आपने अंडररेटेड क्लासिक्स, अंडेररेटेड फिल्मों के बारे में तो अवश्य सुना होगा परंतु कभी अंडररेटेड व्यंजन के बारे में सुना है? यदि नहीं, तो फिर आप खिचड़ी से बिल्कुल भी परिचित नहीं है। वो अलग बात है कि इस व्यंजन का नाम सुनते ही कुछ लोगों का मुंह छत्तीस कोने का बन जाता है परंतु यह एक ऐसा भोजन है, जो न केवल पौष्टिकता और गुणवत्ता से परिपूर्ण है, अपितु धर्म, जात, पात से परे, लगभग सभी लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। इस लेख में हम आपको विस्तार से खिचड़ी की कथा (Story of Khichdi) से अवगत कराएंगे, जो न केवल युगों युगों से भारतीयों का प्रिय व्यंजन है अपितु हमारे यहां इसके लिए तो एक विशेष त्योहार तक समर्पित है।
वैसे खिचड़ी (Khichdi) का उल्लेख आपको बीरबल की कथाओं में कई बार मिला होगा परंतु इसका इतिहास बेहद विविध और प्राचीन है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, इसके अनेक नाम होंगे परंतु खिचड़ी का मूल स्वरूप सबको प्रिय है। खिचड़ी कई तरह से बनाई जाती है और इसे केवल ‘बीमारों का खाना’ कहना बिल्कुल भी सही नहीं है। क्योंकि लंबे समय से इसे ‘बीमारों का खाना’ कहकर ही प्रचारित किया जाता रहा है।
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खिचड़ी के प्रकार
खिचड़ी (Khichdi) शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘खिच्चा’ से हुई है, जिसका अर्थ है चावल और दाल के मिश्रण वाला भोजन। खिचड़ी भी अनेक प्रकार की होती है –
1) खिचड़ी या सामान्य खिचड़ी: इसमें चावल के साथ उड़द की काली दली हुई छिलके सहित दाल और नमक का मिश्रण होता है।
2) भेदडी: इसमें चावल के साथ मूँग की दाल और नमक, हल्दी का मिश्रण होता है। यह मरीजो के लिए लाभकारी होती है।
3) तहरी: इसमें चावल, दाल, आलू, सोयाबीन, नमक, हल्दी, आदि का मिश्रण होता है।
खिचड़ी (Khichdi) हमारी संस्कृति का कितना महत्वपूर्ण भाग है, ये आप इन तथ्यों से भरपूर माप सकते हैं। उत्तर भारत में मकर सांक्रान्ति के पर्व को भी “खिचड़ी” के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन खिचड़ी खाने का विशेष रूप से प्रचलन है। बहुत कम ही आपको संसार में देखने को मिलेगा कि एक व्यंजन के लिए एक पर्व समर्पित कर दिया जाए, परंतु यही तो भव्यता है हमारे भारतवर्ष की। जब शिशु स्तनपान का त्याग करता है तो सर्वप्रथम भोजन के रूप में उसे खिचड़ी ही खिलाई जाती है, ऐसे में आप समझ सकते हैं कि खिचड़ी भारतीय संस्कृति का कितना महत्वपूर्ण भाग है।
इतिहास में खिचड़ी (Khichdi) का वर्णन
खिचड़ी (Khichdi) कितनी प्राचीन है, इसका पैमाना आप इस बात से लगा सकते हैं कि स्वयं हमारे शत्रु भी इसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाए। यूनानी आक्रांता सेल्यूकस निकेटर ने अपने संस्मरणों में बताया था कि कैसे खिचड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में चाव से खाई जाती है। इनके अलावा इब्न-बतूता, अफानासी निकितिन जैसे यात्रियों ने भी अपने संस्मरणों में खिचड़ी की लोकप्रियता के बारे में विस्तृत लेख रचा है। खिचड़ी (Khichdi) इतनी लोकप्रिय थी कि स्वयं मुगल तक इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे और इसका आइन-ए-अकबरी में काफी विस्तृत विवरण भी दिया गया है। यूं ही ‘बीरबल की खिचड़ी’ कथा इतनी प्रचलित नहीं हुई है। खिचड़ी इतनी लोकप्रिय है कि स्वयं अंग्रेज़ों ने भी इसे अपना लिया था और चर्चित एंग्लो इंडियन डिश, केडग्री (Kedgeree) इसी की देन है।
खिचड़ी (Khichdi) को अगर भारत की प्रथम पैन इंडिया डिश कहें तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि यह जितनी लोकप्रिय उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में है, उतनी ही लोकप्रिय कश्मीर, हिमाचल, गुजरात, यहां तक कि दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में भी है। दक्षिण भारत के अलग अलग प्रांतों में भले ही इसे खिचड़ी नाम नहीं दिया गया है परंतु इसका मूल स्वरूप और कॉम्पोज़िशन पूरा खिचड़ी से मेल खाता है।
तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में मकर सांक्रांति को पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। वहीं, कर्नाटक में इसका एक विशेष वर्जन काफी फेमस है– बिसिबेले भात, जिसमें प्रचुर मात्रा में मसाले और सब्जियों का मेल देखने को मिलता है। कई जगह तो नारियल और चना दाल की खिचड़ी (Khichdi) प्रसाद के रूप में भी बांटी जाती है। हरियाणा में तो खिचड़ी में बाजरा और ज्वार भी मिलाई जाती है, जिसे कोई घी के साथ तो कोई दही, लस्सी इत्यादि के साथ खाता है। कुल मिलाकर खिचड़ी (Khichdi) वो व्यंजन है, जिसे बच्चे, बूढ़े और युवा सभी प्रेमपूर्वक खाते हैं और जिसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व दोनों ही भरपूर है।
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