“शेर को सांप और बिच्छू नहीं काटा करते, दूर से ही रेंगते हुए निकल जाते हैं”
“हमारी ज़बान भी हमारी गोली की तरह है, दुश्मनों से सीधे बात करती है!”
ऐसे संवाद जब सिनेमा हॉल में गूंजते, तो दर्शक उत्साह में तालियां और सीटियां बजाने से बिल्कुल नहीं चूकते थे। हर स्टार मुख में चांदी की चम्मच लेकर नहीं पैदा होता, कुछ लोग “माटी के लाल” बनकर भी दर्शकों के हृदय में अपना स्थान बना लेते हैं। कभी बॉम्बे पुलिस में सब इंस्पेक्टर रहे कुलभूषण पंडित जब “राज कुमार” बने, तो किसे पता था कि बॉलीवुड में न केवल एक सुपरस्टार बनेगा, अपितु एक ऐसा व्यक्ति भी निकलेगा जो सुने भले सबकी, पर करेंगे केवल अपने मन की। इस लेख में हम जानेंगे राज कुमार के अतरंगी स्वभाव के बारे में और कैसे वे न किसी से दबे, न झुके, और कहीं न कहीं इसी कारण से बॉलीवुड के “बाहुबली” भी बने?
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मुंहफट थे राज कुमार
कुछ लोग पर्दे पर कुछ होते हैं और असल जिंदगी में कुछ और। परंतु राज कुमार का व्यक्तित्व इन सब से परे था। जितने बेबाक वे ऑनस्क्रीन थे, वे ऑफस्क्रीन भी उतने ही मुंहफट थे। कुछ लोग इन्हें घमंडी और सनकी भी कहते थे। परंतु राज कुमार का इससे मत भिन्न है। वे फिल्म उद्योग को काफी करीब से जानते थे और इसीलिए उसके खोखलेपन से वे खिन्न रहते थे। शायद इसीलिए इनकी एक फिल्म का गाना भी इनके जीवन का सार था, “यह दुनिया, यह महफ़िल मेरे काम की नहीं!”
अजब गजब किस्से
राज कुमार के ऐसे अजब गजब किस्से थे कि आज भी कुछ लोग उन्हें सुनकर दंग रह जाते हैं। क्या आपको पता है कि उन्होंने ज़ंजीर जैसी फिल्म को केवल दुर्गंध के पीछे करने से मना कर दिया था? कहते हैं कि निर्देशक प्रकाश मेहरा राज कुमार को फिल्म में लेने के लिए उत्सुक थे। परंतु जब वे उनके पास गए तो राज कुमार ने स्पष्ट कहा, “तुमसे तो बिजनौरी तेल की बदबू आ रही है। फिल्म करना तो दूर, हम तो तुम्हारे साथ एक मिनट भी खड़े होना बर्दाश्त नहीं कर सकते”। इसीलिए प्रकाश को विवश होकर अमिताभ बच्चन को रोल में लेना पड़ा।
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इसी भांति “तिरंगा” को लेकर भी एक गजब किस्सा है। आज भी लोग ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह के स्वभाव और उनके संवाद नहीं भूले हैं, परंतु बहुत कम लोगों को पता है कि इस फिल्म को बनाने में “मेहुल कुमार” जैसे निर्देशक को भी काफी पापड़ बेलने पड़े थे। राज कुमार के अक्खड़ स्वभाव के कारण रजनीकांत जैसे अति लोकप्रिय सुपरस्टार ने काम करने से मना कर दिया था। स्वयं नाना पाटेकर भी कोई बहुत सौम्य मनुष्य नहीं थे। स्थिति तो ऐसी थी कि दोनों में लगभग झड़प होते होते रह गई। परंतु राज कुमार ने स्थिति को संभाला और आगे क्या हुआ, वह इतिहास है। फिल्म अपने समय की ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई।
परंतु जिसे लोग राज कुमार का घमंड समझते हैं, वो वास्तव में उनका दृढ़ आत्मविश्वास था। वे कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करते थे, जो उनके आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ करें और इसी पीछे उनकी राज कपूर से झड़प भी होती थी। राज कपूर को फिल्म इंडस्ट्री का “शोमैन” कहा जाता था, परंतु राज कुमार से उनकी खुन्नस किसी से नहीं छुपी है। जब एक दिन राज कपूर ने सार्वजनिक तौर पर राज कुमार को अपमानित किया, तो उन्होंने भी प्रत्युत्तर में राज को खूब खरी खोटी सुनाई और स्पष्ट तौर पर “मेरा नाम जोकर” में काम करने से मना कर दिया।
राज कुमार को फिल्म उद्योग का खोखलापन इतना चुभता था कि वो नहीं चाहते थे कि उनके अंतिम संस्कार में किसी भी फिल्म इंडस्ट्री से कोई भी शामिल हो। शायद इसीलिए उनके फिल्म का यह डायलॉग उनके व्यक्तित्व को भी परिलक्षित करता है – “हमको मिटा सके यह ज़माने में दम नहीं, हम से ज़माना है, ज़माने से हम नहीं!”
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