कर्नाटक में कांग्रेस को पूरी तरह से विलुप्त करने की तैयारी में लगे हैं मल्लिकार्जुन खड़गे

कर्नाटक कांग्रेस पहले से ही गुटबाजी का शिकार है. डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया, एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं और ऐसे में कर्नाटक में खड़गे की एंट्री पार्टी का सत्यानाश कर देगी.

खड़गे

Source- TFI

भला इस बात से कौन अनजान होगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थिति मौजूदा समय में कैसी है। छह दशकों से भी अधिक समय तक सत्ता की बागडोर अपने हाथ में रखने वाली पार्टी की हालत किसी सूखे पेड़ की तरह हो चुकी है, जिसके पूरे पत्ते गिर गए हैं, टहनियां टूट गई हैं और अब जो तना बचा है, वह भी खोखला होते जा रहा है। कांग्रेस की बर्बादी की कहानी तो यूपीए-2 से ही शुरू हो चुकी थी लेकिन वर्ष 2014 के बाद तो स्थिति ऐसी बदली की अब इन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए भी जोड़ तोड़ करना पड़ा रहा है।

हाल ही में कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए कथित तौर पर लोकतांत्रिक पद्धति से चुनाव हुए और कर्नाटक से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के अध्यक्ष बने। दूसरी ओर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में लगे हुए हैं। हिमाचल प्रदेश में मिली जीत के बाद अब कांग्रेस पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर काफी सक्रिय दिख रही है लेकिन स्थिति बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। क्योंकि राज्य में कांग्रेस पार्टी पहले से ही गुटबाजी की समस्या से जूझ रही है और ऐसे में अगर खड़गे अपनी पूरी तरह से सक्रियता दिखाते हैं तो यह कर्नाटक कांग्रेस के लिए किसी भी तरह से सही नहीं होगा।

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कर्नाटक में ‘सीमित’ हैं खड़गे

दरअसल, कांग्रेस के लिए कर्नाटक एक अहम राज्य माना जा रहा है। न्यूज18 ने अपनी जनगणना डेटा के आधार पर वर्ष 2018 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसके अनुसार, कर्नाटक में दलितों या अनुसूचित जाति की आबादी सबसे अधिक यानी 19.5% है और प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या भी 6.95% है। यही कारण है कांग्रेस पार्टी को मल्लिकार्जुन खड़गे से उम्मीदें जुड़ गई हैं। लेकिन यह दांव उनपर ही उल्टा पड़ने वाला है। ज्ञात हो कि कांग्रेस पार्टी ने लगभग 24 वर्ष बाद गांधी परिवार से बाहर किसी को पार्टी की कमान सौंपी है।

लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे अपने से ही पार्टी से जुड़े फैसले लेंगे या कुछ करेंगे तो आप गलत हैं। क्योंकि कांग्रेस पार्टी के गैर कांग्रेसी अध्यक्षों का इतिहास काफी अलग रहा है और खड़गे के लिए भी स्थिति वैसी ही है। खड़गे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के करीबी हैं। ऐसे में कर्नाटक को लेकर जो भी निर्णय होगा वह खड़गे का तो बिल्कुल भी नहीं होगा। दूसरी ओर अगर कर्नाटक की स्थिति को देखा जाए तो कांग्रेस में पहले से ही दो गुट बने हुए हैं। एक है डीके शिवकुमार का गुट तो दूसरा है सिद्धारमैया गुट और मजे की बात तो यह है कि दोनों नेताओं को कर्नाटक का सीएम ही बनना है।

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क्या कर्नाटक में टूटने वाली है कांग्रेस पार्टी?

ध्यान देने योग्य है कि डीके शिवकुमार वर्तमान में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष  है। वहीं, सिद्धारमैया कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके है। दोनों के बीच पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। चूंकि सिद्धारमैया पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन जब से कुर्सी गई है, तब से ही वो तिलमिलाए बैठे हैं और आगामी चुनाव को लेकर उनकी महत्वाकांक्षा फिर से हिलोरे ले रही है। दूसरी ओर डीके शिवकुमार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होना चाहते हैं।

दोनों ही नेता प्रदेश में कांग्रेस के दो सबसे बड़े चेहरे हैं। डीके शिवकुमार की पकड़ दक्षिणी कर्नाटक में काफी अधिक है और उनकी भी महत्वाकांक्षा सीएम बनने की है। उसके लिए डीके शिवकुमार अपनी ओर से पूरा प्रयास करते दिख रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे को कर्नाटक चुनाव में प्रमुखता से आगे लेकर आती है तो राज्य में कांग्रेस पार्टी का तीसरा गुट बनेगा, जो न तो पार्टी के लिए सही होगा और न हीं इन नेताओं के लिए। अगर ऐसा होता है तो अन्य दलों के लिए चीजें काफी आसान हो जाएगी।

हालांकि, खड़गे को लेकर कर्नाटक की राजनीति में हवा अभी से ही चलने लगी है। अगर तीनों नेता प्रमुखता से सामने आते हैं तो इनके मतभेद का असर टिकट बंटवारे से लेकर वोटबैंक तक में देखने को मिलेगा। उनकी आपसी सिर फुट्टवल का पूरा फायदा भाजपा तो उठाएगी ही, साथ ही क्षेत्रीय पार्टियों का काम भी आसान हो जाएगा। इससे कर्नाटक कांग्रेस तीन अलग-अलग भागों में बंट जाएगी और उसमें किसी का भी कुछ भी कर पाना असंभव हो जाएगा। इसमें न ही पार्टी के कार्यकर्ता कुछ कर पाएँगे और न ही वोट देने वाले लोग।

दिलचस्प होगी अंदरुनी लड़ाई

आपको बताते चलें कि मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हो लेकिन अगर कर्नाटक में उनकी पकड़ की बात करें तो वह एक क्षेत्र तक ही सीमित हैं। खड़गे दलितों के बड़े नेता हैं। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उन्हें कभी हार नहीं मिली थी, वह कई बार विधायक और सांसद भी रह चुके हैं लेकिन चुनाव न हारने वाली उनकी परंपरा वर्ष 2019 में टूट गई थी। ऐसे में अब अगर उनके अंदर कर्नाटक को लेकर महत्वाकांक्षा उत्तपन्न होती है तो यह कांग्रेस को डूबाने का काम करेगी। इसके साथ ही डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बैठा व्यक्ति मुख्यमंत्री पद का दावेदार बने। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की हालत पहले से ही खराब है और अब कर्नाटक में खड़गे को लेकर चल रही बयार कर्नाटक कांग्रेस को कहां उड़ाकर ले जाएगी, यह किसी को भी नहीं पता है।

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