नीतीश को अपने सर-माथे पर बैठा कर गलती तो नहीं कर रहे हैं तेजस्वी यादव?

तेजस्वी यादव पलटूराम की कहानी को समझ नहीं पा रहे हैं। नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव की कही गई बात को नजरअंदाज कर तेजस्वी बड़ी भूल कर रहे हैं।

Tejashwi Yadav has forgotten Lalu’s prognosis about Nitish Kumar

Source- TFI

भारत की राजनीति के सबसे बड़े अवसरवादी नेता की बात की जाए तो उसमें शीर्ष स्थान पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम आएगा। नीतीश कुमार सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसके लिए वो अपने घोर से घोर प्रतिद्वंदी का दामन थाम सकते हैं और अपने परम से परम मित्र का साथ छोड़ने में तनिक भी संशय नहीं करते, जिसके उदाहारण वो कई बार प्रस्तुत कर चुके हैं। ऐसा लगता है कि नीतीश का अगला शिकार अब तेजस्वी यादव बन रहे हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे नीतीश कुमार को लेकर अपने पिता लालू यादव की कही गई बात को नजरअंदाज कर तेजस्वी बड़ी भूल कर रहे हैं?

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नीतीश ने बताया तेजस्वी को अपना वारिस

सत्ता के लिए नीतीश कुमार ने इधर से पाला बदल उधर जाने की दौड़ खूब लगाई है, जिसके चलते बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने उन्हें पलटूराम नाम से संबोधित भी किया था। लेकिन आज उन्हीं लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पलटूराम की कहानी को समझ नहीं पा रहे हैं और मुख्यमंत्री बनने के सपने को नीतीश के द्वारा पूरा करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। नीतीश का स्वभाव ही कुछ ऐसा रहा है कि उन पर भरोसना करना कठिन है। ऐसे में तेजस्वी यादव को ऐसे व्यक्ति से उम्मीदों का भ्रम पालना दु:खदायक साबित हो सकता है।

दरअसल, वर्ष 2022 के अगस्त माह में बिहार की राजनीति में जो घटा वो पूरे देश ने देखा। जहां नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा और एक बार फिर आरजेडी के साथ सरकार बना लीं। इससे तेजस्वी यादव की बिहार का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा को और अधिक बल मिल गया। कयासबाजी ये हैं कि पलटूराम नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। इस बीच नीतीश कुमार ने तेजस्वी को अपना राजनीतिक वारिस तक घोषित कर दिया है।

हाल ही में नीतीश कुमार ने कहा था कि हमने काफी काम किया है, अब तेजस्वी आगे करते रहेंगे, आप लोग इन्हें आगे बढ़ाए। जिसके बाद से आरजेड़ी फूले नहीं समा पा रही है। चलिए कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताएंगें जो कभी नीतीश कुमार के साथ हुआ करते थे लेकिन पलटूराम कुमार ने पहले इन लोगों को आसमान पर चढ़ाया और फिर जमीन पर लाकर पटक दिया।

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प्रशांत किशोर 

सबसे पहले बात करते हैं स्वयं को चुनावी रणनीतिकार बताने वाले प्रशांत किशोर की। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार का काफी साथ दिया था। बिहार में सरकार बनाने के बाद उन्होंने प्रशांत किशोर को जेडीयू में शामिल करा लिया। कुछ समय के बाद जेडीयू का उपाध्यक्ष भी बना दिया गया। प्रशांत किशोर ने तो नीतीश पितातुल्य बता चुके हैं, तो नीतीश कुमार ने भी प्रशांत किशोर को अपना वारिस घोषित कर दिया था। परंतु 2017 में नीतीश ने पल्टी मारी और लालू यादव का साथ छोड़ भाजपा की ओर चल पड़े। नीतीश का ये निर्णय प्रशांत किशोर को पसंद नहीं आया जिसका बाद वो जेडीयू से हटकर बयानबाजी करने लगे। अंत में नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

आरसीपी सिंह 

ऐसे ही कुछ आरसीपी सिंह के साथ भी हुआ। आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार राजनीति के अर्श से फर्श लेकर गए लेकिन बाद में उनकी दुर्गति कर दी। दरअसल, नीतीश कुमार ही आरसीपी सिंह को राजनीति में लेकर आए थे। नीतीश जब रेल मंत्री थे, तो उन्होंने आरसीपी सिंह को अपना विशेष सचिव बनाया। वर्ष 2005 में नीतीश कुमार बिहार में पूर्ण बहुमत की सरकार में मुख्यमंत्री बने तब आरसीपी सिंह 2005 से 2010 तक उनके प्रधान सचिव रहे। नौकरशाह से राजनेता बने आरसीपी सिंह को नीतीश का राइट हैंड माना जाता था। नीतीश ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा, जिसके बाद राजनीति में आरसीपी सिंह का कद बढ़ता चला गया। वो जेडीयू के महासचिव बने और फिर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए। ऐसा माना जा रहा था कि जेडीयू में नीतीश के बाद पार्टी के कर्ताधर्ता आरसीपी सिंह ही हैं लेकिन आज उनकी स्थिति कितनी दयनीय हो चुकी है वो किसी से छिपा नहीं है।

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उपेंद्र कुशवाहा

अब बात कर लेते हैं उपेंद्र कुशवाहा की। उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में आरसीपी सिंह की ताकत गिरता देख सबसे अधिक खुश थे। उन्होंने जेडीयू में अपनी पार्टी की विलय कर दिया और स्वयं को नीतीश का छोटा भाई भी मानने लगे। उपेंद्र कुशवाहा को उम्मीद थी कि उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा लेकिन महागठबंधन की सरकार बनने के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई।

ललन सिंह

ललन सिंह नीतीश के पुराने मित्र हैं। जेडीयू में नीतीश के बाद इन्हें सबसे प्रभावशाली व्यक्ति माना जाता हैं। इन्हें भी नीतीश से बहुत उम्मीदें हैं लेकिन पलटूराम नीतीश कुमार ने तो तेजस्वी को अपना वारिस बनाने का विचार कर लिया है। वो अलग बात है कि नीतीश बाबू के विचार कब बदल जाए इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

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इन तमाम उदाहरणों से ये स्पष्ट होता है कि नीतीश का कोई ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे उन्होंने ठगा नहीं। प्रश्न यह है कि अब क्या अगला नंबर तेजस्वी का होगा? परंतु तेजस्वी यादव को नीतीश पर भरोसा करने से पहले इन लोगों के हाल को देख लेना चाहिए।

 

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