विद्या बालन का फिल्मी करियर खत्म हो गया। हो सकता है उन्हें एक-दो फिल्म में कोई छोटी-मोटी भूमिका और भी मिल जाए लेकिन अब वो कोई और ‘कहानी’ बना सकती हैं- यह असंभव है। अब वो कोई दूसरी ‘डर्टी पिक्चर’ बना सकती हैं, यह नामुमकिन है। विद्या बालन अब जो भी कर सकती हैं, वो वही कर रही हैं यानी इंस्टा पर रील्स बनाने का काम। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे विद्या बालन ‘रियल स्टार’ से ‘रील स्टार’ बनकर रह गई हैं।
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‘परिणीता’ ने स्टार बना दिया
अगर आप इंडिपॉप के प्रशंसक हैं तो आपने कभी न कभी यूफोरिया (Euphoria) नामक बैंड के गीत तो अवश्य सुने होंगे। इसी का एक गीत, ‘कभी आना तू मेरी गली’ अति लोकप्रिय और ब्लॉकबस्टर हुआ था परंतु यह केवल Euphoria के दमदार संगीत और पलाश सेन के सुरमई स्वर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं हुआ था। इसमें आकर्षण का केंद्र इसमें अभिनय करने वाली एक कलाकार भी थीं, जिन्होंने अपनी अदाकारी से सबको आकृष्ट किया था। वो कोई और नहीं बल्कि विद्या बालन थीं, जिन्होंने एक समय प्रयोग को अपनी सफलता की सीढ़ी बना लिया था।
जिस उद्योग में महिला अभिनेताओं के लिए अवसर या तो होते ही नहीं थे या फिर नगण्य रहते थे, उसी हिन्दी फिल्म उद्योग में विद्या बालन ने अपने लिए अलग स्थान बनाया। प्रारंभ की कुछ असफलताओं को ठेंगा दिखाकर Euphoria के उस चर्चित वीडियो के अलावा विद्या बालन को बांग्ला फिल्म ‘भालो ठेको’ में काम मिला, जिसमें उनका अभिनय देखकर फिल्मकार प्रदीप सरकार ने उन्हें तुरंत अपनी फिल्म के लिए चयनित कर लिया। 6 महीने के अथक परिश्रम के बाद विद्या शूटिंग के लिए तैयार हुई और अंतत: वर्ष 2005 में सामने आई फिल्म ‘परिणीता’।
यूं तो यह फिल्म शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी पर इसे आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ढालते हुए प्रदीप सरकार ने इसे काफी लोकप्रिय बना दिया और इस फिल्म में विद्या बालन के अभिनय के सभी दीवाने हो गए। इस फिल्म के लिए विद्या बालन को सर्वश्रेष्ठ डेब्यू का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था।
‘भूल भुलैया’ से मिली पहचान
यहां से फिर विद्या ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अगले ही वर्ष उन्हें फिल्म ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ में भी अपना अभिनय दिखाने का अवसर मिला। परंतु बहुत कम लोग विद्या बालन के प्रयोग करने की क्षमता पर ध्यान दे रहे थे। इसका संकेत तभी दिख जाना चाहिए था, जब उन्होंने अपेक्षाओं के विपरीत जाकर फिल्म ‘गुरु’ में मीनू दासगुप्ता का छोटा पर महत्वपूर्ण रोल स्वीकार किया, जो एक टर्मिनल बीमारी ‘Multiple Sclerosis’ से जूझ रही थी। यह फिल्म अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय पर केंद्रित थी परंतु इसमें आर माधवन और विद्या ने भी अपने अभिनय से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया, जो बहुत ही कम लोगों में अपने करियर के प्रारंभ में देखने को मिलता है।
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परंतु विद्या बालन ने अपनी पहचान स्थापित की प्रियदर्शन की बहुचर्चित फिल्म ‘भूल भुलैया’ से। यह फिल्म मलयाली क्लासिक फिल्म ‘मनिचित्रथाज़ु’ पर आधारित थी, जिसके पूर्व में भी कई चर्चित संस्करण बन चुके थे। ऐसे में चंद्रमुखी का रोल तो कई लोगों ने निभाया था परंतु जो सबसे अधिक चर्चित और प्रसिद्ध रहा, वह केवल विद्या बालन का रहा, जिन्होंने मंजुलिका को पूर्णत्या आत्मसात कर लिया था। फिल्म मे वह अक्षय कुमार पर भी भारी पड़ने लगी थीं।
यहीं से विद्या बालन के जोखिम लेने की क्षमता का उद्भव हुआ, जिसे उन्होंने फिल्म पा, इश्किया और यहाँ तक कि ‘द डर्टी पिक्चर’ में भुनाया, जिसके लिए उन्हें वर्ष 2012 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। परंतु विद्या बालन ने अपनी उत्कृष्टता का परिचय दिया सुजॉय घोष की फिल्म ‘कहानी’ से। केवल 8 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म में विद्या बालन के अतिरिक्त कोई बड़ा स्टार नहीं था और इसे कोलकाता में ‘Guerilla Filmmaking’ की शैली में शूट किया गया। परंतु विद्या बालन ने इस फिल्म में ऐसा अभिनय किया कि यह फिल्म उस वर्ष की सबसे बड़ी स्लीपर हिट सिद्ध हुई और लगभग 104 करोड़ का वर्ल्डवाइड कलेक्शन भी किया। ऐसा लगने लगा था कि बॉलीवुड में एक ‘फ़ीमेल सुपरस्टार’ उभर रही है।
प्रयोग और जोखिम को ‘गुडबॉय’ कर दिया
परंतु फिर ऐसा क्या हुआ कि विद्या बालन के इस विजयरथ पर रोक लग गई? वो कहते हैं न कि कुछ भी कीजिए परंतु इस भ्रम में न रहिए कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और विद्या बालन ने भी यही भूल कर दी, जिस पर वोकिज्म का तड़का लगा सो अलग और कभी जनता की प्रिय रही विद्या बालन धीरे-धीरे लोगों के आंखों में खटकने लगीं। वर्ष 2016-17 तक तो उन्होंने फिर भी अपना प्रयोग जारी रखा, जो फिल्म ‘कहानी 2’ और ‘तुम्हारी सुलु’ से सिद्ध भी होता है परंतु 2018 के पश्चात उनकी एक भी फिल्म ऐसी नहीं आई, जो उन्होंने अपने दम पर सफल कराई हो। फिल्म ‘मिशन मंगल’ ने इसीलिए थोड़े पैसे अधिक कमाए क्योंकि वह एक तो मंगलयान मिशन पर आधारित थी और दूसरा, तब अक्षय कुमार व्यवसायीकरण के मद में उतने चूर नहीं हुए थे, जितने अब हैं।
तत्पश्चात विद्या बालन की जितनी भी फिल्में आईं, उनमें से किसी में भी वह पहले जैसी दमदार अभिनय को पुनः प्रदर्शित करने में असफल रहीं और उनकी फिल्म ‘शकुंतला देवी’ एवं ‘शेरनी’ में तो जमकर एजेंडा परोसा गया। परंतु जिस प्रकार से विद्या बालन अपनी आलोचना को इग्नोर कर इंस्टाग्राम पर रील्स बनाने में व्यस्त हैं और अपनी असफलता के लिए पुरुषवाद को ही दोषी ठहराती है, उसे देख कर यह तो स्पष्ट हो गया है कि अब ‘रिस्क’ और विद्या बालन में छत्तीस का आंकड़ा हो गया है और शायद ही वो हमें कभी भी जोखिम लेते दिखें।
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