“लाल बादशाह! स्वागत नहीं करोगे हमारा”, इंडो-पेसिफिक में भारत भव्य प्रवेश करने जा रहा है

अब भारत आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत को सागर में उतारने जा रहा है, जिनकी तैनाती हिंद प्रशांत क्षेत्र में की जाएगी। इस तरह भारत और मजबूत होगा

हिंद प्रशांत क्षेत्र

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हिंद प्रशांत क्षेत्र वैश्विक राजनीति का केंद्र बना हुआ है। भारत के साथ-साथ कई अन्य देश भी हैं जिनके लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर इन देशों की निगाहें रहती हैं। भारत लगातार हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी शक्ति बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। जहां अब भारत आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत को सागर में उतारने जा रहा है, जिनकी तैनाती हिंद प्रशांत क्षेत्र में की जाएगी। वहीं सरकार आईएनएस विक्रांत के लिए 26 समुद्री हमलावर लड़ाकू विमानों की खरीद पर भी विचार कर रही है।

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भारत के लिए खतरा

भारत के लिए सुरक्षा के लिहाज से हिंद प्रशांत क्षेत्र में मजबूत होना बहुत आवश्यक है क्योंकि चीन इस क्षेत्र में अपनी चालबाजी से भारत के लिए खतरा पैदा करने की कोशिशें करता रहता है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी भारत के लिए चिंता का विषय है ऐसे में भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत को उतारकर चीन को एक बड़ा झटका देने जा रहा है। गौरतलब है कि भारतीय नौसेना ने पहले ही दोनों युद्धपोतों की परीक्षण रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी है। जिसके बाद अब युद्धपोतों के प्रदर्शन के आधार पर मोदी सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा।

आपको बता दें कि आईएनएस विक्रांत भारत के समुद्री इतिहास में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा जहाज है, इसका पूरा निर्माण भारत में ही हुआ है। वहीं आईएनएस विक्रमादित्य 2013 में भारत द्वारा रूस से खरीदा गया था। यह विमान वाहक पोत 1996 में सेवामुक्त होने से पहले सोवियत संघ और रूसी नौसेना में सेवारत रहा क्योंकि इसको संचालित करना बहुत खर्चीला था, रूस की नौसेना ने इसे 1996 में सेवानिवृत्त कर दिया था।

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इंडो-पैसिफिक

आपको बता दें कि इंडो-पैसिफिक सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली व्यापारिक जड़ों में से एक है, जिसके कारण हर देश इस क्षेत्र में प्रभुत्व की तलाश कर रहा है। लेकिन चीन वहां हमेशा उनकी संप्रभुता को चुनौती देता है। हालांकि जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला कर रहे हैं, लेकिन भारत की भागीदारी के बिना हिंद -प्रशांत क्षेत्र में उनके द्वारा कोई भी युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है। क्योंकि इस महासागर में सबसे बड़ी नौसैनिक और आर्थिक शक्ति भारत ही है। ऐसे में बिना भारत को सम्मिलित किए हिंद महासागर को सुरक्षित रखना और चीन के दखल को कम करने की योजना अथवा इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार की स्थिरता के लिए बनाई गई योजना सफल नहीं हो सकती है।

चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व जमाना चाहता है। हिंद महासागर क्षेत्र से जल के माध्यम से होने वाले विश्व व्यापार का 80% व्यापार संभव होता है। यह महासागर तीन महाद्वीपों को जोड़ता है और साथ ही यह दक्षिण एशिया, द० पूर्वी और पूर्वी एशिया के साथ ही पूर्वी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बीच होने वाले समस्त व्यापार का केंद्र है।

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नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था

वहीं हिंद-प्रशांत में सामरिक समुद्री मार्गों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने के लिए क्वाड की भी स्थापना की गई है। जोकि एक चार देशों का समूह है जिसमें अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल है। इस समूह का लक्ष्य हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को नियत्रंण में भी रखना है। क्वाड का मुख्य उद्देश्य नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था और एक उदार व्यापार प्रणाली को सुरक्षित करना है जिसमें सबसे बड़ी बाधा चीन उत्पन्न करता है।

ऐसे में आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य हिंद महासागर में भारत को और भी ज्यादा शक्तिशाली बनाएंगे और अगर चीन हिंद महासागर क्षेत्र में कोई चाल चलने का प्रयास करता है तो उसे मुंहतोड़ जबाव दिया जाएगा।

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