अथ श्री रवीश कुमार निष्कासन कथा!

NDTV से छूटकर रवीश कुमार नये ‘भारत विरोधी टूल किट’ की तलाश में होंगे। वो पूरा प्रयास करेंगे कि उनका एजेंडा सिद्ध होता रहे।

रवीश कुमार NDTV

SOURCE tfi

30 नवंबर 2022, यह पत्रकारिता के मानस काल में एक बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण समय है जब निष्पक्ष पत्रकारिता की ज्योत जगाने वाले, तानाशाहों के विरुद्ध अकेले भिड़ने वाले, मैग्सेसे छाप रवीश कुमार पांडे ने सहसा अपनी कर्मभूमि, अपनी प्रिय NDTV को त्यागने का निर्णय लिया। आइए, उनकी आत्मा जो अब यूट्यूब पर विचरण करेगी, उसके लिए दो सेकेंड का मौन रखें। वे जहां भी रहें सदा मोदी विरोध करते रहें और अब्दुल और दादा कामरेड की प्रशंसा में गीत गाते रहें। और इस दुख की घड़ी में अपने समस्त वामपंथी मित्रों के साथ अपनी सम्पूर्ण संवेदना प्रकट करता हूं।

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NDTV तो NDTV है

कितनी पीड़ा और कष्ट की बात है कि जिस व्यक्ति को खरीदने के लिए एक पूरा चैनल खरीद लिए, उसे ही नहीं खरीद पाए। खैर, नारद पुरस्कार से सदैव वंचित रहने वाले मोतिहारी के लाल को अपनी प्रिय ऑफिस से निकलने पर काफी दुख हुआ होगा। देखिए, रवीश कुमार वैसे तो अपने टूलकिट बिरादरी से ही जुड़ने वाले हैं, और नये ऑफिस में कोई विशेष अंतर नहीं है पर वो घर वाली बात यूट्यूब पर कहां बंधुवर। NDTV तो NDTV है।

कभी NDTV के दफ्तरों की धूल साफ करने वाले रवीश शीघ्र ही अपने जन संपर्क के लिए चर्चा में आने लगे और धीरे-धीरे उन्हें ‘रवीश की रिपोर्ट’ के नाम से एक विशेष स्लॉट आवंटित हुआ। इसने जो लोकप्रियता प्राप्त की, वो आज भी कई लोगन के लिए केस स्टडी है।

लेकिन वही है कि यदि सफलता सर चढ़ जाए तो विनाश आते देर नहीं लगती। रवीश बाबू के साथ भी यही हुआ। पत्रकारिता को ताक पर रखकर रवीश बाबू चैनल पर बैठकर अपने एजेंडे को साधने लगे और जल्द ही मोदी विरोध और वामपंथी सोच को हवा देने में, लोगों तक डर का माहौल है वाला भाव पहुंचाने में महारथ हासिल कर बैठे और ऐसा होने से विनाश तो पत्रकारिता का ही हो रहा था और उन्नति को साक्षात् रवीश बाबू जी रहे थे।

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दफ्तर कम दूसरा घर NDTV

करना ही क्या था, दफ्तर कम अपने दूसरे घर NDTV पहुंच जाओ, वहां अपना एजेंडा चलाओ और अपने टुटपुंजिए और वामपंथिए समर्थकों से प्रशंसा पाओ। पर सब दिन एक कहा होत हैं भइया। रवीशवा के भी दिन फिर गए, वो भी उल्टे। कुछ समय पहले यूट्यूब पर आए रवीश कुमार का डेरा अब यहीं जमता रहेगा। लेकिन अंटर-पंटर फैनबेस को छोड़ दें तो यहां रवीश का काम बढ़ जाएगा। वो ऐसे कि इनको नये-नये टूलकिट का इंतजाम करना पड़ेगा, नये-नये लोगों तो जुटाकर उन्हें अपने विचारधारा से ओतप्रोत करना पड़ेगा।

अपने एजेंडे को अपने यूट्यूब चैनल पर स्थापित करना पड़ेगा। वो बात और  है कि ये सारे काम आपको भारी लग रहे होंगे लेकिन रवीशवा के लिए ये सब उतना भी मेहनत का काम नहीं है, काहे कि पिछले 26 साल से NDTV चैनलवा पर यही तो करते आ रहे थे इ।

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जब स्क्रीन काली कर ली थी

वर्ष 2019 में इस व्यक्ति को पत्रकारिता के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ध्यान देने वाली बात है कि शांति और समरसता लाने के लिए एक समय मलाला यूसुफजई को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, आगे आप स्वयं समझदार हैं। रही बात पत्रकारिता की तो वो उसी दिन खत्म हो चुकी थी जिस दिन रवीश कुमार ने नोटबंदी के विरोध में अपनी स्क्रीन काली कर ली थी और जो व्यक्ति जमीन से हटकर केवल स्टूडियो और फ़ेसबुक पर बकैती झाड़ता फिरे वो और कुछ भी हो जाए, पत्रकार तो कतई नहीं हो सकता।

हम तो बस यही कहेंगे कि कभी अपने वक्तव्य से सत्ता की चूलें हिला देने वाले रवीश कुमार को समझना चाहिए कि वो मोहल्ले का वो बुढ़ऊ हो चुके हैं, जो चाहता है कि सब उसकी सुने पर उसे इस भ्रम से निकल जाना चाहिए कि कोई भी उसे भाव नहीं देगा।

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