Arjun Mahabharat: आज से कई हजार वर्ष पूर्व द्वापरयुग में महाभारत का युद्ध हुआ था जिसका उद्येश्य था अधर्म का मर्दन कर धर्म की स्थापना करना। जब भी महाभारत के युद्ध की चर्चा होती है तो उन शक्तिशाली और निपुण योद्धाओं की भी चर्चा होने लगती है जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया। इन योद्धाओं के पास दिव्यास्त्रों का भंडार था, ये सभी अपनी-अपनी युद्ध कला में पूर्ण रूप से पारंगत थे और अपने-अपने पक्ष में रहते हुए अपने पराक्रम का प्रदर्शन भी करते रहे थे। जैसे- गंगा पुत्र भीष्म, गुरु द्रोण, पांचाल नरेश द्रुपद, गांधारी पुत्र दुर्योधन, दुर्योधन का मित्र कर्ण, पांचों पांडव। लेकिन प्रश्न यहां यह है कि महाभारत के युद्ध में योद्धा तो बहुत थे लेकिन उन सभी में महान योद्धा कौन था? तो इसका उत्तर है केवल और केवल पांडु पुत्र, धनुर्धारी अर्जुन, लेकिन ऐसा क्यों और कैसे तो इसे समझने के लिए आइए इस पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।
अत्यंत बलशाली अर्जुन (Arjun Mahabharat)
पांचों पांडवों में से एक अत्यंत बलशाली अर्जुन को कई अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त था, उनके पास त्रिदेवों के तीनों दिव्यास्त्र क्रमशः- ब्रह्मा जी का ब्रह्मास्त्र, भगवान विष्णु का नारायणास्त्र और शिवजी का पाशुपतास्त्र प्राप्त था। यह तो अर्जुन (Arjun Mahabharat) की महानता ही थी कि उनके पास तीन दिव्यास्त्र होने के बाद भी उन्होंने कभी भी युद्ध के समय इनका प्रयोग नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपने साधारण बाणों का ही प्रयोग किया। अन्यथा उनके दिव्यास्त्रों के प्रहार से पूरा महाभारत छणभर में समाप्त हो सकता था। अर्जुन इन दिव्यास्त्रों के प्रयोग से विश्वभर में होने वाले विध्वंस को भलीभांति जानते थे, उन्हें इस बात का भी भान था कि यदि वो एक योद्धा हैं तो अपनी शक्तियों को नियंत्रण में भी उन्हें ही रखना है और इस बात का भी ध्यान रखना है कि इससे साधारण और निर्दोष जनमानस को कोई हानि न हो।
हालांकि महाभारत के युद्ध के बाद मुर्खतापूर्ण रूप से गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने की बात आती है जिससे उसने वीर अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को गर्भ में ही मारने का प्रयास किया था ताकि पांडवों के कुल का अंत किया जा सके। हालांकि श्रीकृष्ण ने परीक्षित के प्राणों की रक्षा की थी। इस तरह आप अर्जुन की महानता को और अच्छे से समझ सकते हैं।
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सव्यसाची और बुद्धिमान अर्जुन (Arjun Mahabharat)
अर्जुन अपने समय के सबसे शक्तिशाली धनुर्धर और योद्धा थे, वो सव्यसाची अर्थात दोनों हाथों से बाण चलाने वाले एक निपुण धनुर्धर थे। अंधेरे में युद्ध करना, निद्रा पर विजय प्राप्त कर देर तक युद्ध करना और अपनी एकाग्रता से अचूक लक्ष्य को भी साध लेना जैसी कई कलाओं में वो निपुण थे।
अर्जुन (Arjun Mahabharat) की बुद्धिमत्ता का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने श्रीकृष्ण की नारायणी सेना के स्थान पर महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने का प्रण करने वाले श्रीकृष्ण को चुना था। वो जानते थे कि विशाल नारायणी सेना से अधिक उन्हें युद्ध जीतने के लिए श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
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धैर्यवान अर्जुन
पूरे महाभारत में जिस प्रकार का धैर्य अर्जुन ने दिखाया वो अप्रतीम था। द्रौपदी के चीरहरण की घटना के समय अर्जुन चाहते तो अपने गाण्डीव से सबका अंत कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की बातों का सम्मान किया, इतना ही नहीं क्रोध से भर चुके अपने दूसरे भाई भीम को भी शांत कराया।
युद्ध से थोड़ा पीछे जाकर खांडवप्रस्थ की घटना पर भी चर्चा करना होगा जिसमें अर्जुन के धैर्य, सूझबूझ और बड़ों के लिए सम्मान भाव का परिचय मिलता है। खांडवप्रस्थ पूरी तरह से एक वन ही था जहां पांडवों को जाने का आदेश दे दिया गया और अपने बड़ों के सम्मान हेतु बिना किसी विरोध के सभी पांडव वहां चले भी गए। यहां भी अर्जुन चाहते तो खांडवप्रस्थ जाने के स्थान पर विद्रोह करते और अपनी शक्तियों के बल पर एक छण में युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बना सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
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जब युद्धभूमि में भावुक हुए अर्जुन
अर्जुन गाथा यहीं समाप्त नहीं होती है बल्कि आपको युद्धभूमि का वो क्षण स्मरण करना चाहिए जब अर्जुन अपनों पर प्रहार करने में संकोच कर रहे थे- पितामह भीष्म, गुरु द्रोण यहां तक की दुर्योधन के लिए भी वो भावुक हो गए थे। अर्जुन के साथ, उनकी पत्नी द्रौपदी के साथ और उनके अग्रज और अनुजों के साथ जितना अन्याय किया गया उसके बाद तो उन्हें विपक्ष के सभी योद्धाओं के लिए घृणा का भाव ही रखना चाहिए था लेकिन अर्जुन की महानता तो देखिए कि वो अपने गुरु, अपने भाई, अपने संबंधियों के लिए युद्धभूमि पर ही भावुक हो रहे हैं, उन पर प्रहार करने से हिचक रहे हैं।
पिछले 70 वर्षों से अर्जुन (Arjun Mahabharat) को कमजोर साबित करने का अभियान चलाया जा रहा है। कुछ कथित साहित्यकारों और कवियों ने अर्जुन की वीरता को बहुत ही चतुराई से दबा दिया और कर्ण को श्रेष्ठ योद्धा के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। जिसका उदाहरण रश्मिरथी जैसी रचनाएं हैं। जबकि सत्य यह है कि महाभारत अर्जुन की वीरता की महागाथा है।
एक शक्तिशाली व्यक्ति जब धैर्य को धारण करे, कर्मनिष्ठ और आज्ञाकारी हो, बुद्धिमान और सदाचारी हो, जो महानता के हर उस गुण को धारण करे जिससे उसका महान होना प्रमाणित हो रहा हो, ऐसे ही महान योद्धा थे अर्जुन जिनकी गाथा गायी जाती रहनी चाहिए युगों-युगों तक।
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