भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन की दुखती रग पर एक बार फिर हाथ रख दिया है, इसके साथ ही पाकिस्तान को दोबारा उन्होंने बालाकोट और उरी की कार्रवाई की याद भी दिलाई। एस जयशंकर यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने कहा कि यदि भारत का बंटवारा नहीं हुआ होता तो भारत यहां सबसे बड़ा देश होता, चीन नहीं। अब प्रश्न यह है कि जयशंकर के इन बयानों के विदेश नीति और वैश्विक राजनीति के संदर्भ में क्या अर्थ हैं?
इस लेख में जानेंगे कि कैसे जयशंकर ने चीन-पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रखकर दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया है।
और पढ़ें- संयुक्त राष्ट्र में एस जयशंकर ने अपने ‘शब्दबाण’ से पाकिस्तान को छलनी छलनी कर दिया
एस जयशंकर का संबोधन
हाल ही में चेन्नई की बहुचर्चित तुगलक पत्रिका के वर्षगांठ समारोह को संबोधित करते हुए एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक महत्व का उल्लेख किया और ये भी बताया कि क्यों भारत को हल्के में लेना किसी भी देश के लिए खतरे से खाली नहीं होगा।
जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि “राष्ट्रीय कल्याण के कई पहलू हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा बिना किसी सवाल के बुनियादी आधार है। इस संबंध में सभी देशों का परीक्षण किया जाता है, लेकिन हमारे पास उग्रवाद से लेकर सीमा पार आतंकवाद, विशेष रूप से आतंकवाद तक की समस्याओं का उचित हिस्सा है। हालांकि, लंबे समय तक सहन करने वाले दृष्टिकोण ने आतंकवाद को सामान्य करने का खतरा पैदा कर दिया था, इसलिए उरी और बालाकोट ने एक बहुत जरूरी संदेश भेजा”।
और पढ़ें- आखिरकार एस जयशंकर ने रूस के गले में घंटी बांध ही दी
पाकिस्तान को सीधा संदेश
यहां ध्यान देने वाली बात है कि उरी और बालाकोट के बारे में बात कर एस जयशंकर ने सीधे और स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को संदेश दिया है कि यदि उसे लगता है कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर अब और चुप रहेगा तो ऐसा नहीं है। भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा जो उरी और बालाकोट की कार्रवाई की गई वह केवल संयोग नहीं था। आवश्यकता पड़ने पर भारत ऐसी और कार्रवाई करने से चूकेगा नहीं।
पाकिस्तान के बाद आते हैं एक और पड़ोसी देश चीन पर। यह तो सर्वविदित है कि चीन की दुखती रग है पूर्वी लद्दाख और तवांग का क्षेत्र। चीन अपनी विस्तारवादी नीति का प्रयोग इस क्षेत्र में करना तो चाहता है लेकिन भारत के सामने उसकी एक नहीं चलती है। इस मुद्दे पर भी भारत के विदेश जयशंकर ने चीन की खबर ली। उन्होंने पाकिस्तान के चीनी आकाओं को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्हें गलवान की कार्रवाई का स्मरण कराया। विदेश मंत्री ने कहा कि “उत्तरी सीमाओं पर चीन आज हमारे समझौतों के उल्लंघन में बड़ी ताकतों को लाकर यथास्थिति को बदलने की मांग कर रहा है। कोविड के बाद भी हमारी जवाबी प्रतिक्रिया मजबूत और दृढ़ थी। हजारों की संख्या में तैनात सैनिक हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं।”
और पढ़ें- एस जयशंकर ने तीखी आलोचना के साथ संयुक्त राष्ट्र की बखिया उधेड़ दी
चीन को चेतावनी
एक जयशंकर सही ही तो कह रहे हैं, याद कीजिए कैसे भारतीय सैनिकों ने कुछ ही समय पूर्व अरुणाचल प्रदेश के तवांग में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहे चीनी PLA के सैनिकों को मार मारकर भागने पर विवश कर दिया और अभी तो हमने चीन के PLA की निष्क्रियता एवं उसके अकर्मण्य प्रशासन पर प्रकाश भी नहीं डाला है।
अब सोचिए कि चीन हो या पाकिस्तान, दोनों को विभिन्न मोर्चों पर भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। वैसे भी आज स्थिति ये है कि पाकिस्तान एक-एक दाने के लिए तरस रहा है और चीन कोरोना वायरस के दुष्परिणाम झेलने को विवश है। सरकारी आंकड़े चाहे जो बताएं परंतु वास्तविकता तो यही है कि चीन न अपनी जनसंख्या को संभाल पा रहा है और न ही अपने प्रशासन को।
और पढ़ें- पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का अथाह प्रेम एस जयशंकर के शब्दों को सत्य सिद्ध करता है
विश्व को संदेश
एस जयशंकर ने अपने संबोधन में पाकिस्तान और चीन को तो तीखे संदेश दिए ही, इसके साथ ही विश्व को भी एक संदेश दिया। दरअसल, विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि- “यदि 1947 में देश का विभाजन नहीं हुआ होता, तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश होता, न कि चीन।” ध्यान देने होगा कि उनके इस बयान का सीधा और स्पष्ट संदेश है कि भारत कोई आया-गया देश नहीं है बल्कि एक मजबूत देश हैं और वैश्विक रूप से अब भारत को कोई अनदेखा नहीं कर सकता। अगर भारत ने कुछ बोला है तो समस्त संसार को सुनना भी पड़ेगा और आवश्यकता पड़ने पर भारत की बात माननी भी पड़ेगी।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।