“मेरे देश की धरती सोना उगले,
उगले हीरे मोती,
मेरे देश की धरती”
भाग्य भी बड़ी विचित्र वस्तु है। जिस व्यक्ति ने इस गीत को गाया, उसे अपनी पहचान स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा। ऐसा नहीं था कि कोई उससे जले या चिढ़े, परंतु दो चर्चित गायकों के प्रभाव में इनकी प्रतिभा कम ही लोगोँ को सुनाई दी। परंतु फिर आई 1988 की वो सुबह, जब देश के कोने कोने में “महाभारत” का शीर्षक गीत बजा, और इन्हे अपना उचित सम्मान भी मिला। इस लेख में पढ़िए कि कैसे महेंद्र कपूर में प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी परंतु उन्हें यश एवं समृद्धि देर से मिली।
महेंद्र कपूर का प्रथम गीत
अमृतसर में 9 जनवरी 1934 को जन्मे महेंद्र कपूर प्रारंभ से ही संगीत की ओर आकर्षित थे। प्रतिभा की उनमें कोई कमी नहीं थी। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित हुस्नलाल, पंडित जगन्नाथ, उस्ताद नियाज अहमद खां, उस्ताद अब्दुल रहमान खां और पंडित तुलसीदास शर्मा जैसे दिग्गजों से ली थी।
और पढ़ें: नवाजुद्दीन सिद्दीकी आप सुपरस्टार नहीं, अपने आप को इतनी गंभीरता से लेना बंद कर दो
पार्श्वगायन में करियर बनाने के लिए वे कम उम्र में ही मुंबई आ गए थे। वे इतने प्रतिभावान थे कि इन्होंने मर्फी रेडियो द्वारा संचालित एक संगीत प्रतियोगिता में निर्विरोध विजय प्राप्त की। इसी के दम पर इन्हे वी. शांताराम की फिल्म नवरंग में गाने का मौका मिला जिसमें संगीतकार थे सी. रामचंद्र और गीत, “आधा है चंद्रमा, रात आधी” भी जबरदस्त हिट हुआ, जिसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
मोहम्मद रफी से प्रेरित महेंद्र कपूर को उनसे काफी कुछ सीखने को भी मिला। चूंकि मोहम्मद रफी और नौशाद के बीच काफी मधुर संबंध थे, इसलिए महेंद्र कपूर के अनुरोध पर उन्होंने रफी साहब से मिलवा दिया। दोनों की आयु में अधिक अंतर नहीं था, परंतु लेकिन रफी साहब ने महेंद्र कपूर को फिल्मी संगीत की बारीकियां भी बताईं।
महेंद्र कपूर को लोकप्रियता देश प्रेम से संबंधित गीतों से मिली। ऐसा नहीं था कि उनमें विविधता नहीं थी, परंतु उन्हे ऐसे गीतों के लिए उन्हें अधिक जाना जाता था। “मेरे देश की धरती” और “भारत का रहने वाला हूँ” जैसे गीत तो आज भी स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर सुनने को मिलते हैं।
महेंद्र कपूर को मिला नेशनल अवॉर्ड
इसके अतिरिक्त ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों’ हो या ‘नीले गगन के तले…’ जैसे गीतों के लिए भी महेंद्र कपूर को खूब सराहा गया। उन्हें पहला फिल्म फेयर अवॉर्ड भी ‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनो’ के लिए ही मिला। उपकार फिल्म के ‘मेरे देश की धरती’ के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला था। इतना ही नहीं, बहुत कम लोगों को पता है कि जब बहुचर्चित यूरोपियन बोनी एम ने भारत यात्रा की तो महेंद्र कपूर ने इस बैण्ड के साथ जुगलबंदी भी की थी।
और पढ़ें: “तभी कहते हैं सोचकर बोलो”, एक बात ने ओमपुरी को महानायक से खलनायक में बदल दिया था
अपने करियर में महेंद्र कपूर बी.आर. चोपड़ा और मनोज कुमार के पसंदीदा गायक रहे। कहते हैं कि जब 1968 में मनोज कुमार को पता चला कि फिल्म “आदमी” के एक गीत “ओ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की” को मोहम्मद रफी के साथ तलत महमूद गाएंगे तो वो निराश हुए थे क्योंकि वो यह गीत महेंद्र कपूर से गवाना चाहते थे।
अब नौशाद मनोज कुमार की बात कैसे टालते? उन्होंने इस प्रार्थना को स्वीकार किया और रफी साहब की आवाज वाला हिस्सा दिलीप कुमार पर फिल्माया गया और महेंद्र कपूर की आवाज वाला हिस्सा मनोज कुमार पर। ये गाना महेंद्र कपूर के दिल के भी काफी करीब था क्योंकि इसमें वो अपने गुरू समान मोहम्मद रफी के साथ गायकी कर रहे थे।
अब प्रश्न यह है कि महेंद्र को निर्माता निर्देशकों ने प्रथम प्राथमिकता पर क्यों नहीं रखा? दरअसल, ये वो समय था जब बॉलीवुड में या तो किशोर कुमार के चर्चे होते या फिर मोहम्मद रफी के और इनके विकल्प के रूप में मुकेश तो थे ही। इसी पसोपेश में महेंद्र कहीं दब के रह गए।
परंतु प्रतिभा छुपाई जा सकती है, मिटाई नहीं जा सकती। महेंद्र कपूर को बी. आर. चोपड़ा ने पुनः अवसर दिया, अपने बहुचर्चित प्रोजेक्ट “महाभारत” में, और फिर महेंद्र कपूर का बहुचर्चित गीत “अथ श्री महाभारत कथा” देश के कोने-कोने में प्रसारित होने लगा। आज भी महेंद्र अपने प्रतिभा और अपने विनीत स्वभाव के लिए य़ाद किये जाते हैं।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।