“अमरेन्द्र बाहुबली यानी मैं….” जब बाहुबली के द्वितीय संस्करण में हिन्दी में यह संवाद गूंजा था तो थियेटर छोड़िए, यूट्यूब पर बवाल मच गया था। इस स्वर में इतना प्रभाव था कि ऐसा लगा कि बस कुछ ही देर में पूरा माहिष्मती “अमरेन्द्र बाहुबली” के आह्वान पर धर्मयुद्ध के लिए तैयार हो जाएगा। परंतु यह स्वर मुख्य अभिनेता प्रभास के नहीं थे, यह शब्द उस अभिनेता के थे जो पहले ही टीवी जगत में अपना नाम बना चुके थे परंतु जिनके अभिनय कला को उचित सम्मान नहीं मिला था। यहीं से प्रारंभ हुई थी अभिनेता शरद केलकर (Sharad Kelkar movies) की वो यात्रा, जिसके पश्चात उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस लेख में हम आपको परिचित कराएंगे शरद केलकर की उस दुनिया से, जहां उन्हें अपनी प्रतिभा सिद्ध करने के कम अवसर मिले परंतु जितने भी मिले, लगभग सब में उन्होंने अपनी छाप छोड़ दी।
शरद केलकर का फिल्मी जीवन
आज जब भी छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे सटीक चित्रण की बात होती है तो शरद केलकर का नाम शीर्ष पर रहता है, परंतु इस स्तर पर पहुंचने के लिए उन्हें दिन रात एक करने पड़े थे। वर्ष 1976 में ग्वालियर में जन्मे शरद को अभिनय में रुचि थी और वो इसके लिए अपनी तैयारियों में जुट गए। उन्होंने मॉडलिंग के मंच को अपने करियर की सीढ़ी बनाने का प्रयास किया और ग्रासिम मिस्टर इंडिया कॉन्टेस्ट के फाइनलिस्ट भी रहे।
इसी बीच शरद केलकर का एक्टिंग करियर भी प्रारंभ हुआ और उन्हें टीवी एवं फिल्म दोनों में ही अवसर मिले। वर्ष 2004 में जहां दूरदर्शन चैनल पर “आक्रोश” नामक सीरियल में उन्होंने एक पुलिस इंस्पेक्टर के रोल से डेब्यू किया तो वही “हलचल” फिल्म में सत्तू मिश्रा के रोल में उन्होंने अपना फिल्मी डेब्यू किया, परंतु लगभग एक दशक तक उन्हें अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। टीवी पर उन्होंने सफलता तो अवश्य पाई परंतु वो अपने करियर से पूर्णतया संतुष्ट नहीं थे।
वर्ष 2012 में शरद केलकर (Sharad Kelkar movies) को फिल्म “1920” फ्रैंचाइज़ी के दूसरे संस्करण में अमर नामक नकारात्मक किरदार को निभाने का अवसर मिला और उसे उन्होंने बखूबी निभाया भी परंतु उनका स्ट्रगल जारी था। उसके बाद भी उन्हें बहुत अधिक मौके नहीं मिले। वो टीवी तक सीमित नहीं रहना चाहते थे परंतु फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड में उनके लिए मानो कोई स्थान नहीं था। इसी बीच शरद केलकर को डबिंग में रुचि हुई और उन्होंने डबिंग आर्टिस्ट का काम भी शुरू कर दिया। वर्ष 2014 में फिल्म “Dawn of the Planet of the Apes” में मैल्कम नामक किरदार की उन्होंने डबिंग की, जिसे मूल फिल्म में हॉलीवुड अभिनेता जेसन क्लार्क ने निभाया था। शरद का दांव सफल रहा और उन्हें कई प्रोजेक्ट मिलने लगे।
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Sharad Kelkar movies
परंतु शरद केलकर के करियर का टर्निंग पॉइंट बना वर्ष 2015, जब उन्हें दो महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट मिले। फिल्म “फास्ट एंड द फ्यूरियस” में उन्हें बहुचर्चित अभिनेता जेसन स्टैथम द्वारा निभाए गए रोल डेकर्ड शॉ की डबिंग करने का अवसर मिला तो दूसरी ओर एसएस राजामौली की बहुचर्चित फिल्म “बाहुबली” में प्रभास द्वारा निभाए गए अमरेन्द्र बाहुबली एवं महेंद्र बाहुबली के रोल की हिन्दी में डबिंग करने भी उन्होंने ही किया।
फिर क्या था, फिल्म “बाहुबली” ब्लॉकबस्टर निकली और देश के कोने कोने में प्रभास का नाम ज़ोरों शोरों से लिया जाने लगा। परंतु जब सोशल मीडिया के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि शरद केलकर ने प्रभास के रोल की हिन्दी में डबिंग की तो लोग उनकी आवाज़ के फैन हो गए और शरद केलकर की ख्याति चहुंओर फैल गई। उसके बाद उन्हें ताबड़तोड़ प्रोजेक्ट मिलने लगे और जल्द ही उन्होंने तेलुगु फिल्म उद्योग की ओर अपने कदम भी बढ़ाए, जहां उन्होंने पवन कल्याण के “गब्बर सिंह” फ्रैन्चाइज़ी के सीक्वल “सरदार गब्बर सिंह” में मुख्य विलेन का रोल निभाया।
शिवाजी के शौर्य को किया आत्मसात
जैसा पहले कई लेखों में हमने साझा किया था कि एक होते हैं विशुद्ध अभिनेता, दूसरे होते हैं परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढालने वाले अभिनेता और फिर होते हैं केवल निर्देशक के कारण चमकने वाले अभिनेता। परंतु शरद केलकर ठहरे विशुद्ध अभिनेता, जो कई अवसरों पर मुख्य अभिनेताओं को भी लगभग निगल चुके हैं। उनका अभिनय ऐसा होता है कि जो फिल्में किसी न किसी कारण से बॉक्स ऑफिस पर पिट जाती हैं, लेकिन अगर उसमें शरद केलकर होते हैं तो उनका अभिनय ही उस फिल्म का मान सम्मान बचा पाता है।
यदि शरद केलकर (Sharad Kelkar movies) न होते तो “लक्ष्मी” जैसी फिल्म को कोई OTT पर भी नहीं पूछता। पूरी फिल्म एवं अक्षय कुमार को दर्शकों एवं क्रिटिक्स से समान रूप में आलोचना मिली परंतु शरद केलकर के परफ़ॉर्मेंस के लिए किसी के मन में तनिक भी रोष या कुंठा नहीं थी और अभी तो हमने द फैमिली मन और स्पेशल ऑप्स में उनकी सीमित पर महत्वपूर्ण भूमिकाओं पर प्रकाश भी नहीं डाला है।
परंतु फिर आई वर्ष 2020 के प्रारंभ में मराठी निर्देशक ओम राऊत की डेब्यू हिन्दी फिल्म “तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर”। यह फिल्म आधारित थी कोंढाणा दुर्ग को जीतने में अपने प्राण अर्पण करने वाले वीर सूबेदार तान्हाजी मालुसरे के जीवन पर। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण था फिल्म के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका के लिए एक ऐसा अभिनेता चुनना, जो उनके शौर्य को आत्मसात कर सके। ऐसे में शरद केलकर सामने आए और चाहे उनका लुक हो या फिर उनके संवाद, समूचा भारत उनके प्रतिभा के समक्ष नतमस्तक हो गया, मानो साक्षात शिवाजी राजे ने सिल्वर स्क्रीन पर दर्शन दिए हो। शरद केलकर की प्रतिभा मानो जल के समान है, जिस भी सांचे में डालो, उसी को आत्मसात कर लेती है।
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