भारत अब वैश्विक कूटनीति में अमेरिका के लिए नया प्लान तैयार कर रहा है। ‘वैश्विक चौधरी’ अमेरिका दुनिया में अपनी एक धाक जमाकर राज करने की कोशिश करता आया है और कई बार अन्य देशों के बीच युद्ध भड़काने के पीछे भी उसकी आलोचना हुई है। भारत को लेकर भी अमेरिका का रवैया बहुत अच्छा नहीं रहा है लेकिन अपनी वैश्विक ताकत बढ़ाते हुए भारत ने अब ‘अमेरिका काट’ की तैयारी भी कर ली है। ध्यान देने योग्य है कि जिस नीति से अमेरिका भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध स्थापित कर भारत के लिए मुसिबतों का जाल बुनता था, कुछ वैसा ही अब अमेरिका के साथ भारत भी करने वाला है जिसकी शुरुआत पिछले वर्ष ही हो गई थी।
दरअसल, एस जयशंकर ने जैसी आक्रामक विदेश नीति दिखाई है, उसका असर यह हुआ है कि विदेश मंत्रालय भी आसमान पर है। विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी का एक दौरा अमेरिका की परेशानी की वजह बन गया है। दरअसल, मीनाक्षी लेखी लैटिन अमेरिका के दौरे पर गई थीं। उन्होंने क्यूबा, एल सल्वाडोर ग्वाटेमाला और बोलीविया का दौरा किया, जहां उन्होंने संबंधित देशों के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व से मुलाकात की और भारत से द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत भी की।
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अमेरिका के पड़ोस में बढ़ा भारत का व्यापार
अब अहम बात यह है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अगस्त 2022 में लैटिन अमेरिका का दौरा कर चुके हैं। अमेरिका भले ही यह दिखाता रहा हो कि वह चीन के विरोध में खड़ा है लेकिन सत्य यह है कि चीन ने लैटिन अमेरिका में जमकर निवेश किया है। इसके अलावा इस पूरे क्षेत्र में अमेरिका का सिक्का चलता है। ऐसे में भारत की कोशिश इस क्षेत्र में चीन को काउंटर कर अमेरिका को झटका देने की है।
भारत वहां लगातार अपना व्यापार बढ़ा रहा है। निर्यात की बात करें तो वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, लैटिन अमेरिका में भारत का निर्यात 2021-22 (अप्रैल-मार्च) में 18.89 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि 2020-21 में निर्यात 12.74 बिलियन डॉलर था। इसमें सीधे तौर पर 48% की प्रभावशाली वृद्धि हुई है। लैटिन अमेरिका में भारत से निर्यात के मामले में ब्राजील 6.49 बिलियन डॉलर के साथ पहले स्थान पर है। 2020-21 से इस वर्ष निर्यात में 53% की वृद्धि दर्ज हुई है।
इतना ही नहीं, अर्जेंटीना में यह निर्यात 107% तक बढ़ा है। हालांकि, यह कुल ट्रेड का 5 प्रतिशत ही है लेकिन भारत की कोशिश इसे धीरे-धीरे विस्तार देने की हैं, जिससे लैटिन अमेरिका पर अपनी पकड़ मजबूत की जा सके। लैटिन अमेरिका को लैटिन अमेरिका कैरेबियन भी कहते हैं। भारत की विदेश नीति हमेशा एक खास पैटर्न पर रही है, जिसमें पहले पड़ोसी आते हैं, फिर एशिया और फिर कूटनीतिक साझेदारी, लेकिन अब इसमें भी बदलाव हो रहा है। यह बात लैटिन अमेरिका में भारत के विस्तार से समझी जा सकती है।
लैटिन अमेरिका में अमेरिका के प्रति असंतोष
अब भारत लैटिन अमेरिका में अपनी मौजूदगी क्यों बढ़ा रहा है तो इस सवाल का भी जवाब है। इस क्षेत्र में अमेरिका के प्रति अब असंतोष देखने को मिल रहा है। क्यूबा से लेकर ब्राजील और मेक्सिको तक में ‘अमेरिकी विरोधी’ भावनाओं ने अमेरिका को परेशान कर रखा है। ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका का इन सभी देशों में एकछत्र राज चलता है और उसकी यही दादागिरी उसके प्रति नकारात्मक भावनाओं को जन्म दे चुकी है। क्यूबा हमेशा ही अमेरिका की दादागिरी को लेकर परेशान रहा है लेकिन ब्राजील और मेक्सिको में भी अब कुछ ऐसी ही स्थिति बनने लगी है।
ब्राजील को लेकर बवाल यह है कि वहां की विपक्षी पार्टियों समेत समाज के एक बड़े वर्ग का मानना है कि अमेरिका ने ब्राजील के राष्ट्रीय चुनावों को प्रभावित किया है। ब्राजील में फिलहाल अमेरिका की ओर झुकाव रखने वाली सरकार है लेकिन ब्राजीलियन जनता की बेरुखी अमेरिका के लिए मुसीबत बन रही है। इस असंतोष और नाराजगी का आलम ऐसा है कि हाल ही में ब्राजील की संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पर विद्रोहियों ने हमला बोल दिया और ब्राजील की सरकार की भयंकर किरकिरी हो गई। इस विरोध का मूल कारण अमेरिका ही है।
बाइडन के लिए खतरे की घंटी
दूसरी ओर बात यदि मेक्सिको की करें तो मेक्सिकन घुसपैठियों का मुद्दा हमेशा ही अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी ने उठाया है और उन्हें बाहर फेंकने की मांग की है। वहीं, बाइडन सरकार इस पर काफी नरम दिखती है। इन सबके बीच आरोप यह है कि जो घुसपैठिए मेक्सिको से आते हैं, वे ड्रग्स का बिजनेस करने लगते हैं। ऐसे में अमेरिका ड्रग्स की चपेट में जाता दिख रहा है। इसके कारण रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों ही दलों के बीच टकराव तो है लेकिन ड्रग्स जैसे बिजनेस के कारण मेक्सिकन बाइडन प्रशासन के रडार पर हैं।
इतना ही नहीं, मेक्सिकन लोगों की अमेरिका में दस्तक कम होती जा रही है क्योंकि अमेरिका के नियम पहले से सख्त हो गए हैं। ऐसे में दोतरफा असंतोष भारत के लिए सहज साबित हो सकता है। भारत इन देशों में अपना निवेश बढ़ाकर वहां अपनी मौजूदगी बढ़ाने का अवसर तलाश कर रहा है। भारत की इस कूटनीति को समझें तो यह सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि जैसे अमेरिका भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान को समर्थन देता था, कुछ वैसा ही भारत अब अमेरिका के पड़ोसी देशों के साथ मिलकर करने वाला है और यह बाइडन के लिए नए खतरे की घंटी है।
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