पिछले कुछ समय में भारत का वैश्विक कद किस तरह से बढ़ा है, इसे बताने के लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता तो है नहीं। फिर चाहे रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान शांति स्थापित करने के लिए पूरी दुनिया का भारत की तरफ देखना हो या फिर ऐसी वैश्विक परिस्थितियों को संभालना हों कि स्वयं CIA तक आपकी प्रतिभा का लोहा माने, तो समझ जाइए कि भारत की वैश्विक प्रगति किस रूप में हुई है। परंतु कुछ लोग को यह बात अभी तक या तो समझ में नहीं आई है, या फिर उन्हें भारत की यह प्रगति रास नहीं आ रही। ऐसे में भारत ने वैश्विक संगठनों को अंतिम चेतावनी दे दी है कि या तो वे सुधर जाएं, नहीं तो भारत के पास और भी तरीके अथवा मार्ग उपलब्ध हैं।
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संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारत की वर्तमान प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान प्रणाली, विशेषकर सुधार प्रक्रिया को आड़े हाथों लेते हुए कहा है, “संयुक्त राष्ट्र की सुधार प्रक्रिया बहुत जटिल है, क्योंकि इसमें कई चरण होते हैं। प्रथमत्या आपको UN के चार्टर में सुधार करना चाहिए, आपको ये सुनिश्चित करना है कि सुरक्षा परिषद के P5 (स्थाई सदस्य) इस प्रस्ताव का विरोध या वीटो न कर पाए। इसके अतिरिक्त ऐसे भी कई लोग हैं, जो नवनियुक्त परिषद में दूसरों को नहीं देखना चाहेंगे। अब यह प्रक्रिया काफी जटिल है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि यहां पर सुधार असंभव है!”
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं रही। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा ने ये भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने यही अड़ियल रुख आगे भी अपनाया, तो ऐसा नहीं है कि भारत एवं विकासशील देशों के पास अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं। रुचिरा के अनुसार- “आज हमारे पास लगभग दो सौ सदस्य हैं, परंतु ऐसा तो नहीं लगता कि उनकी आवाज़ें सुनी भी जा रही है। उदाहरण के लिए अफ्रीका से आने वाले छोटे छोटे देशों या अन्य देशों की कौन सुनता है? उनका प्रतिनिधित्व ऐसे किया जा रहा है, मानों उनके पास स्वयं के निर्णय लेने की शक्ति नहीं, सब कुछ पहले से तय होगा। यदि इसमें सुधार नहीं किया गया, तो UN की जगह अन्य लोकतांत्रिक संस्थाएं भी ले सकती हैं, जैसे कि जी 20 इत्यादि।”
भारत को मिली G-20 की कमान
यहां गौर करने वाली बात ये है कि रुचिरा का ये बयान ऐसे समय में आया है जब G-20 जैसे समूह की अध्यक्षता भारत संभाल चुका है। अगले एक वर्ष में G-20 की कई बैठक आयोजित होने वाली है। इस दौरान भारत को अपनी वैश्विक नेतृत्व क्षमता को प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा। इस लिहाज से उनका ये बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। रुचिरा कंबोज ने यह बात यूं ही नहीं कही। आज के समय में भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, भारत के एक संकेत पर विश्व में व्यापक परिवर्तन पड़ता है, जिसका प्रभुत्व अमेरिका जैसे देशों तक को मानना पड़ता है, चाहे विवशता से ही सही।
वहीं कुछ दिनों पूर्व रुचिरा ने महासचिव एंटोनिया गुटरेस को लिखे एक पत्र में कहा था, “देखिए, दुनिया वैसी नहीं है जैसी 77 साल पहले थी। संयुक्त राष्ट्र के 193 राज्यों के सदस्य 1945 में 55 सदस्य देशों के तीन गुना से अधिक हैं। हालांकि, वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सुरक्षा परिषद की संरचना आखिरी बार 1965 में तय की गई थी और यह संयुक्त राष्ट्र की व्यापक सदस्यता की वास्तविक विविधता को प्रतिबिंबित करने से बहुत दूर है।”
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भारत की ओर से UN के महासचिव को जारी इस अवधारणा नोट में कहा गया कि पिछले सात दशकों के दौरान नई वैश्विक चुनौतियां उभरी हैं, जैसे कि आतंकवाद, कट्टरवाद, महामारी, नई और उभरती प्रौद्योगिकियों से खतरे, गैर-राज्य अभिनेताओं की विघटनकारी भूमिका और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज करना। इन सभी चुनौतियों के लिए एक मजबूत बहुपक्षीय प्रतिक्रिया का आह्वान किया गया है और यदि ऐसा करने में संयुक्त राष्ट्र असमर्थ रहा, तो भारत एवं अन्य देशों के पास बहुत विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसे में भारत का उद्देश्य स्पष्ट है- या तो UN अन्य शक्तियों को स्वीकारें और उन्हें भी प्रतिनिधित्व का अवसर दें, अन्यथा अपने विनाश को देखने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा।
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