न्यूक्लियर एनर्जी यानी परमाणु ऊर्जा, जिसे लेकर कहा जाता है कि इससे बम और बिजली दोनों ही बनाए जा सकते हैं। लंबे समय से दुनियाभर के तमाम देश इन प्रयासों में लगे हैं कि कैसे परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बर्बादी नहीं कुछ सहज चीज बनाई जा सके। अब खास बात यह है कि न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) को लेकर अमेरिका को एक बड़ी सफलता हासिल हुई है। कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेट्री (LLNL) ने ऐसा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर बनाया है जिसमें “नेट एनर्जी गेन” होता है। विशेष बिंदु ये है कि इसके जरिए वैज्ञानिकों को फ्यूजन रिएक्टर से खपत से अधिक ऊर्जा पैदा करने में कामयाबी मिली है। न्यूक्लियर फ्यूजन को परमाणु संलयन भी कहा जाता है। इसमें सूर्य की तरह ही शक्ति प्रदान करने वाली ऊर्जा का निर्माण किया जाता है। इसे विश्व के लिए एक सहज भविष्य के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन आखिर न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) क्या है और कैसे इसके माध्यम से दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति आने वाली है? चलिए इसे समझते हैं।
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क्या है न्यूक्लियर एनर्जी?
न्यूक्लियर एनर्जी की बात करें तो नाभिकीय शक्ति वह शक्ति है जिसे नियंत्रित नाभिकीय अभिक्रिया से उत्पन्न किया जाता है। वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए वाणिज्यिक संयंत्र नाभिकीय विखण्डन का उपयोग करते हैं। नाभिकीय रिएक्टर से प्राप्त उष्मा पानी को गर्म करके भाप बनाने के काम आती है, जिसे फिर बिजली उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) क्या होता है तो आपको बता दें कि दो न्यूक्लियर दो तरीके से प्रतक्रिया करता है. एक को फिशन (विखंडन) और दूसरे को फ्यूजन (संलयन) कहते हैं। अब सरल शब्दों में कहें तो जब न्यूक्लियर 1 से 3, 3 से 9, 9 से 27 हो तो वह विखंडन होता है लेकिन जब न्यूक्लियर 27 से 9, 9 से 3 और 3 से एक हो जाएं तो वह संलयन कहलाता है। न्यूक्लियर विखंडन पर आधारित ऊर्जा तो हम सभी बम बनाने में भी देख चुके हैं और बिजली बनाने में भी लेकिन खास बात यह है कि न्यूक्लियर फ्यूजन का उपयोग विनाशकारी नहीं बल्कि सृजनकारी होता है।
क्या है न्यूक्लियर फ्यूजन?
न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) या संलयन वह न्यूक्लियर प्रक्रिया है जिससे सूर्य और बाकी तारे ऊर्जा पैदा करते हैं। इसमें दो परमाणु जुड़कर एक भारी तत्व का परमाणु बनाते हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि सूर्य के भीतर हाइड्रोजन के दो परमाणु मिलते हैं और हीलियम के परमाणु में बदल जाते हैं। इसे बेहद ही सकारात्मक माना जाता है जो कि ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है. अब पता चला है कि किसी भी पावर प्लांट में इसी प्रक्रिया के जरिए ऊर्जा बनाई जाती है जिससे बिजली बनाने की समस्या तक का अंत भी हो सकता है। अहम बात यह भी है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक दशकों से न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) पर आधारित रिएक्टर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। नाभिकीय संलयन पर आधारित रिएक्टर से साफ-सुथरी और सुरक्षित ऊर्जा विशाल मात्रा में मिल सकती है।
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अमेरिका को मिली सफलता
बरसों से चल रहे प्रयासों के बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस तकनीक में सफलता पाई है। अमेरिका की कैलिफोर्निया स्थित लॉरेंस लाइवमोर नेशनल लेबोरेटरी (एलएलएनएल) में दशकों तक चले प्रयासों के बाद यह सफलता मिली है। अमेरिका में ये सफलता इनर्शियल कॉन्फाइनमेंट फ्यूजन प्रक्रिया के जरिए हासिल की गई है। इसके तहत सूक्ष्म स्वर्ण सिलेंडरों की बमबारी की जाती है। इन सिलेंडर में हाइड्रोजन ईंधन के पैलेट मौजूद रहते हैं, जिनका आकार पेंसिल इरेजर जितना होता है। इस प्रक्रिया के जरिए गर्म प्लाज्मा और एक्स-रे पैदा होते हैं, जो आंतरिक विस्फोट को प्रेरित करते हैं। इससे ईंधन पैलेट में संपीड़न होता है, जिसके परिणास्वरूप होने वाले फ्यूजन रिएक्शन से ऊर्जा पैदा होने लगती है. इसे बेहद कीमती माना जा रहा है।
चीन भी कर चुका बड़ा प्रयोग
ऐसा नहीं है कि इस फ्यूजन तकनीक से बिजली बनाने की कोशिश केवल अमेरिका में ही की जा रही थी बल्कि दुनिया के कई देशों में इसके लिए प्रयास किए जा रहे थे. पिछले साल चीन ने इस मामले में बड़ी सफलता पाने का दावा किया था. खबरों में सामने आया है कि चीन में मिली सफलता अमेरिका में अभी मिली कामयाबी से बड़ी थी लेकिन वैज्ञानिकों ने ध्यान दिलाया है कि एलएलएनएल में लेजर के जरिए यह सफलता मिली है, जबकि दुनिया के ज्यादातर दूसरे हिस्सों में मैग्नेटिक फील्ड के जरिए फ्यूजन कराने की कोशिश की गई है।
अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर मैग्नेटिक फील्ड के जरिए न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) कैसे होता है तो चलिए इसे भी समझ ही लेते हैं. मैग्नेटिक फील्ड विधि में ईंधन को उस सीमा तक गरम किया जाता है, जब इलेक्ट्रॉन अणुओं से अलग होने लगते हैं। इससे इलेक्ट्रॉन्स के प्लाज्मा और आवेशित न्यूक्लाई का निर्माण होता है। यही न्यूक्लाई बाद में आपस में विलय (फ्यूजन) करते हैं। उस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। मैग्नेटिक कॉन्फाइनमेंट उपकरणों में प्लाज्मा तापमान कई बार 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक पहुंचा है लेकिन उससे उत्पन्न बिजली उपकरणों तक नहीं पहुंच सकी है। जब लेजर शोध से बिजली को उपकरणों तक पहुंचाने में भी कामयाबी मिल सकती है।
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अभी हो रहा है फिशन का उपयोग
बता दें कि दुनिया की ऊर्जा की जरूरत का करीब 10% न्यूक्लियर फिशन से आता है। दुनियाभर में ऐसे करीब 440 रिएक्टर्स हैं. 50 से ज्यादा देशों में करीब 220 रिसर्च रिएक्टर्स भी हैं जो मेडिकल और इंडस्ट्रियल आइसोटोप्स तैयार करते हैं. 92 रिएक्टर्स के साथ, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर एनर्जी प्रोड्यूसर है। इसके जरिए बिजली तो बन रही है लेकिन इसे सही उपयोग कभी माना ही नहीं गया है।
न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) में न्यूक्लियर फिशन से कहीं ज्यादा ऊर्जा पैदा हो सकती है, वह भी घातक रेडियोऐक्टिव बाय-प्रोडक्ट्स के बिना। अभी तक, लैब के भीतर फ्यूजन रिएक्शंस ट्रिगर करना टेढ़ी खीर साबित होता आया है क्योंकि नाभिकों को जोड़ने के लिए अत्यधिक दबाव और तापमान की जरूरत पड़ती है। फ्यूजन रिएक्शन के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा चाहिए होती है क्योंकि यह 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस या उससे ऊंचे तापमान पर होता है। यह खुद से होता रहे, उसके लिए जरूरी है कि जितनी ऊर्जा भीतर जाए, उससे कहीं ज्यादा पैदा हो। एक बार फ्यूजन का कॉमर्शियलाइजेशन हो गया तो हम कार्बन-फ्री बिजली बना सकते हैं जो कि एक बेहद सहज बात है।
न्यूक्लियर एनर्जी के फ्यूजन के फायदे
सारी विज्ञान की बातें एक तरफ, लेकिन आम आदमी के मन में बस एक ही प्रश्न हैं कि आखिर उसे इससे क्या हासिल होगा? बता दें तो इसके जरिए ऊर्जा यानी बिजली की समस्या का अंत हो सकता हैं। अभी हम कोयले से लेकर अलग-अलग तरह के जीवश्मों के जरिए बिजली बनाते हैं किंतु इस न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) की नई तकनीक के जरिए मिलने वाली बिजली जीवाश्मों की तुलना में अधिक मात्रा में होगी, जिससे जीवाश्मों के दोहन पर भी एक बड़ा विराम लगेगा।
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आने वाला युग बिजली पर ही निर्भर माना जा रहा है परिवहन से लेकर किसी भी इलेक्ट्रिक चीज को चलाने के लिए बिजली ही अहम है। ऐसे में मानव समाज की जीवाश्मों पर निर्भरता का अंत हो सकता है जिससे एक बड़ा फायदा क्लाइमेट चेंज को लेकर भी पड़ेगा। इसका बड़ा कारण यह है कि अभी जब बिजली बनाते हैं तो कोयले के जरिए तो पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसी के चलते ही हम वायु प्रदूषण का खतरा उठा रहे हैं। सड़कों पर चलने वाली कारें तक इसी से सर्वाधिक प्रदूषण उत्पन्न कर रही हैं लेकिन जब बिजली या ऊर्जा जीवाश्मों के बजाए सहज न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) के जरिए प्राप्त होगी तो उसमें किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण होगा ही नहीं।
सटीक शब्दों में कहें तो इसके जरिए हमें पर्यावरण की एक साफ हवा मिलेगी, साथ ही हमारी ऊर्जा की आवश्यकताएं भी पूरी हो जाएंगी। खास बात ये है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर्स को केवल और केवल हाईड्रोजन की जरूरत पड़ती हैं औ बड़ी बात यह है कि ये सब जगह मौजूद हैं। ऐसे में इसका कहीं भी आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे में यह न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) की तकनीक जितनी कामयाब होगी, हम सभी के लिए चीजें उतनी ही बेहतर होती चलीं जाएगी। हमें आने वाले समय में ऊर्जा प्रचुर मात्रा में मिलेगी। साथ ही इसके लिए हमें किसी भी तरह से पर्यावरण के साथ समझौता करना ही नहीं होगा।
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