साईं बाबा की संध्या आरती : दोहा , प्रार्थना एवं शिक्षा

Sai Baba Evening Aarti

Sai Baba Evening Aarti : साईं बाबा की संध्या आरती : दोहा , प्रार्थना एवं शिक्षा 

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Sai Baba Evening Aarti साथ ही इससे जुड़े प्रार्थना के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

आरती साईबाबा

आरती साईबाबा । सौख्यदातार जीवा । चरणरजातली ।

द्यावादासा विसावा, भक्तां विसावा ।। आ० ।।ध्रु०॥

जाळूनियां अनंग । स्वस्वरूपी राहे दंग ।

मुमुक्षुजनां दावी । निज डोळां श्रीरंग । डोळां श्रीरंग ।। आ० ॥॥

जया मनी जैसा भाव । तया तैसा अनुभव ।

दाविसी दयाघना । ऐसी तुझी ही माव ।। आ० ।।।।

तुमचे नाम ध्याता । हरे संसृती व्यथा ।

अगाध तव करणी मार्ग दाविसी अनाथा ।। आ० ॥॥

कलियुगीं अवतार । सगुणब्रह्म साचार ।

अवतीर्ण झालासे ।स्वामी दत्त दिगंबर ।।द०॥आ० ।।।।

आठां दिवसां गुरूवारीं । भक्त करिती वारी ।

प्रभुपद पहावया । भवभय निवारी ।। आ० ॥॥

माझा निजद्रव्यठेवा । तव चरणरजसेवा

मागणें हेंचि आतां । तुम्हां देवाधिदेवा ॥आ० ।।६।।

इच्छित दीन चातक । निर्मल तोय निजसुख ।

पाजावें माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ।। आ० ।।।।

आरती साईबाबा । सौख्यदातार जीवा । चरणरजातली ।

द्यावादासा विसावा, भक्तां विसावा ।। आ० ।।ध्रु०॥

प्रार्थना —

ऐसा येई बा । साई दिगंबरा । अक्षयरूप अवतारा। सर्वही व्यापक तू ।

श्रुतिसारा । अनुसया त्रिकुमारा । बाबा येई बा ।।

काशी स्नान जप, प्रतिदिवशी । कोल्हापुर भिक्षेसि । निर्मल नदी तुंगा |

जल प्राशी । निद्रा माहुर देशी ।। ऐसा येईबा ।।

झोळी लोंबतसे वाम करी । त्रिशुल डमरू धारी । भक्ता वरद सदा सुखकारी ।

देशील मुक्ति चारि ।। ऐसा येईबा ।।

पायी पादुका । जपमाला कमंडलू मृगछाला । धारण करिशि बा ।

नागजटा मुगट शोभतो माथा ।। ऐसा येईबा ।।

तत्पर तुझ्या या जे ध्यानी । अक्षय त्यांचे सदानि । लक्ष्मी वास करी दिनरजनी ।

रक्षिसि संकट वारुनि ।। ऐसा येईबा ।।

या परीध्यान तुझे गुरुराया । दृश्य करी नयना या। पूर्णा नंद सूखे ही काया ।

लाविसि हरीगुण गाया ।। ऐसा येईबा ।।

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बाबा की शिक्षा –

साईं बाबा ने हर जाति और धर्म के लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने सदा ही सभी से एक ही बात कही- सबका मालिक एक।साईं बाबा ने यह संदेश भी दिया कि हमेशा श्रद्धा, विश्‍वास और सबूरी (सब्र) के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।लोगों में मानवता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए साईं ने संदेश दिया है कि किसी भी धर्म की अवहेलना नहीं करें। उन्होंने कहा है कि सर्वधर्म सम्मान करते हुए मानवता की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।

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