कार्बन कर का भारत विरोध करता है, विकसित देशों की ‘वसूली’ बर्दाश्त नहीं की जाएगी

स्वयं से कुछ होता नहीं विकासशील देशों पर आदेश चलाने आए हैं!

Carbon tax

Source: TFI MEDIA

Carbon tax: कार्बन टैक्स प्रदूषण पर लगाए जाने वाला एक तरह का कर होता है। इस टैक्स को कार्बन-आधारित ईंधन जैसे कोयला, तेल, गैस के जलने से होने वाले प्रदूषण पर लगाया जाता है। कार्बन कर, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने या पूरी तरह से बंद करने के लिए एक मुख्य नीति है, कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हमारी जलवायु को अस्थिर और तबाह कर रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वसूली!

कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) का एक स्वरूप है, इसकी जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका होती है। Carbon tax को लगाए जाने से देश के आयात शुल्क में इजाफा और मुनाफे में कमी आती है।

ऐसे में इस टैक्स (Carbon tax) का उनकी अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा। यूरोपियन ने इस टैक्स को लागू करने की योजना बनाई है। लेकिन इस नीति पर भेदभाव व्यावहार करने के आरोप लगते रहे हैँ।

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इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार, भारत ने हाल ही में विश्व व्यापार संगठन को एक प्रस्तुतिकरण में कुछ देशों द्वारा लगाए जा रहे कार्बन सीमा उपायों को भेदभावपूर्ण और संरक्षणवादी बताते हुए उनकी आलोचना की है।

भारत ने कहा है कि इस तरह के सीमा उपायों से “सीमा के पीछे” संरक्षणवादी प्रथाएं हो सकती हैं। भारत ने ये भी कहा है कि निर्यात करने वाले देशों की तुलना में केवल आयातक देश के लिए नीति और जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीके के बारे में एकतरफा दृष्टिकोण होगा।

भारत को Carbon tax से नुकसान ये है कि यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाली वस्तुओं पर ये सीमा कर भारतीय निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करेंगे और उन्हें खरीदारों के लिए कम आकर्षक बना देंगे और मांग को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

दबाव नहीं बना सकते

Carbon tax को लेकर भारत ये साफ कर चुका है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देश किसी पर जबरन दबाव नहीं बना सकते।

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जलवायु परिवर्तन के शिखर सम्मेलन COP27 में भारत ने कहा है कि सिर्फ कोयला ही नहीं, दूसरे जीवाश्म ईधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे घटाने की जरूरत है। बता दें कि पश्चिम के देश जलवायु परिवर्तन के लिए विकासशील देशों को दोषी ठहराते हैं।

पर्यावरण के मुद्दे पर दुनिया के विकसित देश आए दिन ज्ञान देते रहते हैं। भारत ये पक्ष रख चुका है कि विकसित देशों द्वारा होने वाला कार्बन उत्सर्जन भारत और अन्य विकासशील देशों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है।

ऐसे में भारत का यह आक्रमक रुख अमेरिका और चीन समेत सभी विकसित देशों के मुंह पर तमाचे के समान है।

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