जब ‘सभ्य यूरोपियन’ कुल्ला करने के लिए करते थे मानव मूत्र का उपयोग

यूरोप के लोगों का दैनिक जीवन जीने का तरीका बहुत गंदा था। प्राचीन रोमन लोग अपने दांत और मुंह साफ करने के लिए मानव मूत्र का उपयोग किया करते थे। इसके पीछे इनका तर्क जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे।

यूरोप मूत्र

Source- TFI

विकास क्या है और इसकी परिभाषा और पराकाष्ठा क्या है? ये अभी तक कोई पूर्ण रूप से तय नहीं कर पाया है और न हीं भविष्य में कोई तय कर पाएगा। क्योंकि प्रत्येक समाज और उसमें रहने वाले लोगों के लिए विकास की परिभाषाएं अलग-अलग हैं। मनुष्य को एक अच्छा जीवन जीने के लिए मूलभूत सुविधाओं और स्वच्छता की आवश्यकता तो होती ही है। परंतु तब क्या जब आपको पता चले कि आज जो लोग तथाकथित आधुनिक बनकर दुनिया में स्वच्छता के पर्याय बने हुए हैं उनका दैनिक जीवन जीने का तरीका इतना गंदा था कि यूरोप के लोग मानव और पशु मूत्र का उपयोग कर अपने चहरे और दांतों को चमकाने का काम किया करते थे। इस लेख में हम जानेंगे सभ्य यूरोप के लोगों के बारे में जो मूत्र को माउथ वॉश के रूप में उपयोग किया करते थे।

इसके बारे में जानकार आप आश्चर्य में पड़ सकते हैं, आपको घिन्न आ सकती है, परंतु ऐसा ही होता था। पहली बार में शायद आप विश्वास न करें लेकिन जब इसके बारे में अध्ययन करना प्रारंभ करेंगे तो पता चलेगा कि यूरोप के लोगों का दैनिक जीवन जीने का तरीका कितना गंदा था। आज हम आपके साथ यूरोप के रोम की ओरल हाइजीन यानी मौखिक स्वच्छता के इतिहास के बारे में जानकारी साझा करने जा रहे हैं।

दरअसल, यूरोप एक बदबूदार जगह हुआ करती थी यह तो सर्वविदित है लेकिन दांत और मुंह साफ करने के लिए रोमन लोग मानव मूत्र का उपयोग करते थे ये बड़ा ही आश्चर्यजनक और मन खराब करने वाला विषय है। क्योंकि जानवर भी मूत्र त्याग करने के बाद उसका उपयोग नहीं करते हैं फिर यूरोप के लोग तो मानव हैं।

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मूत्र उपयोग करने के पीछे की धारणा

रोम के लोगों द्वारा मानव और पशु मूत्र उपयोग करने के पीछे तर्क ये दिया जाता है कि मूत्र में अमोनिया, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन का मिश्रण होता है, जो सफाई करने के काम में आता है। यह सत्य है कि मूत्र में अमोनिया होता है और ये साफ-सफाई के लिए उपयुक्त भी होता है। परंतु प्रश्न है कि क्या अमोनिया होने के कारण उसे दांत चमकाने में उपयोग कर लिया जाएगा? इस प्रकार तो मानव दूसरे अपशिष्ट भी करता है उसे भी कहीं न कहीं उपयोग कर लीजिए ताकि दुनिया में कचरे और गंदगी दोनों की समस्या समाप्त हो जाए।

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मूत्र का व्यापार भी होता था

मध्यकालीन रोम में मानव और पशु मूत्र को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। उनका मानना था कि यह एक ऐसा पदार्थ है जिससे न केवल दांत, मुंह साफ बल्कि कपड़े भी साफ हो सकते हैं। इसलिए धीरे-धीरे रोम में मूत्र उपयोग करने का चलन बढ़ता चला गया और लोग इसका व्यापार तक करने लगे। यही नहीं अध्ययन किया जाए तो कई स्थानों पर इस बात का भी जिक्र मिलता है कि मूत्र के व्यापार करने पर टैक्स भी लिया जाता था। इसके अलावा ये भी बताया जाता है कि रोम में दुकानों के बाहर एक पात्र रखा रहता था जिसमें लोग कभी भी आकर मूत्र विसर्जन कर सकते थे।

अब लगे हाथ बात भारत की भी कर लेते हैं। प्राचीन समय में भारतीय लोग दांतों की सफाई करने के लिए प्राकृतिक तरीकों को अपनाते थे। भारत के लोग आम तौर पर पेड़ों के टहनियां से बने दातुन का उपयोग किया करते थे। दातुन दांत के हर कोने तक पहुंचने के लिए पर्याप्त होता है जो नीम, बबुल, आम के पेड़ की टहनियों से बने होते हैं। भले ही ये स्वाद में कड़वा होता है परंतु इसमें जीवाणुरोधी और रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जिससे मौखिक स्वच्छता बनाए रखने में सहायता मिलती है। आज भी कई लोग दातुन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से भारतीय हमेशा से ही प्रकृति से जुड़े रहे। अब आप स्वयं ही सोचिए आज सबको सफाई पर ज्ञान देने वाला यूरोप साफ-सफाई के मामले में कितना पिछड़ा हुआ था।

रोमन लोग कैसे करते थे मूत्र का उपयोग?

रोमन लोग मूत्र का उपयोग अलग-अलग तरीके से करते थे। जैसे दांतों और मुंह को साफ करने के लिए पानी में मिलाकर और कपड़े धोने कि लिए डिटर्जेंट के रूप में उपयोग करते थे। परंतु प्रश्न यह पूछा जाता है कि मूत्र का उपयोग करने के प्रमाण कहां है? तो बता दें कि एक रोमन कवि “गायस वैलेरियस कैटुलस” ने अपनी एक कविता में दो पात्रों के बीच होने वाले संवाद में इसका उल्लेख किया है।

ये थी रोम की मूत्र उपयोग गाथा। इसके बारे में अगर संक्षेप में कहा जाए तो ये इतनी घृणा से भरने वाला विषय है जिसके बारे में पढ़ते हुए अगर कोई कल्पना करने लगे तो उल्टी कर सकता है। यही नहीं हमने पहले भी यूरोपीय लोगों की मल त्याग व्यवस्था के बारे में बताया है, जिसे आप नीचे दिए गए वीडियो में देख सकते हैं।

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