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“बांग्लादेश प्रतिबंधों से डर रहा था तो भारत ने काम कर दिया…”, भारत की पश्चिमी देशों को खुली चुनौती

अमेरिकी प्रतिबंधों से डर के कारण बांग्लादेश ने तो परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए साजो-सामान वाले रूसी जहाज को वापस भेज दिया था, लेकिन फिर आया भारत।

Vaishali Shukla द्वारा Vaishali Shukla
10 January 2023
in विश्व
हल्दिया पोर्ट

Source- TFI

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हल्दिया पोर्ट: रूस द्वारा यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़े जाने के बाद ही पश्चिमी देश उस पर टूट पड़े थे और तमाम प्रतिबंधों के माध्यम से रूस को दुनिया में अलग थलग करने और उसे रोकने की रणनीति पर काम करने लगे। विशेष तौर पर अमेरिका को यह घमंड था कि पूरी दुनिया उसकी सुनेगी और उसके कहे अनुसार ही चलेगी। परंतु अमेरिका का यह घमंड चकनाचूर हो गया। अमेरिका शायद यह भूल गया था कि युद्ध में एक तीसरा पक्ष यानी भारत भी है, जो न तो किसी के पक्ष में खड़ा है और न ही किसी के विरोध में और वो भारत ही है जिसके पास हर प्रतिबंध की काट निकाली। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ाकर रख दीं।

और पढ़ें: रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौते के लिए इस रणनीति को अपना रहे हैं पीएम मोदी

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हल्दिया पोर्ट का किया जाएगा उपयोग

हाल ही में भारत ने एक बार फिर से पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिकी  प्रतिबंधों को खुली चुनौती देते हुए एक बड़ा कदम उठाया। दरअसल, कुछ समय पूर्व बांग्लादेश के रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए साजो-सामान लेकर चला एक रूसी जहाज़ अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाया था, जिसके पीछे का कारण था अमेरिका के लगाए गए प्रतिबंध। हालांकि अब भारत, बांग्लादेश की सहायता के लिए आगे आया है। बांग्लादेश के इस न्यूक्लियर पावर प्लांट का सामान मंगाने के लिए भारत के हल्दिया पोर्ट का उपयोग किया जा रहा है। हल्दिया पोर्ट में कार्गो उतारने के बाद से ये सारा सामान सड़क मार्ग के माध्यम से बांग्लादेश पहुंचाया जाएगा।

पूरा मामला कुछ ऐसा है कि बांग्लादेश में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण किया जाने वाला है। इसके निर्माण की सहायता के लिए रूस और भारत आगे आए थे। रूपपुर न्यूक्लियर प्लांट को 2,400 मेगावॉट बिजली की क्षमता के साथ बनाया जाने वाला है। इसके बनने से बांग्लादेश उन 30 देशों में सम्मिलित हो जाएगा, जहां परमाणु बिजली उपलब्धता मौजूद है। बांग्लादेश के लिए यह संयंत्र काफी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि पिछली गर्मियों में उसने बिजली की भयंकर कमी का सामना किया था। विशेषज्ञों की मानें तो परमाणु बिजली ही इस समस्या का सबसे अच्छा उपाय है।

और पढ़ें: अमेरिका को भूल जाइए, अब भारत और जापान मिलकर QUAD को चलाएंगे

बांग्लादेश ने वापस भेज दिया था शिपमेंट

इस परमाणु संयंत्र के लिए रूस से एक परमाणु शिपमेंट आने वाला था, परंतु इस बीच ही रूस-यूक्रेन का युद्ध शुरू हो गया था जिसके बाद से पश्चिमी देशों विशेषतौर से अमेरिका ने कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। चूंकि बांग्लादेश एक छोटा सा देश है और अमेरिका की आपत्ति और उसके प्रतिबंधों से वो डर गया। बांग्लादेश को डर था कि कहीं अमेरिका नाराज होकर उस पर कोई भी कड़ी कार्रवाई न कर दें। इसलिए बांग्लादेश ने रूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर उतरने नहीं दिया था और शिपमेंट को वापस भेज दिया था, जिससे वहां का कार्य रुक गया।

परंतु भारत रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को नहीं मान रहा है, जिसके चलते बांग्लादेश के परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए सामान मंगाने के लिए भारत के हल्दिया पोर्ट का उपयोग किया जा रहा है। यहां ध्यान देने योग्य है कि भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा पहले ही ये स्पष्ट कर दिया गया है कि अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित किसी रूसी जहाज के किसी भारतीय बंदरगाह पहुंचने से उसे कोई आपत्ति नहीं है।

भारत ने अपने इस कदम से पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के सभी प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ाकर रख दी है। ये पहली बार नहीं जब भारत ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को दरकिनार कर इस तरह के कदम उठाए हो। रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से ही भारत ने अमेरिका के किसी भी प्रतिबंधों को महत्व नहीं किया। पहले भी रूस से भारत के तेल खरीदने के चलते पश्चिम देशों को काफी ज्यादा मिर्ची लगी थी, लेकिन भारत अपने स्टैंड से बिल्कुल भी डगमगाया नहीं।। पश्चिमी देश लगातार षड्यंत्र रचते रहे, भारत पर दबाव बनाते रहे, लेकिन भारत अपने हित के साथ ही रूस के साथ अपने संबंधों को ध्यान में रखकर तेल खरीदना जारी रखा। इतना ही नहीं तेल के साथ भारत रूस के कोयले के व्यापार से भी पीछे नहीं हटा।

और पढ़ें: भारत और बांग्लादेश मिलकर चीन को खदेड़ेंगे बंगाल की खाड़ी से बाहर

भारत-रूस व्यापार

भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों को किस तरह से आईना दिखाया यह दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़ों को देखकर पता चलता है। भारत और रूस के बीच होने वाला द्विपक्षीय व्यापार अब तक के अपने सबसे उच्चतम स्तर 1,822 करोड़ डॉलर पर जा पहुंचा है। जहां वित्त वर्ष 2020-21 में दोनों देशों के बीच केवल 814 करोड़ डालर का व्यापार किया गया था,  जो वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 1,312 करोड़ तक पहुंच गया था। वर्ष 2020 में रूस, भारत के व्यापारिक साझेदार के रूप में 25वें स्थान पर हुआ करता था, जो अब सातवें स्थान पर पहुंच गया है।

भारत का बांग्लादेश की सहायता करने के पीछे सबसे बड़ा कारण पश्चिमी देशों को एक खुली चुनौती देना है। ऐसा करके भारत पश्चिमी देशों के सभी प्रतिबंधों को ताक पर रखकर दूसरे देशों की सहायता के लिए आगे आ रहा है। इससे भारत ने पश्चिमी देशों के घमंड  को धूल चटाने का काम किया है।

और पढ़ें: क्या चीन-रूस की बढ़ती मित्रता भारत के लिए ख़तरा है? बिल्कुल भी नहीं! 

 

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