“अरे नेहरू जी ने इस देश के लिए इतना कुछ किया, तुम संघियों ने किया ही क्या है?”
“इंदिरा जी और राजीव जी न होते, तो न जाने हमारे देश का क्या होता?”
क्यों हुई थी कांग्रेस की स्थापना?: ऐसे न जाने कितने विचार और बयान आपने कभी न कभी किसी रिश्तेदार, किसी संबंधी या किसी ऐसे व्यक्ति से सुने होंगे, जो या तो कांग्रेस का सदस्य रह चुका है या फिर उसका काफी समय से समर्थन करता आया है। परंतु क्या आपको पता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस केवल नाम की भारतीय थी और 1885 में स्थापना के बाद 1930 तक संपूर्ण स्वतंत्रता यानी ‘पूर्ण स्वराज’ उसके एजेंडे तक में नहीं था?
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कांग्रेस की स्थापना
आज भी इस बात पर कई कांग्रेसी नाक भौं सिकोड़ लेंगे परंतु सत्य तो यही है कि प्रारंभ में कांग्रेस का राष्ट्रीयता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। होता भी कैसे, जब रिमोट कंट्रोल ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में था और कांग्रेस की स्थापना में एक अंग्रेज अफसर की प्रमुख भूमिका थी। ज्ञात है कि 1884 के अंत में भारतीय राजनेता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी एवं व्योमेश चंद्र बनर्जी के साथ मिलकर पूर्व ICS अफसर एलेन ओक्टेवियन ह्यूम (एओ ह्यूम) ने इंडियन नेशनल यूनियन का गठन किया। फिर इसी यूनियन ने बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में 28 दिसंबर 1885 को एक बैठक बुलाई गई, जिसमें समस्त प्रबंध एओ ह्यूम ने किया था। इस अधिवेशन के सर्वप्रथम सभापति बने व्योमेश चंद्र बनर्जी, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। उसी अधिवेशन में “इंडियन नेशनल कांग्रेस” की स्थापना की गई।
वर्तमान इतिहास के अनुसार, ह्यूम भारतवासियों के सच्चे मित्र थे। उन्होंने कांग्रेस के सिद्धांतों का प्रचार अपने लेखों और व्याख्यानों द्वारा किया। इनके मित्रों में दादाभाई नौरोजी, सर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, सर फिरोज़ शाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले इत्यादि शामिल थे। इनके द्वारा शासन तथा समाज में अनेक सुधार हुए।
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1857 क्रांति से भयभीत हो गए थे
परंतु ठहरिए, अगर उन्हें भारत से लगाव था तो फिर वो भारत के हितों के विरोधी कैसे हो सकते हैं? इस कथा की जड़ें 1857 के क्रांति तक जाती है, जो इनके वास्तविक चरित्र को सामने लाती है। जब 1857 में भारतीय विद्रोह अपने चरमोत्कर्ष पर था तो उस समय एलन ओक्टेवियन ह्यूम इटावा के कलेक्टर हुआ करते थे। तत्कालीन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के चर्चित बंगाल सिविल सेवा के अंतर्गत चयनित होकर वह 1849 में अधिकारी बने और सर्वप्रथम उत्तर प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) के जनपद इटावा में आये। 17 जून 1857 को उत्तर प्रदेश के इटावा मे क्रांतिकारी सिपाहियों से जान बचाने के लिये उन्हें साड़ी पहनकर ग्रामीण महिला का वेष धारण कर भागना पड़ा था।
ऐसे में वो समझ गए थे कि भारत की इस एकता को तोड़ना सरल नहीं होगा। वो यह भी जानते थे कि यदि 1857 जैसा दावानल फिर भड़का, तो ब्रिटिश शासन का भारत में सर्वनाश तय है। ऐसे में वो एक ऐसा संगठन बनाना चाहते थे, जिसमें कभी भी क्रांति की भावना न आए और वह भारतीय राजनीति को अंग्रेज़ों के अनुकूल बनाए। ह्यूम ने ही कभी कहा था कि हम “एक ऐसा संगठन बनाना चाहते हैं, जो ब्रिटिश एम्पायर के लिए उसी तरह काम आए, जैसे एक प्रेशर कूकर के लिए सेफ़्टी वॉल्व”। कांग्रेस यही सेफ़्टी वॉल्व थी।
अगर कांग्रेस सच में भारतीय थी तो 1905 में विरोधी गुट क्यों बने? आखिर क्यों इस संगठन में एक नरम दल और गरम दल की उत्पत्ति हुई? आखिर क्या कारण था कि गांधी के आने के बाद भी 1929 तक इस संगठन का मूल उद्देश्य स्वराज के नाम पर डॉमिनियन स्टेटस की मांग करना था। क्यों इस संगठन में दो बार विघटन हुआ- एक बार “लाल बाल पाल” की तिकड़ी के कारण और एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कारण?
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इन सब के कारण लगभग एक ही है – कांग्रेस की ब्रिटिश जड़ें। यदि एओ ह्यूम वास्तव में भारतीय हितों की सोचते, तो वो इस संगठन को स्वदेशी रखने पर काफी ज़ोर देते, न कि इस संगठन को “भूरे साहबों” का गुट बनाने में। यदि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वास्तव में भारतीय होती, तो किसी भी स्थिति में बंगाल का विभाजन नहीं होने देती, न ही जलियांवाला बाग नरसंहार पर मौन व्रत धारण करती और न ही लाला लाजपत राय की हत्या पर। ऐसे में आज के समय में जब कांग्रेसी स्वतंत्रता आंदोलन पर उपदेश देते हैं तो क्रोध कम, हंसी अधिक आती है।
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