Raja Vikramaditya राजा विक्रमादित्य : जन्म और इतिहास
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Raja Vikramaditya साथ ही इससे जुड़े रोचक तथ्य के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
राजा विक्रमादित्य का जन्म और इतिहास –
राजा विक्रमादित्य के जन्म को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है जिसका कारण इस सम्बन्ध में पर्याप्त साक्ष्यों का ना होना है। अधिकतर इतिहासकार मानते है की उनका जन्म 102 ई. पू. के आसपास हुआ था। इनके जन्म को लेकर विभिन किवदंतियाँ प्रचलित है। एक जैन साधु महेसरा सूरी की कथा के अनुसार उज्जैन के एक शासक गर्दभिल्ला या गर्धववेष ने अपने बाहुबल के उपयोग से एक सन्यासिनी का अपहरण किया था जिसके भाई की गुहार पर शकों ने सन्यासिनी को गर्दभिल्ला के चंगुल से मुक्त कराया और गर्दाभिल्ला को जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया। गर्दभिल्ला को जंगली जानवरो ने अपना शिकार बना दिया और और उसकी मृत्यु हो गयी। कहा जाता है की राजा विक्रमादित्य इसी अत्याचारी शासक गर्दभिल्ला के पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए शकों को पराजित किया था।
बेताल पच्चीसी –
भारतवर्ष की सबसे प्रसिद्ध कथाओ में शुमार बेताल पच्चीसी राजा विक्रमादित्य की न्याय-शक्ति का बोध कराने वाली नैतिक कथाये है। इस कथा संग्रह में कुल पच्चीस कहानियाँ है जिसके कारण इसका नाम बेताल पच्चीसी यानी पिचाश की पच्चीस कहानियाँ पड़ा है। एक साधु के आग्रह करने पर राजा विक्रमादित्य को एक पेड़ पर लटके बेताल को उतार कर लाना है परन्तु शर्त यह है की राजा को बेताल से एक भी शब्द नहीं कहना है। राजा बेताल को पेड़ से उतार कर लाता है परन्तु हर बार बेताल राजा को एक नीतिपूर्ण कथा सुनाता है। कथा के अंत में बेताल राजा को एक पहेली देता है और श्राप देता है की यदि उसने उत्तर जानने के बावजूद भी उत्तर नहीं दिया तो उसका सर फट जायेगा। अंत में राजा पहेली का सही उत्तर दे देता है और बेताल उड़ कर पेड़ पर चढ़ जाता है।
महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्न –
- विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न शामिल थे। यह नौ व्यक्ति अत्यंत विद्वान पुरुष थे। इन नवरत्नों का नाम क्रमशःधन्वन्तरी, क्षपंका, अमर्सिम्हा, शंखु, खाताकर्पारा, कालिदास, भट्टी, वररुचि, वराहमिहिर था जो अत्यंत ही विद्वान थे।
- अन्य सम्राट जिन्हें दी गई विक्रमादित्य नाम की उपाधि व संज्ञा- भारत में महाराजा विक्रमादित्य के बाद कई ऐसे सम्राट भी हुए जिन्हें विक्रमादित्य की संज्ञा दी गई। राजा, श्रीहर्ष शुद्रक हल और चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य की संज्ञा दी गई थी।
- यही कारण है कि विक्रमादित्य नाम को लेकर आज भी इतिहासकारों में बहुत से मतभेद हुए हैं कुछ लोग मानते हैं की कालिदास महाराजा गंधर्व सेन के पुत्र महाराजा विक्रमादित्य के राज्यसभा में नवरत्न इनके थे |
रोचक तथ्य –
- महाराजा विक्रमादित्य ने ही विक्रम संवत की शुरुआत की उन्होंने 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत की नीव रखी।
- विक्रमादित्य पहले ऐसे राजा थे जिनके दरबार में नवरत्न सुशोभित हुए। महाराजा विक्रमादित्य के बाद ही राजाओं ने नवरत्न को दरबार में रखने की परंपरा शुरू की जिसके बाद कृष्णदेव राय और अकबर ने अपने दरबार में नवरत्न रखें।
- भारत के अलावा कई अरबी देशों ईरान, इराक, नेपाल और अन्य स्थानों पर महाराजा विक्रमादित्य के शासन के साक्ष्य मिलते हैं। अरब के एक कवि ने अपने काव्य ने लिखा है कि हम बहुत ही खुशनसीब हैं जो हमने महाराजा विक्रमादित्य के शासन में अपना जीवन व्यतीत करने का मौका मिला।
- महाराजा विक्रमादित्य अपनी प्रजाजनों के कुशलता के लिए सदैव समर्पित रहते थे वह अपनी प्रजा के बीच छद्म वेश धारण करके घूमा करते थे और उनके बीच चल रही समस्याओं और उनकी जरूरतों को समझा करते थे।
FAQ –
Ques- कौन थे राजा विक्रमादित्य?
Ans- भारत के महान शासक और एक आर्दश राजा थे।
Ques- राजा विक्रमादित्य की मृत्यृ कैसे हुई?
Ans- उन्होंने अपना देह त्याग कर दिया था।
Ques- राजा विक्रमादित्य का सिंहासन कहां स्थित है?
Ans- राजा विक्रमादित्य का सिंहासन महाकाल मंदिर के पीछे विक्रम टीला पर स्थित है।
Ques- राजा विक्रमादित्य का जन्म कब हुआ?
Ans- उनका जन्म 102 ई पू में हुआ।
Ques- राजा विक्रमादित्य की लोकप्रिय गाथाएं?
Ans- बृहत्कथा, बैताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी आदि शामिल है।
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