ऊर्जा आपूर्ति के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने जा रहा है भारत

ये तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था!

Indian Energy basket will be purely indigenous with renewable in general, Solar and hydrogen in specific

SOURCE TFI

ऊर्जा सुरक्षा के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता ठीक उसी तरह है जैसे अपनी बाजी किसी और के हाथ में दे देना। जहां तक भारत की बात करें तो यह देश प्रत्येक क्षेत्र में अब विदेशी निर्भरता को खत्म करने के प्रयास कर रहा है, डिफेंस से लेकर टेक्नोलॉजी के विस्तार पर विशेष ध्यान दे रहा है। लेकिन जब बात ऊर्जा की आती है तो भारत की निर्भरता अभी‌ भी कच्चे तेलों पर है जिसका अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है, यह सीधे-सीधे वैश्विक कीमतों से संबंधित है। ऐसे में यदि भारत को अपनी जगह वैश्विक स्तर पर अधिक मजबूत करनी है तो वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान देना होगा।

ग्रीन हाइड्रोजन

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन से संबंधित एक योजना को मंजूरी दी है जो पिछले कुछ समय से नवीकरणीय ऊर्जा की वकालत करने वालों के बीच और इंडस्ट्री में चर्चा का विषय रही है। इस नये जमाने के ईंधन को अब भारत में मुख्य धारा में लाने की तैयारी की जा रही है। 4 जनवरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19,744 करोड़ रुपये के विशाल बजट के साथ ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी। यह एक ऐसा प्रोग्राम है जिसका उद्देश्य 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन स्वच्छ हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन करना है। उद्योग जगत की ओर से भी इसकी काफी प्रशंसा की जा रही है। इस सेक्टर में करीब 8 लाख करोड़ रुपये निवेश किए जाने की संभावना है जो कि आर्थिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

अगले आठ वर्षों में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन से अतिरिक्त 125 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता लाने और छह लाख रोजगार सृजित की उम्मीद है।

लिथियम के खान

एक तरफ जहां भारत सरकार ग्रीन हाइड्रोजन के विस्तार पर काम कर रही है तो वहीं भारत के बाहर से वैकल्पिक ऊर्जा के नये अवसरों को खोजा रहा है। एक रिपोर्ट  के अनुसार भारत ने संभावित अधिग्रहण या दीर्घकालिक पट्टे के लिए अर्जेंटीना में दो लिथियम खानों और एक तांबे की खान की पहचान की है। खनन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खदानों का वाणिज्यिक मूल्यांकन शुरू हो गया है और फरवरी के अंत तक इस बारे में एक रिपोर्ट आने की उम्मीद है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार ने लैटिन अमेरिकी राष्ट्र अर्जेंटीना में संभावित लिथियम भंडार का आकलन करने और पिछले साल नवंबर में संभावित अधिग्रहण के अवसरों के लिए तीन भूवैज्ञानिकों की एक टीम भेजी थी। टीम में मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (MECL), खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के एक-एक भूविज्ञानी शामिल थे।

किसी भी इलेक्ट्रिक वाहन को चलाने में लिथियम आयन बैटरियों की आवश्यकता होती है, ऐसे में यह लिथियम माइंस की डील भारत के लिए बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण हो सकती है। वैसे तो यह पूरी तरह से भारत को आत्मनिर्भर नहीं बनाएंगी लेकिन यह माना जा रहा है कि जल्द ही ऐसी और डील हो सकती जो भारत के लिए लाभकारी हो।

सौर ऊर्जा में अभूतपूर्व प्रगति

सौर ऊर्जा में भारत के द्वारा किए गए अभूतपूर्व प्रगति को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। यह एक तथ्य है कि इस समय भारत को सौर पैनल और अन्य आवश्यक वस्तुओं का आयात करना पड़ता है, लेकिन देश इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के सह-संस्थापक होने के कारण, भारत ने इस क्षेत्र में एक मजबूत आवाज हासिल की है, जो उद्योग को विनियमित कर सकता है यदि निर्यात करने वाला देश अपने निर्यात के कारण गंदा खेलने की कोशिश करता है, जो किसी भी लाभ को छीन लेता है। पास होना।

फिर भी मोदी सरकार इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए अथक प्रयास कर रही है। इसने विशेष रूप से सौर विनिर्माण के लिए पीएलआई योजना शुरू की, जिसे केंद्र सरकार से अधिक से अधिक समर्थन मिल रहा है। पिछले 8.5 वर्षों में, स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 19.3 गुना वृद्धि हुई है। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता लगभग 62 GW है, जो देश की कुल बिजली का लगभग 15% है।

वर्तमान में, भारत अक्षय स्रोतों से ऊर्जा के उत्पादन के लिए कच्चे माल के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है। उदाहरण के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा में मोदी सरकार का प्रमुख फोकस सौर रहा है। इस क्षेत्र में, भारत चीन और वियतनाम से सौर सेल और मॉड्यूल आयात कर रहा है, लेकिन देश तेजी से तकनीकी अंतर को पाट रहा है। सरकार हमारे घरेलू खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है, उदाहरण के लिए, इस तरह के आयात पर आयात शुल्क को कम करके।

हिस्सादारी और अधिक होनी चाहिए

वहीं एक समय ऐसा था जब भारत नवीकरणीय ऊर्जा के परिप्रेक्ष्य में बहुत पीछे था या ये कहे कि शून्य था लेकिन अब ऐसा नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की पूरी ऊर्जा में रिन्यूअल ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 42 प्रतिशत की हो गई है। भारत सरकार चाहती है कि किसी भी कीमत पर इसी 42% प्रतिशत के हिस्से को और विस्तार दिया जाए और मुख्य ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके। वैसे भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिए यह हिस्सादारी और अधिक होनी चाहिए।

वर्तमान स्थिति की बात करें तो कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों के चलते भारत की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक प्रभावित होती है। अधिक से अधिक पैसा कच्चे तेल की खरीद में ही चला जाता है। ऐसे में रिन्यूअल एनर्जी यदि इस कच्चे तेल की जगह लेने में सफल हो जाए तो भारत के लिए लाभ ही लाभ होगा।

लाभ ही लाभ

भारत का पहला लाभ तो यही होगा कि वह वैश्विक स्तर पर एक नये सुपर पावर के रूप में उभरेगा, जब जरूरतें कम होंगी तो किसी भी देश का दबाव भारत पर अप्रभावी होगा। इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था पर मात्र उर्जा आयात से होने वाले विशाल खर्च पर ब्रेक लगेगा और यही पैसा विकास कार्यों पर खर्च होगा। वहीं भारत यह दिखा सकेगा कि पश्चिमी देशों ने कार्बन उत्सर्जन के जरिए क्लाइमेट को बर्बाद किया था लेकिन वह क्लाइमेट फ्रैंडली तरीके से विकास कर रहा है। इस तरह लाभ ही लाभ होगा।

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