मूल्य के अनुसार 800 करोड़ रुपये से कम नहीं होते। परंतु ये फिल्म इसलिए इतनी चर्चा में नहीं रही, जितने इसके गीत। इसके कई गीतों के प्रशंसक आज भी आपको कहीं न कहीं मिल जाएंगे। ‘बोल राधा बोल’, ‘मैं क्या करूँ राम’, ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ जैसे गीत तो आज भी कई प्रशंसकों के प्रिय गीत माने जाते हैं।
परंतु दोस्त दोस्त न रहा, अपने आप में एक अलग छाप छोड़ गया। इसलिए भी क्योंकि मुकेश ने अपनी आवाज से इसे लोकप्रिय बनाया और इसलिए भी, क्योंकि यह कहीं न कहीं राज कपूर के अंतर्मन की एक झलक थी, जिसके साक्षी कोई और नहीं, राजेन्द्र कुमार थे। हाँ, वही राजेन्द्र कुमार, जो एक समय अपनी निरंतर हिट देने की क्षमता के कारण ‘जुबली कुमार’ के रूप में प्रसिद्ध हुए, और कभी राज कपूर के घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे, जैसे बचपन से एक दूसरे को जानते हो।
परंतु ऐसा क्या हुआ, जिसके कारण कभी परस्पर मित्र रहे राजेन्द्र कुमार और राज कपूर में अनबन उत्पन्न हुई? इसकी कारण एक अभिनेत्री थी, जिसका नाता राज कपूर से भी था और राजेन्द्र से भी। कभी लोग मधुबाला की एक झलक के लिए जितना लालायित रहते थे, उतना ही वे नरगिस के लिए भी होते भी। वर्ष 1940 से लेकर 1960 के प्रारम्भिक दशक तक तीन अभिनेत्रियों का बॉलीवुड पर वर्चस्व व्याप्त था – वैजयंतीमाला, मधुबाला और नरगिस। नरगिस उन अभिनेत्रियों में से भी थी, जिनके रूप और गुण पर हर कोई अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार था पर वह केवल एक को चाहती थी- अपने राज को यानी राज कपूर को। बहुत कम लोगों को पता होगा कि संगम प्रारंभ में नरगिस को ही ऑफर हुई थी परंतु उन्होंने इसे ठुकरा दिया।
ऐसा क्यों? कारण स्पष्ट था, इसमें राजेन्द्र कुमार इनके प्रेमी होते और राज कपूर इनके पति और यह नरगिस के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं होता। राज कपूर, गुरु दत्त से कम रसिक न थे क्योंकि अपनी प्रथम पत्नी के होते हुए भी उन्होंने नरगिस के साथ भी व्यभिचार किया और जब विवाह की बात आई, तो उन्हें ऐसे ठुकराया जैसे वह कभी उनके जीवन में आई ही नहीं थी।
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मदर इंडिया से मिले थे सुनील दत्त और नरगिस
परंतु राजेन्द्र कुमार इसमें राज कपूर के शत्रु कैसे बने? नरगिस के प्रशंसकों में एक राजेन्द्र कुमार भी थे परंतु उनका प्रेम कभी सफल नहीं हुआ, ठीक संगम के गोपाल की भांति। पर यहां एक अंतर है। वो इस बात से परिचित थे कि नरगिस का जीवन नारकीय बन चुका है, जिसके लिए राज कपूर काफी हद तक दोषी थे और वो ऐसा नहीं देख सकते थे। ऐसे में आई एक बहुचर्चित फिल्म मदर इंडिया, जहां पर राजेन्द्र कुमार के साथ नरगिस के समक्ष आए पंजाब से एक हंसमुख, प्रतिभाशाली अभिनेता सुनील दत्त और फिर आगे क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
ऐसा भी कहा जाता था कि नरगिस और सुनील दत्त को एक कराने में राजेन्द्र कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका थी और यदि ये सत्य है, तो कहीं न कहीं राज कपूर उसी खीझ में ‘संगम’ को उस मोड़ तक ले आए, जहां उनकी कुंठा उनके मुख पर स्पष्ट दिख रही थी।
कुछ लोग कहते हैं कि नरगिस और राजेन्द्र कुमार की इस फिल्म के समय लड़ाई हो गई थी और इसके बाद वर्षों तक बात नहीं हुई। इसका कारण बताया गया था कि मदर इंडिया में राजकुमार को कास्ट करने को लेकर राजेन्द्र कुमार और नरगिस में काफी विवाद हुआ था, जिसके कारण ये अनबन उत्पन्न हुई। परंतु यदि ये सत्य होता, तो फिर राजेन्द्र कुमार के पुत्र कुमार गौरव का विवाह संजय दत्त की बहन नम्रता से कैसे होता? बहुत कम लोग जानते हैं परंतु एक समय ‘राम तेरी गंगा मैली’ में मंदाकिनी के साथ साथ राज कपूर, कुमार गौरव को लेना चाहते थे। लगे हाथों उन्होंने ऋद्धिमा कपूर से कुमार गौरव के रिश्ते की भी बात चलाई परंतु कुमार गौरव ने रिश्ता और राज कपूर की फिल्म दोनों ऐसे ठुकराए, जैसे चाय में से मक्खी। समय समय की बात है बंधु, कल कोई बलवान होगा, आज कोई और है।
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