जोशीमठ दरक रहा है, तुरंत कार्रवाई नहीं की तो देर हो जाएगी…

जोशीमठ के अस्तित्व और यहां के लोगों के भविष्य पर खतरा है। सरकार को इस पवित्र स्थल को तुरंत बचाना होगा।

Joshimath is sinking and the government must swing into action

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उत्तराखंड जो भारत का बहुत सुंदर राज्य है, जहां मनमोहक पर्यटन स्थल हैं और जहां कई ऐसे स्थान भी हैं जिनका धार्मिक और पौराणिक महत्व है। उसी उत्तराखंड का एक सुंदर तीर्थस्थल है जोशीमठ। यहां वार्षिक चारधाम यात्रा होने पर भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। लेकिन बीते कुछ समय से उत्तराखंड के चमोली जिले का जोशीमठ (Joshimath Sinking) बड़ी ही दयनीय स्थिति में है। दरअसल यहां पर भूमि के धंसने और घरों, सरकारी भवनों और सड़कों पर दरारें पड़ने की समस्याएं लोगों की परेशानी का कारण बन गयी हैं।

समस्याओं से घिरा जोशीमठ

इन समस्याओं के कारण स्थिति ऐसी है कि यहां के लगभग 576 घरों के 3000 लोग प्रभावित हो रहे हैं। यहां की मारवाड़ी की जेपी कॉलोनी में भूमि से पानी भी निकलने की शिकायत है। स्थिति ऐसी है कि जोशीमठ डूब (Joshimath Sinking) रहा है, यह अति आवश्यक है कि इस पूरे क्षेत्र को इस समस्या से उबारा जाए और इस आपदा से पूर्ण रूप से पार पाने के लिए सरकार के द्वारा जल्द से जल्द और अधिक कदम उठाए जाए।

हालांकि जोशीमठ की समस्याओं को लेकर वहां की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने कदम उठाए हैं जिसके तहत एनटीपीसी की जल विद्युत परियोजना, हेलंग मारवाड़ी बाईपास के साथ-साथ अन्य बड़े प्रोजेक्ट्स पर रोक लगा दी गयी है। जोशीमठ (Joshimath Sinking)  से जुड़े कुछ चित्र सामने आए है जिसमें देखा जा सकता है कि घरों, सड़कों और खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हुई है।

SOURCE TFI

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Joshimath Sinking: जोशीमठ के बारे में

जोशीमठ देश का पवित्र और पावन तीर्थस्थलों में से एक है। जोशीमठ में हिन्दुओं का प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ भी है। 8वीं सदी में धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य को जब ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के भिन्न-भिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पूर्व उन्होंने यहीं पर प्रथम मठ ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। बद्रीनाथ, औली तथा नीति घाटी के निकट होने के कारण जोशीमठ एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल का रूप ले लिया है। ऐसी भी मान्यता है कि बद्रीनाथ की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती है जब तक जोशीमठ जाकर नरसिंह मंदिर में पूजा-अर्चना न की जाए।

यूनेस्को वर्लड हेरिटेज साइट की लिस्ट तक में इसे शामिल किया गया है। वहीं यहां की सबसे विशेष बात यहां के खिले-खिले फूल हैं, यहां पर 500 से भी अधिक प्रजाति के फूल होते हैं। परंतु जो जोशीमठ अपनी खूबसूरती के लिए इतना लोकप्रिय रहा है, उसकी (Joshimath Sinking) स्थिति अब खराब होती चली जा रही है।

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भयानक बाढ़ और भूकंप

वर्ष 2021 में जोशीमठ ने एक भयानक बाढ़ का सामना किया है। तब ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक से बाढ़ आ गई थी जिससे यहां के कई गांव बर्बाद हो गए थे। वहीं वर्ष 1999 में चमोली में आये बड़े भूकंप के बाद से अब तक (24 वर्षों) कोई भी बड़ा भूकंप नहीं आया है। वहां के लोगों को इस बात की आशंका है कि ये सभी किसी भूगर्भीय हलचल के कारण हो रहा है।

जोशीमठ में आए इस (Joshimath Sinking)  संकट पर आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर डॉ. सत्येंद्र मित्तल ने कहा है कि “जोशीमठ रिसाव मानव जनित और प्राकृतिक कारणों की वजह से ही हो रहा है। इसे जल्द से जल्द रोकने के लिए ऐसे स्थानों को चिह्नित करना चाहिए जहां से यह रिसाव हो रहा है और वहां केमिकल ग्राउटिंग का छिड़काव करना चाहिए।”

जोशीमठ (Joshimath Sinking) में किए गए एक सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि वहां पानी निकासी की सही व्यवस्था नहीं है लेकिन इसके बाद भी शहर में लगतार निर्माण कार्य में बढ़ोतरी होती जा रही है। रुड़की में स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने यहां पर विशेष निगरानी के साथ ही जांच की भी बात कही है। वैज्ञानिकों ने पहले भी अपने सुझाव में शहर के ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने की बात पर जोर दिया था। आगे के सुझाव में कहा गया कि निचली ढलानों पर रह रहे परिवारों को फिर से विस्थापित किया जाना चाहिए और सभी निर्माण कार्यों को तत्काल रोकना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही घातक हो सकता है।

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पहाड़ी के नीचे सुरंग

कुछ लोगों का संदेह जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे सुरंग से निकाली जाने वाली नेशनल थर्मल पॉवर कॉर्पोरेशन (NTPC) की निर्माणाधीन विष्णुगाड़ जल विद्युत परिजोना पर भी जा रहा है। इतना ही नहीं यहां पर हेलांग-विष्णुप्रयाग बाईबास का भी निर्माण हो रहा है जिसके लिए खुदाई का कार्य चल रहा है। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा की माने तो टेक्निकल टीम के द्वारा यहां जमीन धंसने की जांच की है और उनके अनुसार, जोशीमठ में पानी की निकासी की सही व्यवस्था न होना ही इसका प्रमुख कारण है।

जोशीमठ में रहने वाले निवासियों और वहां पर जाने वाले पर्यटकों के बीच भयग्रस्त माहौल है। इसके चलते न जाने कितने लोगों को अपने घर को भी छोड़ना पड़ा है, लोग जल्द से जल्द किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचना चाहते हैं। यहां के घरों, सड़कों और खेतों में आई दरारें लगातार बड़ी होती जा रही हैं और इसी के साथ लोगों का भय भी बढ़ रहा है।

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नींव खिसक सकती है

पिछले साल नवंबर से ही यहां की जमीन धंसने और घरों में दरारें पड़ने के मामले सामने रहे हैं लेकिन अब स्थिति बहुत ही अधिक गंभीर हो चुकी है। लगभग 17 हजार की आबादी वाले इस शहर के कई हिस्से भूमि में धंस गए हैं और अब भूमि से पानी निकलने के कारण जोशीमठ डूबने (Joshimath Sinking) के भय से घिरा है।

वर्ष 1975 में मिश्रा कमेटी के द्वारा आई एक रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया था कि भूकंप की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत अधिक संवेदनशील है। वहीं एक रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों की समिति ने कहा था कि भारी बारिश, भूकंप, अनियंत्रित निर्माण और क्षमता से अधिक पर्यटकों के कारण जोशीमठ की नींव खिसक सकती है।

जोशीमठ (Joshimath Sinking) पर आए इस बड़े संकट के लिए ये सभी कारण जिम्मेदार हो सकते हैं लेकिन भय से भाग नहीं सकते हैं कि इन समस्याओं से जोशीमठ के अस्तित्व और यहां के लोगों के भविष्य पर खतरा है। इस गंभीर और नाजुक स्थिति को देखते हुए सरकार को और अधिक ध्यान देते हुए इस पवित्र स्थल जोशीमठ को उबारना होगा।

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