कहते हैं कि किसी की वर्तमान स्थिति को देखकर उसका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए क्योंकि समय में इतनी शक्ति होती है कि वह कोयले को भी धीरे-धीरे हीरे में बदल देता है। उदाहरण के लिए आप रतन टाटा को देख सकते हैं जो देश के एक सम्मानित व्यवसायी के रूप में जाने जाते हैं। वो बहुत लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब रतन टाटा को अमेरिका की ऑटो कंपनी फोर्ड मोटर्स ने अपमानित किया था लेकिन वर्तमान को देखें तो मामला ही उलट है।
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रतन टाटा और फोर्ड
बात साल 1990 के दशक की हैं, तब टाटा समूह ने अपनी पहली हैचबैक कार इंडिका लॉन्च की थी लेकिन इस कार से टाटा समूह को व्यावसायिक रूप से निराशा हाथ लगी थी। जिसके बाद टाटा समूह ने इसे बेचने का विचार किया, इसके लिए रतन टाटा और उनकी टीम टाटा ग्रुप का नया ऑटोमोबाइल बिजनेस बेचने फोर्ड कंपनी के पास डेट्रॉयट पहुंच गई। फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा को ये कहते हुए अपमानित किया कि जब आपको इस बारे में कुछ पता ही नहीं था तो आपने पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में कदम ही क्यों रखा।” फोर्ड यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने आगे कहा कि वे टाटा मोटर्स के कार बिजनस को खरीद तो रहे हैं लेकिन ये उनके ऊपर फोर्ड का एहसान होगा। ऐसी बातचीत के बाद टाटा ने अपनी कंपनी को बेचने का विचार बदल दिया।
लेकिन समय बदला और फोर्ड कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गयी। इसके बाद रतन टाटा ने फोर्ड के दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर खरीदने में दिलचस्पी दिखाई। जिसके बाद भारतीय ब्रांड टाटा ने जून 2008 में फोर्ड पोर्टफोलियो के दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया। कहा जाता है कि उस समय फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा का एहसान मानते हुए कहा था कि इन ब्रांड को खरीदकर आप हम पर बड़ा उपकार कर रहे हैं। बिल ने टाटा को धन्यवाद भी दिया था।
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फोर्ड की खराब स्थिति
वहीं हाल ही में फोर्ड ने भारत में स्थित अपना प्लांट टाटा मोटर्स को बेच दिया है। जानकारी के मुताबिक सब्सिडयरी टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और फोर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच गुजरात स्थित सानंद प्लांट अधिग्रहण की प्रक्रिया 10 जनवरी, 2023 तक पूरी भी हो जाएगी। बता दें कि टाटा मोटर्स के फोर्ड इंडिया के गुजरात के सानंद स्थित प्लांट को खरीदने की डील 725.7 करोड़ रुपये में फाइनल हुई। कंपनी की भारत से विदाई होने की वजह कंपनी को हो रहा घाटा है।
दरअसल, कंपनी ने 2011 में लगभग 8000 करोड़ रुपये निवेश कर सानंद में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया था। लेकिन कंपनी मुनाफे की स्थिति में नहीं आ सकी। जिसके चलते फोर्ड ने भारत से अपना कारोबार समेटने का फैसला लिया और अपना प्लांट टाटा मोटर्स को बेच दिया है। अब टाटा समूह फोर्ड की मैन्युफैक्चरिंग इकाईयों में अपनी कार बनाएगा।
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पुरानी शर्तों के साथ नौकरी का ऑफर
यहां एक और बात पर ध्यान देना होगा कि भारत में फोर्ड के मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों पर टाटा समूह के अधिग्रहण के बाद सबसे बड़ा संकट उन लोगों के सामने खड़ा हो गया जो लोग इन इकाइयों में काम करते थे। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि टाटा समूह की तरफ से फोर्ड पर एक ओर एहसान करते हुए फोर्ड इंडिया के सभी कर्मचारियों को पुरानी शर्तों के साथ ही टाटा मोटर्स में नौकरी का ऑफर दिया गया है।
रतन टाटा को फोर्ड के द्वारा किए गए अपमान ने बहुत परेशान किया था और उस समय उन्होंने अपने कार बिजनेस को बेचने के विचार को बदल दिया और अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की और एक सम्मानजनक मुकाम तक अपने इस समूह को पहुंचा दिया।
केवल फोर्ड की ही बात नहीं है, इससे पहले रतन टाटा एयर इंडिया को खरीदकर भी परोपकार कर चुके हैं। घाटे में चल रही सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को टाटा समूह ने 18000 करोड़ रुपये की बोली जीतकर अपने नाम कर लिया।
यदि फोर्ड की बात करें तो एक अपमान के बदले रतन टाटा फोर्ड पर कई एहसान कर चुके हैं। टाटा समूह की सफलता और उनका फोर्ड के प्रति सकारात्मक व्यवहार बिल फोर्ड जैसे व्यक्ति के लिए एक सबक है कि किसी का अपमान करने से पहले सौ बार सोचें।
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