यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
अर्थात् जब-जब धरती पर धर्म की हानि होगी तब-तब मैं(भगवान विष्णु) अधर्म का नाश करने के लिए धरा पर अवतार लूंगा। इस श्लोक को चरितार्थ करते हुए भगवान विष्णु अब तक आठ बार पृथ्वी पर पूर्ण रूप से अवतरित होकर धर्म की स्थापना कर चुके हैं परन्तु क्या आप जानते हैं कि भागवान के इन 8 अवतारों के इतर भी कई और अवतार हैं। अपने कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को संपन्न करने के लिए भगवान विष्णु को आंशिक रूप से भी पृथ्वी पर आना पड़ा।
भगवान विष्णु के आंशिक अवतारों के बारे में बात की जाए तो हमारे समक्ष नर-नारायण, कपिल मुनि, पृथु, धनवंतरी, मोहिनी, दत्तात्रेय अवतार हैं। भगवान विष्णु के ये आंशिक अवतार एक निश्चित लक्ष्य और निश्चित समय के साथ पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इन अवतारों का एक निश्चित उद्देश्य था जिसे पूर्ण कर पुनः भगवान विष्णु में विलीन हो गए थे।
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भगवान विष्णु के नर-नारायण अवतार
नर-नारायण भगवान विष्णु के आंशिक अवतारों में से एक हैं। बताया जाता है कि इन्होंने जुड़वा संतों के रूप में अवतार लिया था और बद्रीनाथ तीर्थ में तपस्या की थी। धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान नर और नारायण ब्रह्मदेव के प्रपौत्र थे और इन्हें पृथ्वी पर धर्म का प्रसार करने का श्रेय दिया जाता है।
भगवान विष्णु के अवतार कपिल मुनि
कपिल मुनि प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली ऋषि थे। भगवान विष्णु के अवतार के साथ-साथ इन्हें सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है। इनकी माता का नाम देवहुती व पिता का नाम कर्दम था। बताया जाता है कि कपिल मुनि की माता देवहुती ने भगवान विष्णु के समान पुत्र की कामना की थी इसलिए भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में देवहुति के गर्भ से जन्म लिया था।
भगवान विष्णु के अवतार धन्वंतरि
सनातन धर्म के अनुसार धन्वंतरि’ भगवान विष्णु के अवतार हैं इन्हें आयुर्वेद के प्रवर्तक रूप में भी जाना जाता है। इसी के साथ पृथ्वी लोक पर इनका अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। धन्वंतरि की छवि भगवान विष्णु के समान ही है परन्तु वो एक हाथ में समुद्र मंथन से निकला हुआ अमृत कलश धारण किए हुए हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।
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भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार
मोहिनी अवतार भगवान विष्णु का एक मात्र स्त्री अवतार है। इस अवतार का उद्देश्य समुद्र मंथन से निकले अमृत को असुरों के चंगुल से बचाना था। असल में समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला तो भस्मासुर ने उस कलश को चुरा लिया जिसके बाद देवताओं को चिंता सताने लगी कि भस्मासुर अगर अमृत को सभी असुरों को पिला देगा तो सभी असुर अमर हो जाएंगे और पृथ्वी पर अराजकता फैल जाएगी। ऐसे में देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रर्थना की और कहा कि इस अनर्थ को होने से रोकिए। तब भगवान विष्णु ने भस्मासुर को मोहित करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया और अंततः उसे भस्म कर अमृत कलश प्राप्त किया।
भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय
दत्तात्रेय भगवान विष्णु का अवतार हैं और ये महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। दत्तात्रेय में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की छवि देखने को लिए मिलती है। देवी अनुसूया और त्रिदेवों कि एक पूरी कथा है जिसमें तीनों भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश माता अनुसूया को आशीर्वाद देते हैं वे तीनों देवी अनुसूया के गर्भ से एक बालक के रूप में जन्म लेंगे। इस प्रकार माता अनुसूया के गर्भ से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इस प्रकार माता अनुसूया के गर्भ से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। दत्तात्रेय और माता अनुसूया की कथा के बारे में हमने अपने दूसरे लेख में विस्तार से बताया हैं जिसे आप पढ़ सकते हैं।
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पृथु भगवान विष्णु के अवतार
पृथु राजा वेन के पुत्र और भगवान विष्णु के अवतार थे, जिन्होंने पृथ्वी पर सर्वप्रथम राजशासन स्थापित किया था। इनके बारे में यह भी बताया जाता है कि इन्होंने पृथ्वी को गाय के रूप में पहली बार दुहा था। इस कारण इन्हें पृथ्वी के प्रथम राजा के रूप में स्वीकार किया गया और पृथु नाम दिया गया। यह भी माना जाता है कि पृथ्वी पर पहली बार कृषि इनके द्वारा ही की गई थी।
भगवान विष्णु ने पृथ्वी का कल्याण करने के लिए आंशिक रूप से पृथ्वी पर कई बार अवतार लिया जिनका समय भले ही क्षणिक था लेकिन उद्देश्य पूर्ण अवतारों के समान ही था। फिर चाहे वह मोहिनी अवतार को देख लीजिए या फिर दत्तात्रेय के अवतार, भगवान विष्णु के सभी अवतार पृथ्वी पर पालनहार की भूमिका निभाने के लिए हुए थे।
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