किसी भी नेता के लिए लंबे समय तक राजनीति में बने रहने के लिए सबसे आवश्यक क्या होता है? लंबे-लंबे भाषण देना? विवादों में बने रहना? अगर आप ऐसा सोचते हैं, तो आप बिलकुल गलत हैं। आप विवादों से दूर रहकर भी एक अच्छे राजनेता बन सकते हैं और लंबी सियासी पारी खेल सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के तौर पर देखने को मिलता है। नवीन पटनायक ओडिशा के एक बड़े नेता है। इसी साल मार्च में उनको ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में 22 वर्ष पूरे हो जाएंगे। किसी भी नेता के लिए राजनीति में इतने लंबे समय तक बने रहना आसान बात तो कतई नहीं है और वो भी जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को बनाए रखते हुए। तो आइये जानते हैं कि आखिर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक लंबे समय से क्षेत्रीय राजनीति में निर्विवाद नेता क्यों है?
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बीजू जनता दल का गठन
बीते कई सालों से नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी (बीजू जनता दल) लगातार सत्ता में बना हुआ है। जब भी कोई नेता एक ही पद पर लंबे समय तक रहता है तो उसमें घमंड और अहंकार भर जाता है लेकिन पटनायक शुरू से ही बड़े मृदुभाषी रहे हैं। उन्होंने हमेशा ही अपने राज्य के मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया है। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने सत्ता में कदम रखा था। उनके पिता बीजू पटनायक भी ओडिशा के एक जाने माने नेता थे।
जनता दल से अलग होने के बाद नवीन पटनायक ने वर्ष 1997 में अपने पिता और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल (बीजेडी) का गठन किया था। इसके बाद वो लंबे समय से राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जनता की भलाई के लिए कार्य कर रहे हैं। इसी कारण ओडिशा की जनता के बीच उनकी लोकप्रियता लगातार बनी हुई है। उनके नेतृत्व में वर्ष 2000, 2004, 2009, 2014 और 2019 में लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करके बीजू जनता दल ने ओडिशा में सरकार बनाई। पटनायक अपने राज्य की राजनीति और विकास हेतु हर संभव प्रयास में जुटे रहते हैं।
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की लोकप्रियता
वर्ष 2010 में इंडिया टुडे-ओआरजी-मर्ग मूड ऑफ दी नेशन पोल के द्वारा इन्हें भारत के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री की सूची में शामिल किया गया था। इसके साथ ही उनको वर्ष 2013 में आये उष्णकटिबंधीय चक्रवात तूफान फीलिन से लगभग 1 लाख लोगों की जान बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा सम्मानित किया गया था। नवीन पटनायक ने कोरोना काल में अपने राज्य में तो काम किया ही था, इसके साथ ही उन्होंने दूसरे राज्यों की काफी सहायता की थी। वह एक सकारात्मक पहल के चलते ओडिशा से ऑक्सीजन की निर्बाध सप्लाई के लिए आगे आए थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को स्वयं फोन करके हर संभव सहायता का विश्वास दिलाया था। जिसके बाद दिल्ली और महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना आदि कई राज्यों को भी ओडिशा से ऑक्सीजन की सप्लाई की थी।
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राष्ट्रीय हित को देते हैं प्राथमिकता
इतना ही नहीं जब बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद विपक्षी दलों के द्वारा वायुसेना के पराक्रम पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये जा रहे थे और उनसे एयर स्ट्राइक के सबूत तक मांगे जा रहे थे। उस समय वह नवीन पटनायक ही थे, जिन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर वायुसेना की वीरता को नमन किया था और यही तो एक अच्छे राजनेता की पहचान भी होती है। नवीन पटनायक के द्वारा किये गए कार्य केवल सांकेतिक नहीं होते बल्कि वह अपनी नीतिगत बातों से भी राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हैं। वैसे तो भाजपा और बीजेडी ओडिशा में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन जब राष्ट्रीय हित की बात आती है तो दोनों दल एकमंच पर ही आ जाते हैं। फिर चाहे वो विमुद्रीकरण का मुद्दा हो, उत्पाद एवं सेवा कर (GST) का, अनुच्छेद 370 अथवा CAA, बीजेडी के सांसदों ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही केंद्र का काफी समर्थन किया है।
देखा जाये तो नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओडिशा खेलों में एक बड़े रोल मॉडल के रूप में उभरा है। पटनायक को हॉकी खेल के लिए काफी लगाव है। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम को बढ़ावा देने के लिए जो बड़े कदम उठाए हैं, उसके बारे में हर कोई जानता है। कुछ समय पूर्व ही ओडिशा के राउरकेला में विश्व का सबसे विशाल हॉकी स्टेडियम का उद्घाटन किया गया है। इतना ही नहीं पटनायक ने बीते दिनों ही एफआईएच पुरुष हॉकी विश्व कप जीत जाने पर भारतीय टीम के प्रत्येक खिलाड़ी एक करोड़ रुपये का पुरस्कार देने का ऐलान किया है। खेल मॉडल का बेहतरीन उदाहरण बनने की दिशा में ओडिशा के प्रयास काफी ज्यादा सराहनीय रहे है।
जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में बने रहने के सबसे बड़े कारण है। उनके विवादों और चर्चों से स्वयं को दूर रखना, बिना केंद्र की राजनीति में अपनी दखल दिए केंद्र सरकार से अच्छे संबंध बनाए रखना। जहां दूसरे कई राजनेता मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते लगते हैं, वहीं नवीन पटनायक ने इससे इतर हमेशा जनता के लिए कार्य करने और राज्य के विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। आपको लग रहा होगा कि कोई भी राजनेता इतना ज्यादा महान कैसे हो सकता है? क्या उनमें कोई भी कमी नहीं है? बिलकुल है। कमियां तो हर किसी में होती है, लेकिन अपनी कमियों से ऊपर उठकर भी जो आगे आता है वहीं एक बड़ा नेता कहलाता हैं।
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टूटी-फूटी उड़िया ही बोले पाते हैं पटनायक
नवीन पटनायक भारत के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने राज्य की भाषा ही ठीक तरह से नहीं बोल पाते। देहरादून और दिल्ली में पढ़ाई करने और 2000 में मुख्यमंत्री बनने तक उनका अधिकतर जीवन दिल्ली में व्यतीत हुआ है। हां, वैसे उनको अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और फ्रेंच भाषा काफी अच्छे से आती है लेकिन 22 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने के बाद वह टूटी-फूटी उड़िया भाषा ही बोल पाते हैं। विचार कीजिये उनके स्थान पर अगर कोई और मुख्यमंत्री होता और वो राज्य की भाषा नहीं बोल पाता तो क्या लोग उसे स्वीकार करते? शायद नहीं। लेकिन नवीन पटनायक अन्य मुख्यमंत्रियों से काफी भिन्न हैं।
हालांकि अगर देखा जाए तो नवीन पटनायक की बढ़ती उम्र के चलते अब उनका राजनीतिक करियर ढलान की ओर अग्रसर नजर आता है। जिसके पश्चात प्रश्न यही उठते हैं कि नवीन पटनायक के बाद अब कौन बीजू जनता दल (BJD) को कौन संभालेगा? वैसे तो बीजेडी में कई लोग मौजूद है जो पार्टी को संभालने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन अगर पार्टी के लोगों के बीच आपसी मतभेद हुआ तो ये बीजेपी के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है। नवीन पटनायक के बाद बीजेपी वहां सरकार बनाने के सपने को पूरा कर सकती है, जिसके वो निरंतर प्रयास में जुटी है।
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