Sammed Shikharji Protest: देश में जैन समुदाय इन दिनों झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले को लेकर काफी नाराज़ होता हुआ दिखाई दे रहा है। जैन समुदाय के लोग दिल्ली समेत देश के बड़े-बड़े शहरो में प्रदर्शन भी कर रहे हैं। देशभर में जैन समाज की ओर से धरना प्रदर्शन, कैंडल मार्च, मौन जुलूस निकालकर विरोध प्रदर्शन कर नाराजगी जताई जा रही है। इसी क्रम में मुंडन कराकर विरोध जताया गया। उनका कहना है कि जैन तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाए जाने के फैसले को वापस लिया जाए। दरअसल, झारखंड की हेमंत सरकार ने गिरडीह जिले में मौजूद श्री सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) को पर्यटन स्थल के तौर पर घोषित किया है।
ज्ञात हो कि सम्मेद शिखरजी जैन समाज का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यह झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन इलाके में पारसनाथ पहाड़ियों पर स्थित है। जैन धर्म में इस पर्वत का बहुत ही खास महत्व है। जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार, यहां करीब 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया है। इसलिए श्री सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) जैन समुदाय के लिए अति पूजनीय है। लेकिन केंद्र सरकार और झारखंड की राज्य सरकार ने इसे एक पर्यटन स्थल का दर्जा दे दिया है। जिसके कारण जैन समाज के लोग इस फैसले का पुराजोर विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। यही नहीं, रविवार को राजधानी दिल्ली में जैन समुदाय के लोगों ने इस फैलसे का विरोध दर्ज कराते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंप अपनी मांगे भी रखी हैं।
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जैन समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं
सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाए जाने के बाद जैन समुदाय के लोगों का कहना है कि “सम्मेद शिखरजी जैन समाज के लिए एक आस्था और पूजा अर्चना करने का स्थल है। इसलिए इसे पर्यटन स्थल न बनाकर तीर्थ स्थल ही बने रहने देना चाहिए। क्योंकि जैन समाज में मांस, मदिरा का सेवन करना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है और सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) के पर्यटन स्थल बनने के बाद लोग यहां बड़ी तादात में आएंगे और अपनी इच्छा अनुसार खानपान करेंगे, जिससे इस तीर्थ स्थल को नुकसान होगा। यही नहीं, अभी कुछ समय पहले वहां एक व्यक्ति के शराब पीने का वीडियो भी वायरल हुआ था। ऐसे में जैन समाज के लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं, जिसे लेकर वे प्रदर्शन कर रहे हैं।
ध्यान देने योग्य है कि झारखंड सरकार ने वर्ष 2018 में सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) को ईको-सेंसिटिव क्षेत्र घोषित करने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की थी और वर्ष 2019 में इसे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील घोषित भी किया गया। अब केंद्र और झारखंड सरकार की ओर से एक नोटिस जारी करते हुए इसे पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया है, जिसे लेकर काफी बवाल मचा है। अब ऐसे में कई तरह के सवाल भी उठते हैं। क्या किसी भी धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल बनाना सही है? क्योंकि पिछले लंबे समय से हम यह देखते आ रहे हैं, जिस भी धार्मिक स्थल पर ‘UNESCO का धब्बा’ लग जाता है या फिर उसे पर्यटन स्थल घोषित कर दिया जाता है, उसके बाद उसकी पवित्रता खत्म होते देर नहीं लगती। बृहदेश्वर मंदिर का उदाहरण हमारे सामने हैं।
तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल बनाना है कितना सही?
भारत या दुनिया में किसी भी धर्म को मानने वाले लोगों के लिए उनके तीर्थ स्थल काफी मायने रखते हैं। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में एक बार अपने महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों पर अवश्य जाना चाहता है। ऐसे में यदि तीर्थ स्थलों को सैर-सापाटा और पिकनिक का स्थान बना दिया जाएगा तो उनका महत्व ही समाप्त हो जाएगा। यह सिर्फ जैन तीर्थ स्थलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पिछले कुछ वर्षों में हिंदू धर्म के तीर्थ स्थलों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिली है।
केदारनाथ में तो ब्लॉगर अपने कुत्ते के साथ पहुंच गया था, जिसे लेकर काफी बवाल भी मचा था। इसके अलावा तीर्थ स्थलों पर गंदगी भी उसी का प्रमाण देती है। लोग तीर्थ स्थलों पर शांति की तलाश में जाते हैं, मन को शांत करने, दिमाग को शांत करने, स्वयं को ढूंढने जैसी तमाम चीजें हैं, जिन पर एक इंसान तीर्थ स्थल की यात्राओं के समय अधिक ध्यान देता है। लेकिन आज के समय में स्थिति बदलती जा रही है। लोगों ने तीर्थ स्थलों के सैर को फैशन बना लिया है, वहां जाकर शराब पार्टी और मांसाहार का सेवन करने वाले तमाम लोग आपने भी देखे होंगे।
ऐसे में यदि सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) को तीर्थ स्थल से पर्यटन स्थल बनाए जाने को लेकर संक्षेप में कहा जाए तो सरकार के राजस्व के नजरिए से यह फैसला एक अच्छा फैसला हो सकता है लेकिन आस्था और लोगों की धार्मिक भावनाओं के हिसाब से इसे देखा जाए तो यह फैसला लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। क्योंकि किसी भी तीर्थ स्थल को एक पर्यटन स्थल में परिवर्तित किया जाता है तो उसका महत्व कम हो जाता है और सम्मेद शिखरजी तो एक ऐसी जगह पर स्थित है जो ईको-सेंसिटिव क्षेत्र है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार को इस फैसले पर पुनः एक बार विचार करना चाहिए और लोगों की आस्था को ध्यान रखते हुए कोई फैसला लेना चाहिए।
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