प्रधान जी, भूरा, चाचा चौधरी और मुंगेरीलाल में एक समान बात बताइये। बात केवल यही नहीं है कि इन्हें एक ही अभिनेता ने निभाया, अपितु इनकी उत्कृष्टता ऐसी है कि इनकी फिल्में सर्वाधिक बार ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है। नहीं नहीं, हम कमल हासन की नहीं अपितु उन रघुबीर यादव की बात कर रहे हैं, जिनके बिना पंचायत वैसी है, जैसे हलवा बिन शक्कर और दाल बिन नमक। इस लेख में हम जानेंगे रघुबीर यादव (Raghubir Yadav) के बारे में जिनके अभिनय का कोई सानी नहीं और जिनकी कला को अभी भी उनका उचित सम्मान नहीं मिला।
रघुबीर यादव (Raghubir Yadav) केवल एक विशुद्ध अभिनेता ही नहीं है, अपितु उन कलाकारों में सम्मिलित है, जो किसी एक सीमा में बंधकर नहीं रह सकते। स्वयं उनके अनुसार– “मेरी फितरत रही है कि मैं अलग-अलग काम करूं। एक बार जो काम कर लिया है वैसा किरदार दोबारा न करूं ताकि मुझे मेहनत करने का मौका मिले, मुझे होमवर्क करने का मौका मिले। मैं बचपन से ही आराम तलबी में विश्वास नहीं करता था। जब मुझे एक तरह का काम मिलता है तो मैं मना भी कर देता हूं कि मैं ये काम कर चुका हूं कुछ दूसरा काम लाइए।”
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संगीत से है लगाव
ये बात हमारे ‘प्रधान जी ‘ ने ऐसी गांठ बांध ली है कि ये इनके कार्यशैली में स्पष्ट दिखाई देती है। जबलपुर में जन्में इस कलाकार को अभिनय ही नहीं, संगीत भी मानो सरस्वती देवी से वरदान में मिली थी। रघुबीर जी (Raghubir Yadav) को बचपन से ही गीत-संगीत से लगाव था, जिसे चलते वो बढ़-चढ़कर रामलीला और स्टेज शो में भाग लेते थे। वह कहते हैं, “बचपन में मुझे संगीत ने बड़ा ही इंस्पायर किया। एक पापड़ वाला आता था और बड़े लय में वो पापड़ बेचता था, मूंग के पापड़ लो उड़द के पापड़ लो, .वहीं से संगीत की तरफ खींचता चला गया।”
यहीं से रघुबीर यादव के कलात्मक यात्रा का आरंभ हुआ। 1977 से 1986 तक इन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में बतौर विधार्थी एवं अध्यापक काफी समय बिताया। रघुबीर ने फिल्म जगत में 1985 में ‘मैसी साहिब’ से डेब्यू किया। तत्पश्चात इन्होंने कुछ समय स्ट्रगल किया, परंतु 1988 में इन्होंने अपने जीवन के सबसे उत्कृष्टतम भूमिकाओं में से एक को आत्मसात किया, जिसका नाम था ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’। ये शो इतना प्रसिद्ध हुआ कि रघुबीर यादव (Raghubir Yadav) को कई लोग मुंगेरीलाल के नाम से ही संबोधित करते।
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आठ फिल्में ऑस्कर के लिए हुई नॉमिनेट
रघुबीर यादव (Raghubir Yadav) इसके अतिरिक्त अनेक फिल्मों में अपने अभिनय का कलात्मक प्रदर्शन किये, जिसमें से आठ फिल्में भारत की ओर से ऑस्कर पुरस्कार में नामांकन हेतु भेजा गया। बड़ा हो या छोटा, ये किसी भी रोल को नहीं छोड़ते। इसमें से तीन फिल्में तो बेस्ट फॉरेन फिल्म के लिए नॉमिनेट भी किया गया, अब वो अलग बात है कि वह तीनों फिल्में ‘सलाम बॉम्बे’, ‘लगान’ एवं ‘वॉटर’ थी, और “पीपली लाइव” में इनके गीत “महंगाई डायन” को कौन भूल सकता है?
परंतु इससे रघुबीर (Raghubir Yadav) की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा। मुंगेरीलाल की भांति इन्होंने बहुचर्चित कॉमिक “चाचा चौधरी” को भी जीवंत किया, जहां उनका साथ देने स्वयं “महाभारत” के भीम यानी प्रवीण कुमार सोबती, साबू के रूप में प्रकट हुए। परंतु जो लोकप्रियता और सम्मान इन्हें ‘ पंचायत’ से मिला, उसकी तो बात ही कुछ और है। पहला तो पहला, दूसरे संस्करण में बृज भूषण दुबे के रूप में इन्होंने सीज़न की सफलता में चार चांद लगा दिये। आशा करते हैं कि रघुबीर यादव आगे भी ऐसे ही हमारा मनोरंजन करेंगे।
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