पंजाब और बिहार: बॉलीवुड ने दोनों राज्यों को जैसा दिखाया वास्तविकता उसके उलट है

पंजाब को दिखाना हो तो सरसों के लहलहाते हुए खेत, गन्ना चूसती हुईं ‘पंजाबी कुड़ियां’ दिखा दो और बिहार को दिखाना हो तो तमंचा, कट्टा, फायरिंग, गुंडागर्दी, हिंसा, अत्याचार, जातिवादी, दरिंदगी, गरीबी और बलात्कार दिखा दो.

पंजाब बॉलीवुड

source: TFIMEDIA

कुछ कहानियां समय कहता है. ऐसी कहानियां जो उस दौर के कहानीकार नहीं कह पाते. नहीं कह पाने के सबके अपने-अपने कारण हो सकते हैं- लेकिन कहानियां किसी ना किसी तरह से बाहर आती रही हैं और आती रहेंगी. कुछ सत्य भी समय के साथ सामने आते हैं- लेकिन रहते वो सदैव सत्य ही हैं. अब ऐसा ही एक सत्य हिंदुस्तान इन दिनों महसूस कर रहा है.

पंजाब और बिहार की वास्तविकता

पंजाब का नाम लेते ही आपके सामने सबसे पहले कौन-सी तस्वीर उभरती है? पीले फूलों से लदी हुई सरसों के लहलहाते हुए बड़े-बड़े खेत- इतने बड़े मानो अनंत क्षितिज तक जाते हों. खेतों में काम करता हुआ कोई मेहनती किसान. रंग-बिरंगे सुंदर-सुंदर कपड़े पहने हुए खेतों में गन्ना चूसती हुईं ‘पंजाबी कुड़ियां’- खेतों के पास ही बड़ा-सा घर- जहां हर तरफ खुशहाली है- वैभव है- समृद्धि है- चहुंओर खुशियां ही खुशियां हैं.

अब बिहार का नाम लीजिए. बिहार! नाम लेते ही क्या छवि दिमाग में आती है? सड़कों पर गुंडागर्दी. गलियों में फायरिंग और मारकाट. हर तरफ गंदगी. सड़कों पर पड़े हुए भूखे भिखारी या फिर दिहाड़ी मजूदर. हिंसा. अत्याचार. जातिवाद. दरिंदगी. बलात्कार और गरीबी.

सत्य बोलना! यही तस्वीर आपके मस्तिष्क में उभरती है ना? क्या यही सत्य है? क्या पंजाब वैसा ही है जैसी तस्वीर आप बना रहे हैं? क्या बिहार वैसा ही है जैसी तस्वीर आप अपने मन की आंखों से देख पा रहे हैं? या फिर इससे इतर वास्तविकता कुछ और है? तो चलिए, इस दुविधा को आपके लिए मैं ही सुलझा देता हूं. यह सत्य नहीं है, बल्कि छलावा है. एक ऐसा छलावा जोकि कई दशकों में आपके मस्तिष्क के अंदर सत्य के तौर पर परिभाषित करके भरा गया है. एक ऐसा छलावा जिसे जाने-अनजाने हम सबने सत्य मान लिया.

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आइए,  इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.

हम किसी भी प्रदेश को लेकर- किसी भी देश को लेकर- किसी भी स्थान को लेकर- किसी भी जाति विशेष को लेकर- किसी भी धर्म विशेष को लेकर नैरेटिव किस तरह से तैयार करते हैं?

इसका कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन इतना अवश्य है कि हमारे दिमाग में यह नैरेटिव एक दम से नहीं बनता. हम सिनेमा देखते हैं- सीरियल्स देखते हैं- कविताएं पढ़ते हैं- उपन्यास पढ़ते हैं- कहानियां पढ़ते हैं. यहां जिसको जैसा दिखाया जाता है- धीरे-धीरे वैसा ही नैरेटिव हमारे मस्तिष्क में उसको लेकर बनता जाएगा. यह कोई राज्य हो सकता है. कोई धर्म/जाति या फिर व्यक्ति हो सकता है. पंजाब और बिहार को लेकर जो भी नैरेटिव हमारे मस्तिष्क में है वो यहीं से आया है. विशेषतौर पर बॉलीवुड की फिल्में देखकर बना है.

पंजाब को बॉलीवुड ने कैसा दिखाया?

बॉलीवुड में पंजाबी फिल्मकारों की सदैव ही बहुतायत रही है. शुरूआत से ही, पंजाबी निर्देशकों का- प्रोड्यूसर्स का- एक्टर्स का बॉलीवुड में बोलबाला रहा है. इसका परिणाम यह हुआ कि इन लोगों ने पंजाब को एक बहुत ही समृद्ध राज्य के तौर पर- बहुत ही ख़ुशहाल राज्य के तौर पर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया.

बॉलीवुड ने पंजाब को खूब दिखाया. और हर बार वही बड़े-बड़े सरसों और गेहूं के खेत दिखाए. खेतों में किसान काम कर रहे हैं. किसान बहुत ही ईमानदार और मेहनती हैं. जो अपने खेतों से बहुत प्यार करते हैं. बड़े-बड़े घर दिखाए, जहां हर तरफ चहल-पहल है. सुंदर-सुंदर ‘पंजाबी कुड़ियां’- रंग-बिरंगे सलवार सूट में घूम रही हैं.

सभी खूब खाने-पीने वाले हैं- घी, भर-भरकर पीते हैं. सभी जीवन को मस्ती के साथ जीते हैं. सभी भांगड़ा करते हैं- गिद्दा करते हैं और खुश रहते हैं. वो अमीर हैं, ईमानदार हैं और परोपकारी भी हैं. कहीं कोई दुख नहीं- कहीं कोई कमी नहीं- कहीं कोई गुंडागर्दी नहीं- कहीं कोई नशा या फिर ड्रग्स नहीं. कहीं कोई समस्या नहीं. हर तरफ समृद्धि ही समृद्धि- खुशहाली ही खुशहाली.

पंजाब वास्तव में कैसा है?

ड्रग्स

अब सवाल यह है कि क्या पंजाब वास्तव में ऐसा ही है? बिल्कुल भी नहीं. पंजाब, वास्तव में इससे बिल्कुल उल्टा है. पंजाब में ड्रग्स माफियाओं का एक लंबा इतिहास रहा है. ड्रग्स आज भी पंजाब की सबसे बड़ी समस्या है. पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर ऐसे कितने ही वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें युवा-महिलाएं ड्रग्स की गिरफ्त में जकड़े हुए दिखाई देते हैं.

हाल ही में पंजाब का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था- जिसमें एक महिला दिख रही है लेकिन वो ना बैठ पा रही है और ना ही खड़ी हो पा रही है- आधी झुकी हुई उस महिला ने ड्रग्स लिए थे- जिससे उसका शरीर काम नहीं कर रहा था. और यह तो एक मात्र उदाहरण है.

ड्रग्स के मामले में पंजाब की स्थिति क्या है- यह अब किसी से छिपी नहीं है. हाल ही में नेटफ्लिक्स पर एक वेबसीरीज़ CAT आई है, जिसमें इस विषय को अच्छे ढंग से दिखाया गया है- लेकिन इस वेबसीरीज़ से पहले पंजाब के ड्रग्स को दिखाते हुई कौन-सी फिल्म आई थी?

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आप खूब याद करके- ‘उड़ता पंजाब’ का नाम लेंगे- लेकिन यकीन कीजिए वो ड्रग्स जैसे गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म नहीं थी- बल्कि पूरी तरह से एक मसाला फिल्म थी- जो कहीं से भी यह संदेश देने की कोशिश करती नहीं दिख रही थी कि ड्रग्स खतरनाक होता है, इसे छोड़ देना चाहिए. ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि बॉलीवुड ने पंजाब के ड्रग्स की कहानी कभी भी देश के सामने आने ही नहीं दी- इसलिए लोगों ने पंजाब को कभी ऐसे देखा ही नहीं.

खालिस्तान

पंजाब में एक समूह खालिस्तान का समर्थन करता दिखता है. खालिस्तानी आतंकी बच्चों का ब्रेन बॉश करते हैं. उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काते हैं. और एक पूरा समूह खालिस्तानी आतंकियों की आतंकी वारदातों का समर्थन करता है. खालिस्तानियों के पोस्टर चिपकाता है- उनके समर्थन में दीवारों पर नारे लिखता है. लेकिन कभी आपने इस पर कोई फिल्म बॉलीवुड में बनते हुए देखी है. यदि देखी हो तो बताइए, क्योंकि मुझे ऐसी कोई फिल्म याद नहीं आ रही है- जिसने पंजाब में बढ़ रहे खालिस्तान प्रेम को दिखाया हो. इसलिए पंजाब की यह तस्वीर भी कभी भी लोगों के सामने नहीं आई.

बेअदबी पर हत्या

पंजाब में धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर है. उदारता, सहिष्णुता, भाईचारे की बात करने वालों को पंजाब क्यों नहीं दिखता? पिछले कुछ महीनों में ऐसी कितनी ही घटनाएं हमारे सामने आईं हैं जहां किसी की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उस पर बेअदबी का आरोप लगा था? बेअदबी के आरोप पर हत्या क्यों? यह कहां से सही है? इसके लिए तो कानून है- दोषी को कानून सजा देगा- लेकिन नहीं धार्मिक कट्टरपंथी स्वयं ही निर्णय कर लेते हैं.

किसान आंदोलन के दौरान निहंग सिखों ने कैसे एक शख्स के हाथ-पैर काटकर उसे लटकाया था- वो तस्वीर तो आपको याद होगी? लेकिन क्या आप किसी एक फिल्म का नाम बता सकते हैं- जिसमें पंजाब की इस स्थिति को दिखाया गया हो? पूरी फिल्में में तो छोड़िए ही, कहीं एक जगह इस पर बात की गई हो- कोई छोटा-सा सीन हो? नहीं- बिल्कुल भी नहीं- क्योंकि बॉलीवुड या फिर हिंदी सिनेमा ने इस तस्वीर को कभी भी दिखाया ही नहीं.

ईसाई धर्मांतरण

पंजाब में ईसाई मिशनरियां किस तरह से काम कर रही हैं- वो अब सोशल मीडिया की वज़ह से हमें दिखने लगा है. अब हम जानते हैं कि वहां धर्मांतरण का रैकेट चलता है- लेकिन इससे पहले क्या हम यह सब जानते थे? नहीं, क्योंकि हमें जानने ही नहीं दिया गया. हमें सरसों के लहलहाते खेत दिखाए गए- उन लहलहाते खेतों के पीछे चल रहे धर्मांतरण को नहीं दिखाया गया.

द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार गुरदासपुर के कई गांवों की छतों पर छोटे-छोटे चर्च बन रहे हैं. जो लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित हो रहे हैं वो येशु के गुणगान गा रहे हैं. “हर मुश्किल दे विच, मेरा येशु मेरे नाल नाल है. बाप वांगु करदा फिकर, ते मां वांगु रखदा ख्याल है।” लेकिन यह सत्य हमें किसी भी फिल्म में नहीं दिखाया गया.

CAT

रणदीप हुड्डा की वेबसीरीज़ CAT में पहली बार पंजाब की वास्तविक तस्वीर को दिखाने की कोशिश की गई है. इस वेबसीरीज़ में दिखाया गया है कि कैसे पंजाब में शराब पीकर आदमी अपनी औरत को पीटता है- कैसे सामंतवादी मानसिकता लोगों के अंदर भरी हुई है- कैसे ‘रॉक स्टार कल्चर’ में युवा डूबे हैं- कैसे रेव पार्टी का चलन है. पंजाब का सत्य तो बॉलीवुड ने कभी नहीं दिखाया? इंदिरा गांधी की हत्या के ऊपर आजतक एक भी फिल्म नहीं बनी? ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले की जो स्थिति थी उस पर आजतक एक भी फिल्म नहीं बनी?

तो अब आप समझ पा रहे होंगे कि क्यों पंजाब का नाम लेते ही लहलहाते हुए सरसों के खेत आपके मस्तिष्क में आते हैं और क्यों वास्तविकता से यह तस्वीर बहुत दूर है.

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आइए, अब बिहार का वास्तविक सत्य भी समझ लेते हैं.

बॉलीवुड ने बिहार को कैसे दिखाया?

हिंदी सिनेमा ने बिहार के बारे में जब भी दिखाया तो बस वहां का अपराध दिखाया. फिल्म में अगर कोई बिहारी होगा तो वो गुंडा होगा. स्टाइल मारता- अमीरी में जीता- महलों में रहता- रौब जमाता कोई गैंग्स्टर नहीं बल्कि सड़क-छाप गुंडा. कभी भी लोगों को हंसाना होगा तो फिर बिहारी बोलियों का इस्तेमाल किया जाएगा. बिहारियों को ऐसे दिखाया जाएगा मानो वो बस पैसे लेकर हत्या करने के लिए ही पैदा हुए हैं. बिहार का अगर कोई दृश्य दिखाना होगा तो बस हर तरफ गरीब-मजदूर-भिखारी और झोपड़ियां.

बिहार में जो भी समस्याएं हैं- उन पर दर्जनों फिल्में बनाई गईं हैं. बार-बार बनाई जा रही हैं. बिहार के अपराध को लेकर कितनी हीं फिल्में बनाई गईं हैं. जिसमें किसी एक घटना को दिखाने के लिए पूरी फिल्म में बिहार को ऐसे दिखाया गया है मानो हर तरफ बिहार में हर वक्त मारकाट मची रहती हो- हर वक्त, हर कोई तमंचा लेकर घूमता रहता हो- कोई भी जब चाहे किसी पर भी फायरिंग कर देता हो- कोई कानून व्यवस्था ना हो- पूरा बिहार मानो बस गुंडागर्दी कर रहा हो. सिर्फ अपराध ही क्यों- अपहरण पर भी फिल्में बनीं- पकड़ौआ विवाह पर भी फिल्में बनीं- कितनी ही फिल्में बिहार की सामाजिक कमियों पर बनीं- लेकिन उन सभी फिल्मों को इस तरह से बनाया और दिखाया गया मानो पूरा बिहार ही ऐसा हो.

वास्तव में कैसा है बिहार?

हां, बिहार में एक वक्त में अपराध था, लेकिन वो सदैव नहीं था. और बिहार के प्रत्येक क्षेत्र में नहीं था. प्रत्येक बिहारी तमंचा लेकर नहीं घूम रहा था. अपहरण की वारदातें भी होती थीं- रंगदारी भी होती थी लेकिन एक निश्चित वक्त के बाद वो खत्म हो गई. लेकिन बॉलीवुड आज भी उन्हीं मुद्दों पर फिल्में बना रहा है.

बिहार को दिखाना है तो एक पुलिसकर्मी होगा- एक गुंडा होगा- ढेर सारी बंदूकें होंगी- फायरिंग-फायरिंग और दिख गया बिहार- सच में? क्या यही बिहार है? बिल्कुल भी नहीं, बिहार वो है जहां आज भी गांवों में किसी को असुरक्षा महसूस नहीं होती. सिर्फ बिहार के लोगों को ही नहीं- बल्कि अगर कोई दूसरे प्रदेश से भी बिहार में आएगा तो उसे भी असुरक्षा महसूस नहीं होगी. उसे डर नहीं लगेगा-क्योंकि वहां का माहौल ही ऐसा है.

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बिहार में कोई ड्रग्स का कारोबार नहीं चलता. एक आम बिहारी ड्रग्स के नाम तक नहीं जानता. ड्रग्स से बहुत दूर दिखता है बिहार. बिहार के गांवों में लोग आज भी प्रेम-भाईचारे से रहते हैं- खेती करते हैं और बिहारी रहन-सहन-खान-पान के साथ बेहतरीन जीवन जीते हैं. बिहार के छात्र आज भी देश की सबसे बड़ी परीक्षा UPSC में बड़ी संख्या में उत्तीर्ण होते हैं.

बिहार में आज भी महिलाओं का सम्मान तो होता ही है साथ ही साथ परिवार के निर्णयों में उनकी बराबर की भागेदारी रहती है. लेकिन कभी आपने देखा है कि बॉलीवुड ने कभी भी बिहार की इस तस्वीर को लोगों के सामने रखा हो? इस पर पूरी फिल्म बनाने की बात तो छोड़िए किसी फिल्म के अंदर कुछ देर के लिए भी बिहार की इस तस्वीर को नहीं दिखाया जाता है.

अब आप समझ पा रहे होंगे कि क्यों बिहार का नाम लेते ही आपके मस्तिष्क में हिंसा, गुंडागर्दी, अत्याचार, फायरिंग और गरीबी-बेचारगी की तस्वीर बनती है.

बॉलीवुड ने दशकों तक यही किया है. पंजाब को ‘अलौकिक’ तो बिहार को दयनीय दिखाया है. लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं. विशेष तौर पर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद तो पंजाब का सत्य और भी अच्छे से जनता तक पहुंच रहा है. लेकिन अभी भी बिहार की वास्तविक तस्वीर लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है.

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