मोंगला पोर्ट में मुंह घुसाना चाहता है चीन, लेकिन भारत उसे मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तत्पर बैठा है

बांग्लादेश की भी परीक्षा की घड़ी आ गई है।

मोंगला पोर्ट

Source- TFI

चीन बीते कई वर्षों से भारत के पड़ोसी देशों में अपना सिक्का जमाकर भारत को घेरने के प्रयासों में लगा है। चीन अपनी इन्हीं कोशिशों के चलते अब बांग्लादेश में भी अपने निवेश में वृद्धि कर रहा है। पहले जहां भारत और चीन के बीच भूमि, बहुराष्ट्रीय मंच, द्विपक्षीय राजनयिक वार्ता, अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी आदि को लेकर एक जंग चल रही थी। वही अब मोंगला पोर्ट भारत और चीन के लिए नया युद्ध का मैदान बनता दिख रहा है। दरअसल भारत ने मोंगला पोर्ट में पहले से ही काफी पैसा लगा रखा है, लेकिन अब चीन भी इस परियोजना में अपनी दिलचस्पी दिखाने लगा है। मोंगला पोर्ट क्यों रणनीति का नया अड्डा बन रहा है, आइये जानते हैं।

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भारत के साथ अनुबंध

मोंगला पोर्ट अथॉरिटी और EGIS इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने मोंगला पोर्ट को अपग्रेड यानी उन्नयन करने के लिए प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए अनुबंध पर अपने हस्ताक्षर किये थे। भारत को बांग्लादेश में मोंगला बंदरगाह के उन्नयन के लिए सलाहकार के रूप में चुना गया था। वर्ष 2015 में बांग्लादेश ने भारत की सहायता से ऋण के माध्यम से इसे अपग्रेड करने का निर्णय किया था। बांग्लादेश की राष्ट्रीय आर्थिक परिषद (ECNEC) की कार्यकारी समिति ने 2018 में परियोजना को मंजूरी दे दी थी। 600 मिलियन डॉलर के सौदे के अनुसार, 75 प्रतिशत धन भारत द्वारा प्रदान किया जाने वाला है।

भारत 600 मीटर का पार्किंग यार्ड, कार पार्किंग के लिए एक बड़ा बहुमंजिला गैरेज, जल निकासी व्यवस्था के साथ चार लेन की सड़क, एक शिपयार्ड, एक फ्लाईओवर और कंटेनर सुविधाओं के साथ दो घाटों का विस्तार करने वाला है। भारत से बढ़ते बुनियादी ढांचे के समर्थन के साथ बंदरगाह की क्षमता 1,800 जहाजों, 1.5 मिलियन मीट्रिक टन कार्गो, 4 लाख टीईयू कंटेनरों और 10,000 वाहनों तक बढ़ने की उम्मीद लगायी जा रही थी। यह वार्षिक आधार पर बांग्लादेशी ट्रेजरी में Tk 3150 जोड़ देगा। ये बंदरगाह पहले से ही बांग्लादेश में दूसरा सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त बंदरगाह है। साल 2012 से इस बंदरगाह ने औसत वार्षिक आधार पर 12 प्रतिशत अधिक जहाजों और 17 प्रतिशत अधिक कार्गो को संभाल रखा था।

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चीन की भी मोंगला बंदरगाह पर नजर

अब इतनी सारी सुविधाओ के चलते तो कोई भी देश लालच में आ जाएगा न? यही कारण है कि चीन भी इसमें जोर-शोर से निवेशकर हड़पने के प्रयास में जुटा है। दरअसल, EGIS को भागीदार बनाने की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही चीन भी इस बंदरगाह में शामिल हो गया। वर्ष 2016 में जिनपिंग के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच एक व्यापक समझौता हुआ, जिसमें चीन ने बंदरगाह की सुविधाओं के विस्तार और आधुनिकीकरण का वादा किया। मोंगला पोर्ट अथॉरिटी ने चाइना नेशनल कंप्लीट इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के साथ एक समझौता भी किया था, लेकिन चीन अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने को तैयार ही नहीं था। जैसे ही चीन को भारतीय सौदे के विषय में पता चला तो घबराया चीन, बांग्लादेश को धन देने को तैयार हो गया। बांग्लादेश को 353.52 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है। इसका उपयोग दो कंटेनर टर्मिनल और डिलीवरी यार्ड बनाने के लिए किया जाएगा।

मोंगला बंदरगाह क्यों महत्वपूर्ण? 

मोंगला बंदरगाह बांग्लादेश के लिए व्यावसायिक महत्व भी रखता है। यह भारत और म्यांमार के साथ-साथ बांग्लादेश और उसके पड़ोसी देशों के बीच व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। ये भारत और चीन के लिए सामरिक महत्व भी रखता है। ये बंदरगाह पशूर नदी के पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी के करीब है। बंदरगाह शिपिंग लेन के भी बहुत निकट है, जो एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ता है और ये इसे वैश्विक व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना देता है। यह प्राकृतिक गैस और अन्य खनिजों सहित संसाधनों की एक श्रृंखला तक पहुंच प्रदान करता है।

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अगर देखा जाए तो चीन काफी समय से चाहता है कि एशिया खास तौर पर साउथ एशिया में उसका सिक्का चले, लेकिन भारत के रहते उसका ये सपना पूर्ण नहीं हो रहा है। क्योंकि भारत उसे सीधे तौर पर टक्कर दे रहा है। इतना ही नहीं बीते दो वर्षों से विदेश नीति के मामलों में काफी चीज़ों में बदलाव देखने को मिला है। वैश्विक मंचों पर भारत की ताकत और आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखी है। रूस और युक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भी भारत ने आगे आकर अपना पक्ष रखा है। इससे विदेशी मामलों को लेकर भारत की छवि काफी बदल गयी है। इससे भी चीन के सीने पर सांप लोट रहा है। अब चीन कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन वो अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाएगा।

भारत ने की बांग्लादेश की सहायता

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बीते कुछ समय से भारत ने बांग्लादेश की भिन्न-भिन्न तरह से काफी सहायता की है। भारत का रुख बांग्लादेश को लेकर काफी अच्छा रहा है। भारत बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। हाल ही में रूस से बांग्लादेश की तरफ रवाना हुए परमाणु ऊर्जा संयंत्र को ही ले लीजिए। पश्चिमी देशों के डर से बांग्लादेश ने रूसी जहाज को अपने पोर्ट पर रूकने नहीं दिया, क्योंकि युद्ध के कारण रूस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं। वहीं भारत ने उस जहाज को हल्दिया पोर्ट पर उतरने की न केवल अनुमति दी, बल्कि सड़क मार्ग से पूरा सामान भी बांग्लादेश भेज दिया। ये भारत के द्वारा बांग्लादेश की एक बड़ी सहायता थी।

इतना ही नहीं बांग्लादेश ने भारतीय सैन्य उपकरण में भी विशेष रुचि दिखाई है। कई युद्ध अभ्यासों और विभिन्न सरकारी यात्राओं के बाद बांग्लादेश ने हाल ही में कई भारतीय सैन्य उपकरण एवं वाहनों को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी, जिसमें टाटा एवं महिंद्रा द्वारा निर्मित स्पेशलिस्ट वाहन, तेजस कॉम्बैट विमान एवं ध्रुव लाइट कॉम्बैट विमान इत्यादि सम्मिलित हैं। बांग्लादेश को लंबे समय तक चीन के साथ गठबंधन करने से कोई भी खासा लाभ नहीं हुआ है। चीन चाहे एड़ी चोटी का जोर क्यों न लगा ले, लेकिन बांग्लादेश मोंगला पोर्ट में चीन को एंट्री नहीं मिलेगी और ये बात भारत हर कीमत में सुनिश्चित करेगा।

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