उस दिन सत्ता के गलियारों में सुगबुगाहट कुछ ज्यादा थी. नई दिल्ली के आसमान पर मंडरा रहे बादलों में भारत के लिए सवाल थे. निशाने पर एस. जयशंकर थे. सवाल तो कठिन थे ही लेकिन सही जवाब का न होना उन्हें और कठिन बना रहा था. जयशंकर जानते थे कि जो कुछ हुआ है, वो नहीं होना चाहिए था लेकिन अब इसकी भरपाई वही करेगा जिसने इन अफवाहों को जन्म दिया है. शतरंज की चालें चली जाने लगीं. जयशंकर ने घोड़े की चाल का जवाब पैदल सिपाही से दिया और बाजी पलट गई. रायसीना की पहाड़ियां उन क्षणों की गवाह हैं, जब साउथ ब्लॉक में जयशंकर ने एक फोन कॉल उठाया और जर्मनी को अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी उठानी पड़ी. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे जयशंकर ने जर्मनी को कश्मीर मुद्दे को लेकर बयान बदलने पर मज़बूर कर दिया.
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जर्मनी को झुकना पड़ा है
महीना अक्टूबर का था. दिल्ली की अलसाई धूप में साउथ ब्लॉक डूबा हुआ था. विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस अलसाई धूप में भारत की रणनीति को साध रहे थे, तभी उन्होंने एक ख़बर देखी कि जर्मनी की विदेशी मंत्री एनालीना बेयरबॉक, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही हैं- यहां तक सब सही था लेकिन जब इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर को लेकर सवाल पूछा गया और उसका जवाब जर्मनी की विदेश मंत्री ने जो दिया उसे सुनकर साउथ ब्लॉक की अलसाई धूप भाग खड़ी हुई. अधिकारियों के फोन बजने लगे, चर्चाएं शुरू हो गईं. जर्मनी ने जो कहा था उसकी साउथ ब्लॉक ने उम्मीद नहीं की थी.
जर्मनी की विदेश मंत्री ने कहा, “मेरा मानना है कि दुनिया के प्रत्येक देशों के संघर्षों को समाप्त करने और यह सुनिश्चित करने में कि हम शांति से भरी दुनिया में रहें, इसमें हमारी एक भूमिका है. मेरी अपील सिर्फ़ यूरोप की स्थिति को लेकर नहीं है, जहां रूस ने यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ा हुआ है. हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम दूसरे क्षेत्रों को भी देखें जहाँ तनाव और युद्ध की स्थिति बनी हुई है. मैं कह सकती हूँ कि कश्मीर की स्थिति के संबंध में जर्मनी की भूमिका और ज़िम्मेदारी है. हालांकि हम शांतिपूर्ण समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र की बातचीत का समर्थन करते हैं.”
कश्मीर जोकि भारत का अखंड हिस्सा है, भारत का मुकुट है, भारत का गर्व है. कश्मीर जिस पर भारत किसी देश को कुछ भी घटिया बयान देने की अनुमति नहीं देता उस पर जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता की बात कैसे कर दी? साउथ ब्लॉक में जो बेचैनी थी वही पूरे देश में थी लेकिन जयशंकर शांत थे, धैर्य से मुस्कुराते हुए मानो कुछ हुआ ही न हो. जयशंकर, विदेश नीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, वो जानते थे कि जर्मनी अपना बयान बदलेगा बस देखना यह है कि कब बदलेगा. उसके बाद शुरू होता है भारतीय विदेश नीति का सबसे कूटनीतिक गेम प्लान.
विदेश मंत्रालय जर्मनी के बयान के विरोध में एक बयान तैयार करता है और उसे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची जारी करते हैं. जिसमें कहा गया, “वैश्विक समुदाय के सभी ईमानदार देशों पर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और विशेष रूप से सीमापार से अंजाम दिए जाने वाले आतंकवाद को ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी है. जम्मू और कश्मीर दशकों से ऐसे ही एक आतंकवादी अभियान का ख़ामियाज़ा भुगत रहा है जो अब भी जारी है.”
Our response to media queries on comments regarding Jammu and Kashmir during recent joint press conference of the Foreign Ministers of Germany and Pakistanhttps://t.co/sZZ88zfQVa pic.twitter.com/K3hqhLZbjM
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) October 8, 2022
इस मामले पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर स्वयं कोई बयान नहीं देते हैं लेकिन विदेश मंत्रालय के बयान के बाद बर्लिन में हड़कंप मच जाता है. हवाओं में भारत नाराज है- भारत नाराज है, की गूंज गूंजने लगती है. साउथ ब्लॉक में एक फोन की घंटी बजती है, बर्लिन ने नई दिल्ली को फोन किया है. बात क्या हुई किसी को नहीं पता. जयशंकर ने क्या कहा किसी को नहीं पता, जो पता है वो उतना ही है जितना जयशंकर ने ट्वीट करके बताया, “जर्मनी से फोन आया उस पर हमने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर बातचीत की”…
Received a call from FM @ABaerbock of Germany. Discussed our bilateral relationship, sustainable development and the Ukraine conflict.
Agreed to continue our conversations.
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) October 22, 2022
बयान से पलटी जर्मनी की विदेश मंत्री
बस, इसके बाद तूफान मानो थम गया. लोगों को लगा कि भारत ने कुछ नहीं किया, भारत शांत रह गया, भारत ने जर्मनी को बयान बदलने पर मजबूर नहीं किया लेकिन फिर आता है दिसंबर. नई दिल्ली में ठंडी हवाएं चलनी शुरू हो जाती हैं. सर्दी दिल्ली को अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं, तब जर्मनी की विदेश मंत्री एनालीना बेयरबॉक भारत दौरे पर आती हैं और यहां आकर जो बयान देती हैं, वो उस फोन कॉल पर हुई बातचीत का ही आउटकम होता है.
एक इंटरव्यू में एनालीना बेयरबॉक ने कहा, “मुझे स्पष्ट करने दीजिए, कश्मीर के मुद्दे पर जर्मनी का विचार बदला नहीं है. हम यकीन करते हैं कि कश्मीर का जो विवाद है वो भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय विवाद है. हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वो अपने मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत की शुरूआत करें. पिछले वर्ष LOC पर जो सीज़फायर को लेकर दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ, वो एक महत्वपूर्ण कदम था.”
इस बयान के मायने आप समझ गए होंगे लेकिन फिर भी सरल शब्दों में बता दें कि जर्मनी ने जो पहले बोला था उससे अब पलट गया है. जर्मनी के विदेश मंत्री ने अपना बयान बदल दिया है. इस बार उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अपील नहीं की बल्कि कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बताया है. बस, यही तो भारत चाहता था और यही हो गया. इसीलिए जयशंकर को विदेशी नीति का ‘शंकर’ कहा जाता है.
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