बजट से ठीक पहले मोदी सरकार के द्वारा लिए गए इस महत्वपूर्ण निर्णय से होगा लाभ ही लाभ

भले ही एनएफएसए के तहत अनाज बेचने से सरकार को अधिक लाभ न हो लेकिन यह राजकोषीय घाटे के अंतर को पाटने में मददगार साबित हो सकता है।

PMGKAY योजना

SOURCE TFI

देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में बजट की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश की जनता को भिन्न-भिन्न प्रकार की सुविधा पहुंचाने के लिए बजट को पेश किया जाता है, लेकिन कोविड-19 के बाद से बजट बनाने की प्रक्रिया पहले से कठिन हो गयी है। हालांकि अब मोदी सरकार ने बजट से ठीक पहले एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे वित्तीय लाभ हो सकता है।

इस तरह PMGKAY की हुई शुरुआत

जब देश में कोरोना महामारी का कहर छाया था तब गरीब लोग भूखे पेट न सोएं, इसलिए मोदी सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की शुरुआत की गई थीं। यह योजना उस समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता थीं। इस आपातकालीन उपाय के तहत 81.35 करोड़ भारतीयों को मुफ्त भोजन मिलता था लेकिन कुछ समय बाद जब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी तो मोदी सरकार ने सफल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) को बंद करने का निर्णय लिया और इस योजना को बंद कर दिया। अब इसके स्थान पर सरकार वैधानिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत उन्हें मुफ्त भोजन मुहैया करवाएगी। इससे पहले एनएफएसए के लाभार्थियों को तीन रुपये प्रति किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये किलो मोटा अनाज मिल रहा था। कोविड के दौरान, इन सभी लाभार्थियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत सब्सिडी वाले लोगों के अलावा मुफ्त अनाज मिल रहा था।

अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो लोगों को अभी भी मुफ्त अनाज मिलता रहेगा, भले ही ये अनाज पीएमजीकेएवाई से मिले या फिर एनएफएसए से। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने ट्विटर पर इसकी घोषणा की है. उन्होंने लिखा, “राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत दिसंबर 2023 तक 800 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा।”

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मोदी सरकार का निर्णय

सरकार के द्वारा मुफ्त अनाज देने का कार्य किया जा रहा था उसे एक योजना से दूसरी योजना में स्थानांतरित कर दिया गया है। मोदी सरकार ने भले ही यह निर्णय देश की जनता और अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर किया हो, लेकिन विपक्ष इसका उपयोग बीजेपी को गरीब विरोधी दिखाने के लिए भी कर सकती है। साल 2023 में १० राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जहां पर विपक्ष मोदी सरकार पर इसे लेकर सवाल खड़े कर सकती है।

हालांकि, काफी लंबे समय से PMGKAY योजना अस्थिर थी। इसमें भ्रष्टाचार और काला बाजारी जैसी समस्याएं भी अंतर्निहित थी। पीएमजीकेएवाई ने एनएफएसए के तहत पहले से उपलब्ध 5 किलोग्राम से अधिक और प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज प्रदान किया जा रहा था। इससे हर व्यक्ति को प्रति माह 10 किलो अनाज मिल रहा था। लेकिन प्रश्न यह है कि एक माह में प्रति व्यक्ति इतने अनाज का उपयोग किया जा रहा होगा? उत्तर है नहीं, क्योंकि सरकार ने कई मामलों में पाया कि आर्थिक सुधार होने के बाद भी इन अनाजों का एक बड़ा हिस्सा काला बाजार में बेचा जा रहा था। PMGKAY योजना को बंद करने के पीछे आर्थिक सुधार भी एक बड़ा कारण है।

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सांकेतिक जीडीपी में वृद्धि की उम्मीद

इससे भारत की सांकेतिक जीडीपी में 14.1 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही है, जो बजट में अनुमानित 11.1 प्रतिशत से अधिक है। इससे सरकार के कर संग्रह भी परिलक्षित हुए.  अक्टूबर तक प्रत्यक्ष कर संग्रह साल-दर-साल के आधार पर 24 प्रतिशत बढ़ गया था। साथ ही अप्रत्यक्ष कर संग्रह में भी बढ़ोतरी देखने को मिली। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर में बढ़ोतरी का संकेत इस ओर भी इशारा कर रहा था कि अब लोगों को अनाज की अधिक रूप में आवश्यता नहीं है।

PMGKAY योजना के पहले छह चरणों के दौरान, सरकार के खजाने में 3.45 लाख करोड़ रुपयें खर्च हुए। हालांकि पांचवें चरण के बाद इसे लागू करना आर्थिक रूप से कठिन हो गया था। लेकिन सरकार इसे आगे बढ़ाती चली गयी और इसे 2 और चरणों के लिए जारी रखा। लेकिन यूक्रेन-रूस संकट के बाद सरकार का ऐसा करना थोड़ा कठिन हो गया क्योंकि युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उर्वरक की कमी ने हमारे उर्वरक सब्सिडी बिल को 100 प्रतिशत से अधिक बढ़ा दिया था।

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दो मुख्य कारक

फर्टिलाइजर के लिए 1.09 लाख करोड़ के साथ ही वित्त मंत्री सीतारमण ने फूड पर सप्लीमेंट्री डिमांड के 80,345 करोड़ रुपये की और मांग भी पेश की। मुख्य रूप से इन दो कारकों के कारण, कुल सब्सिडी बिल 532,446.79 करोड़ रुपये हो गया है। यह बजट अनुमान से कहीं अधिक है और वित्त वर्ष 2011 के कोरोना वर्ष के 7.6 लाख करोड़ के सब्सिडी बिल के बाद दूसरा सबसे अधिक है।

भले ही एनएफएसए के तहत अनाज बेचने से सरकार को अधिक लाभ न हो लेकिन ये राजकोषीय घाटे के अंतर को पाटने के लिए काफी ज्यादा मददगार साबित हो सकता है. इसके आधार पर ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि अब सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही है।

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