देश को आजाद कराने के लिए अलग-अलग लोगों ने अपने स्तर पर काम किया, किसी ने तन से तो किसी ने धन से और किसी ने तो देश प्रेम में अपने प्राणों की आहुति ही दे डाली। परन्तु आगे की पीढ़ी इतिहास में अधिकतर लोगों के साथ न्याय नहीं कर सकी वरना राजा महेंद्र प्रताप सिंह जैसे महान देश प्रेमी के बारे में प्रत्येक व्यक्ति विस्तार से जानता। चलिए इस लेख में आज हम आपको भारत की अस्थाई सरकार के पहले राष्ट्रपति महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में विस्तार से बताते हैं।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां 1 दिसंबर, 1886 को हुआ था। परन्तु महेंद्र प्रताप सिंह का पालन पोषण हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने किया। असल में हरनारायण सिंह की कोई संतान नहीं थी, इसलिए जब राजा घनश्याम सिंह के यहां बालक हुआ तो उसे हरनारायण सिंह ने गोद ले लिया और ठाट-बाट के साथ महेंद्र प्रताप सिंह का पालन पोषण किया।
बताया जाता है कि राजा हरनारायण सिंह ने बालक महेंद्र प्रताप को शिक्षा दिलाने के लिए वर्ष 1895 में अलीगढ़ के गवर्नमेंट हाईस्कूल (आज के नौरंगीलाल इंटर कालेज) में भेजा था। इसके बारे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी आत्मकथा माई लाइफ स्टोरी में अपने होस्टल के बारे में लिखते हुए बताया है कि होस्टल में उनकी सुविधा के लिए अलग से 10 लोगों की व्यवस्था की गई थी जो उनका ध्यान रखते थे।
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स्वतत्रंता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह
महेंद्र प्रताप सिंह अपने छात्र जीवन से ही भारत को स्वतंत्र कराने वाली गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे। परन्तु भारत को आजाद कराने की उनके अंदर एक ज्वाला धधक रही थी और इसीलिए उन्होंने अपनी ग्रेजुशन पढ़ाई बीच में ही छोड़ आजादी की लड़ाई से पूरी तरह जुड़ गए। साथ ही भारत को आजाद कराने और समाज में शिक्षा के स्तर में सुधार करने के लिए काम करने लगे। इसी कालक्रम में वर्ष 1909 में महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने निवास को एक कॉलेज में परिवर्तित कर दिया।
इसे प्रेम महाविद्यालय नाम दिया गया और यह देश का पहला पॉलिटेक्निक कॉलेज था। यही नहीं, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए उन्होंने लगभग 3 एकड़ जमीन दान में भी दी थी। राजा महेंद्र प्रताप सिंह का कहना था कि भारत में शिक्षा के प्रसार में किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना है। कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी जाति-धर्म का हो, सभी भारतीय हैं और उन्हें बेहतर शिक्षा देना है। उनकी इस बात को लेकर आजतक उनकी तारीफ की जाती है। इसके अलावा वो स्वयं भी एक शिक्षित और दुनिया को एक अलग दृष्टि से देखने वाले व्यक्ति थे। उन्हें 8 भाषाओं का ज्ञान था।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आजादी के लिए कार्य
राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत को आजाद करवाने के लिए देश के स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे थे। जैसे वो 1913 में महात्मा गांधी के साथ साउथ अफ्रीका में चल रहे आंदोलन में शामिल हुए थे। इसके बाद वो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत से बाहर रहकर भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रहे थे और इसी बीच 1915 में उन्होंने काबुल में रहकर अस्थाई सरकार का गठन किया था, जिसमें वो स्वयं राष्ट्रपति बने थे और भोपाल के बरकतुल्लाह को प्रधानमंत्री बनया था।
यही नहीं, उन्होंने भारत में अंग्रेजों द्वारा की जा रही मनमानी का पर्दाफाश करने के लिए रूस जैसे कई देशों की यात्राएं की थीं। वर्ष 1925 में वो तिब्बत में दलाई लामा से जाकर भी मिले थे। उन्होंने भारत में और भारत से बाहर रहकर देश के लिए अपना अतुलनीय योगदान दिया था।
राजा महेंद्र सिंह भारत के आजाद होने से एक वर्ष पूर्व वापस भारत आ गए और यहां पर देश के लिए कार्य करने लगे। आज हम भारत में पंचायत चुनाव और उसके लिए एक अलग मंत्रालय को मूर्तरूप में देखते हैं लेकिन उसका श्रेय भी इन्हीं को जाता है। महेंद्र प्रताप सिंह ने ही पंचायती राज व्यवस्था का विचार दिया था। ये अपने क्षेत्र में इतने लोक प्रिय थे कि जब पूरे देश में एकतरफा कांग्रेस चुनाव जीत रही थी, वहीं 1957 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव जीतकर वो लोकसभा पहुंचे। यही नहीं, उनके कार्यों को देखते हुए 1932 में नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी उनका नाम भेजा गया था।
यदि राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में संक्षिप्त में कहा जाए तो वो एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया और देश-विदेश घूमकर भारत को आजाद कराने में अपना पूरा योगदान दिया। परन्तु इतिहास में उनके साथ न्याय नहीं किया गया।
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