Medieval European society: मानव सभ्यता के इतिहास का विश्लेषण करने की बात आती है तो लोग अपनी-अपनी सभ्यताओं को महान, विकसित और दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएं बताते हैं। खासकर यूरोपियन तो स्वयं को दुनिया का जनक ही मानते हैं। कहते हैं कि दुनिया में सबसे सभ्य और विश्व में आधुनिकता का प्रसार करने वाले हम ही हैं और बाकी सब तो मानो मूर्ख थे। परंतु आज हम जिस विषय पर बात करने जा रहे हैं वह यूरोपियन लोगों के दावे को न केवल सिरे से नकारता है बल्कि यह भी बताता है कि सभ्यताओं के क्रमिक विकास में यदि सबसे कोई अल्प विकसित था तो वो यूरोपियन थे।
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मल त्याग करने की नहीं थी कोई सुविधा
मनुष्य के दैनिक जीवन में मलमूत्र का त्याग करना बेहद ही आवश्यक कार्य है। सोचिए कि आज अगर कोई आपको सामूहिक रूप से एक ही स्थान पर मल त्याग करने के लिए कहे तो क्या होगा? सड़कों पर बड़ी तादाद में कहीं भी मल पड़ा हुआ हो और आप वहां से गुजर रहे हो, तो क्या ऐसी जगह को सभ्य कहा जाएगा? अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कहां होता था तो आपके कौतुक की शांति के लिए बता दें कि यही था मध्ययुगीन यूरोप (medieval european society)। यहां न तो मल त्याग करने की कोई सुविधा थी और न ही कचरे का निस्तारण करने की कोई व्यवस्था। जहां लोगों का मन होता, वहीं पर मल त्याग करते थे और सड़कों पर सड़ा मांस, पशुओं के अपशिष्ट और घरों से निकले हुए कचरे को फेंक देते थे।
मध्ययुगीन यूरोप (medieval european society) पर बनी कोई फिल्म या सीरीज देखते हैं तो हमें बड़े-बड़े महल और राजा-रानी का भोग विलास भरा जीवन ही दिखाया जाता है। परंतु यह कभी नहीं दिखाते कि राजा-रानी मल त्याग करने कहां जाया करते थे? दिखाएंगे तो तब जब कोई व्यवस्थित सुविधा होगी। असल में यूरोप के तथाकथित राजसी महलों में चैम्बर पॉट की सुविधा होती थी, जहां लोग सामूहिक रूप से मल त्याग करते थे और यह मल दो अलग-अलग स्थानों पर एकत्रित होता था, जिसमें से एक गहरा गढ्डा और दूसरा था मोठ। मोठ को आसान भाषा में कहें तो महल के चारों ओर खुदी खाई जिसमें पानी भरा होता था, उसी में मल का विसर्जन किया जाता था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि कोई महल में मोठ द्वारा प्रवेश करें और उसे राजा-रानी का मल पानी पर तैरता मिल जाए। वहीं जिस गड्ढे में मल एकत्रित होता था, उसे मनुष्यों द्वारा साफ कराया जाता और जहरीली गैसों के कारण लोगों की मौत हो जाती थी।
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दुर्गंध से भरी थीं सड़कें
शाही परिवार के लोगों के लिए तो चैम्बर पॉट की सुविधा थी, परंतु आम जनता का क्या? उन्हें भी तो मल त्याग करना होता था। आम जनता के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं थी, वह जहां चाहे मल त्याग कर सकती थी, जिसके परिणामस्वरुप यूरोप के बड़े शहर जो आज अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं उनकी सड़कें कभी दुर्गंध से भरी होती थी। मल त्याग करने के बाद यूरोपियन अपने पृष्ठभाग को साफ करने के लिए पानी या आज के टॉयलेट पेपर का उपयोग नहीं करते थे बल्कि वह पुराने कपड़े से अपने पृष्ठभाग को साफ करते थे।
यूरोप में धनाढ्य लोगों के लिए ओपेरा हाउस होते थे, उनकी शीट के नीचे एक गढ्डा होता था। उसमें अगर वो चाहें तो सिनेमा या ड्रामा देखने के दैरान मुक्त हो सकते थे। इससे जुड़ी एक कहानी भी है कि दो महिलाएं मुक्त होने के बाद मल को आगे वाली शीटों पर फेंक देती हैं, जिसके बाद लोग उनके पीछे पड़ जाते हैं और मार मारकर अधमरा कर देते हैं।
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महीनों तक स्नान नहीं करते थे यूरोपियन
मल त्याग करने के बाद आती है स्नान करने की बात। यूरोपियन फिल्मों में दिखाया जाता है कि पुराने समय के यह लोग बाथटब में नहाते थे। परंतु यह सब झूठ है क्योंकि मध्ययुगीन यूरोप (medieval european society) में नहाने की कोई व्यवस्थित प्रक्रिया नहीं थी। यह लोग 6 महीने या साल में एक बार स्नान करते थे। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता था कि हमारे पास लैनिन कपड़े से बनी शर्ट है जो पसीने को आसानी से सोख लेता है इसलिए स्नान करने की आवश्यकता नहीं है। इटली में जो इत्र की शुरूआत हम देखने को मिलती हैं वो इसी स्नान न करने की देन है।
यूरोप में जितने भी बड़े शहर हैं वे कभी बीमारियों का अड्डा होते थे क्योंकि गंदगी में रहने और साफ-सफाई का ध्यान न रखने के कारण लोगों को कई प्रकार की बीमारियां होती थीं। इससे बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु भी होती थी और महामारी फैलती थीं।
यदि मध्ययुगीन यूरोप (medieval european society) के सभ्य होने के दावे का विश्लेषण किया जाए तो इस पर एक पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है क्योंकि आज जैसे यूरोपियन स्वयं को प्रदर्शित करते हैं वैसे वह बिल्कुल भी नहीं थे बल्कि इनका इतिहास खून-खराबे, अत्याचारों और गंदगी से भरा रहा हैं। इस पर बीबीसी ने “Filthy Cities” नाम से एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई गई है, जिसे चाहें तो आप देख सकते हैं।
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