आपके हिसाब से किसी भी योग्य व्यक्ति को अपनी योग्यता सिद्ध करने में कितना समय लगता है 1 साल, 2 साल अरे चलो मान लेते हैं 5 साल। लेकिन अगर 17 सालों तक कोई व्यक्ति अपनी योग्यता को सिद्ध करने में असफल हो जाए तो इसका सीधा अर्थ यही होता है कि वो व्यक्ति योग्य है ही नहीं। बीते 17 सालों से बिहार की कमान नीतीश कुमार के हाथों में हैं लेकिन राज्य की स्थिति में नाम मात्र भी सुधार नहीं कर पाये हैं। ऊपर से उनकी केवल बोलने वाली शराब बंदी की नीति ने लोगों को परेशान करके रख दिया है, वो अलग।
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शराब फिर बनी काल
एक बार फिर से नीतीश कुमार की नाकामियों का पर्दाफाश हुआ है। शराबबंदी होने के बाद की यही शराब बिहार के लोगों के लिए काल बन बैठी है। अभी हाल ही में बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत हो चुकी हैं। जहरीली शराब पीने की वजह से अब तक 50 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। एक ओर जहां कई लोगों के घर उजड़ गए। वहीं नीतीश कुमार घटना को गंभीरता से लेना कोई कार्रवाई करना तो दूर की बात रही उल्टा वो उटपटांग बयानबाजी करते, अपने किए का दोष दूसरों पर मढ़ने के प्रयास करते नजर आ रहे हैं। क्या यही एक मुख्यमंत्री का काम होता है? यही कारण है कि विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दल तक नीतीश कुमार पर सवाल उठा रहे हैं और राष्ट्रीय जनता दल के विधायक और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने इन मौतों को “सत्ता संरक्षित नरसंहार” तक करार दिया है।
नीतीश का शर्मनाक बयान
छपरा में जहरीली शराब से मौत के मामले में जहां जनता नीतीश कुमार के किसी कड़े कदम का इंतज़ार कर रही है तो वहीं वो अपने बेबुनियादी बयानो में ही उलझे हुए हैं। छपरा शराब कांड पर गैर-जिम्मेदाराना और बेशर्मी भरा बयान देते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि शराब बुरी चीज है। बिहार की महिलाओं के कहने पर ही शराब को बंद किया गया था। राज्य में शराबबंदी पूरी तरह से सफल हुई है। शराब पीना बुरा है. जो पियेगा वो मरेगा। जहरीली शराब से शुरू से ही लोग मरते हैं, इससे अन्य राज्यों में भी लोग मरते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा है कि लोगों को सचेत रहना चाहिए क्योंकि जब शराबबंदी है तो खराब शराब मिलेगी ही। इस पर पूरी तरह से एक्शन लिया जाएगा। एक्शन? लगता है नितीश फिर से एक्शन के नाम लोगों से केवल झूठे बातें करेंगे।
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नीतीश कुमार को जब लगा कि उनके इस बयान से कुछ नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपनी नाकामियों का ठीकरा भाजपा पर फोड़ने का सोचा। विधानसभा में जहरीला शराब के चलते जब विपक्ष उनपर चढ़ गयी, तब नीतीश कुमार का कहना था कि भाजपा के लोग ही शराब बिकवा रहे हैं। सब भाजपा के लोग ही करवा रहे हैं। वाह ये तो वहीं बात हो गयी न कि कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
ये कोई पहला मामला नहीं है जब बिहार में शराब से इतने लोगों की मौत हुई हो। अभी कुछ महीनों पहले ही नालंदा जिले के सोहसराय में जहरीली शराब पीने की वजह से 11 लोगों की मौत का मामला सामने आया था। वहीं उसके पहले गोपालगंज जिले में भी जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की मृत्यु हुई थीं। ऐसे मामले बिहार से हर थोड़े महीने में सामने आते ही रहते हैं, जब बड़ी संख्या में लोग शराब के कारण जान गंवाते हैं। इन सबके बावजूद नीतीश इससे कोई सबक तो लेते नहीं।
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छह साल से शराबबंदी की नौटंकी
देखा जाये तो नीतीश कुमार के शराबबंदी करने के पीछे जनता का कोई भला तो था नहीं। वो तो बस अपना उल्लू सीधा करने में लगे थे। उनके लिए तो शराबबंदी वोट बटोरने का एक जरिया थीं। क्योंकि ये बात तो सभी को पता है कि अधिकतर शराब की लत उन लोगों को होती है जो थोड़े निचले स्तर में अपना जीवन यापन कर रहे होते हैं। इनमें से कई लोग शराब पीकर घर की महिलायों पर भी अत्याचार भी करते हैं। ऐसे में बस नीतीश कुमार ने यही पर अपनी चाल खेली और शराबबंदी करके महिलायों की सहानुभूति के साथ-साथ उनके वोट भी अपनी ओर कर लिए।
साल 2016 में नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू की थी, जिसमें वो पूरी तरह से असफल हुए थे। बिहार में शराब बंद तो नहीं हुई वहीं यहां माफियाओं का राज आ गया। क्योंकि नीतीश कुमार की एक खासियत है कि वो किसी भी नियम को लागू करने के बाद जमीनी स्तर पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, यह देखना शायद भूल जाते हैं। ऐसा नहीं कि उनको वो नियम याद नहीं आता है। बस कभी-कभी उनको नियम याद आने में 6 से 7 सालों का समय लग जाता है। हाल ही में शराब बंदी को लेकर छह सालों बाद उनकी नींद खुली थी और उन्होंने इसे लेकर फिर से एक बड़ा नियम लागू करने का निर्णय लिया था।
दरअसल, कुछ समय पहले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने ऐलान में कहा था कि जो कोई भी शराब का धंधा छोड़ देगा, उसे बिहार सरकार एक लाख रुपये की जीविकापार्जन के लिए देगी। लेकिन इससे भी शराब बंदी पर क्या असर पड़ा है ये तो आपको छपरा में होने वाली मौते से समझ आ ही गया होगा। इससे देखकर ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि इन सभी लोगों के मौत के जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि बिहार की सरकार ही है, जो शराबबंदी को राज्य में सही तरीके से लागू नहीं कर पाई।
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देखा जाये तो छह वर्षों से बिहार में केवल शराबबंदी की नौटंकी ही चल रही है। बिहार में आसानी से शराब बनती, मिलती, बिकती है और इसके बाद लाशें बिछ जाती है। इतना सब होने के बाद भी राज्य के मुखिया नीतीश जब उनकी शराबबंदी पर सवाल उठते हैं, तो वो गुस्से से लाल हो जाते हैं और सारा दोष कभी शराब पीने वालों पर तो कभी उस पार्टी पर डालने लगते हैं, जो सत्ता में है ही नहीं और स्वयं अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाते हैं। ऐसे में सवाल यही उठते हैं कि छह साल हो चुके हैं बिहार में शराबबंदी लागू हुए, आखिर कब यहां शराब की वजह से मौत का सिलसिला रूकेगा? आखिर कब नीतीश कुमार इन घटनाओं को गंभीरता से लेकर बढ़ा कदम उठाएंगें या फिर वो यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठकर केवल तमाशा ही देखते रहेंगे?
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