Border Gavaskar Trophy: क्रिकेट की बात आती है तो दो टीमों के बीच मैच की सबसे अधिक चर्चा होती है और वो हैं भारत और पाकिस्तान। जब भी इन दोनों टीमों का मैच होता है तो पूरी दुनिया एक टक लगाकर उसे देखती है। अहम बात यह है कि जिस तरह से भारत जब पाकिस्तान के साथ खेलता है तो क्रिकेट का रोमांच चरम पर पहुंच जाता है, ठीक उसी तरह जब ऑस्ट्रेलिया के साथ मैच होता तब भी लोगों का उत्साह सातवें आसमान पर होता है। ऑस्ट्रेलिया चाहे तो ठीक पाकिस्तान की तरह ही भारत से होने वाले मुकाबलों को हाईवोल्टेज बना सकता है, लेकिन उसे अपनी गलतियां सुधारनी होगी।
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बॉल टेंपरिंग के लगाए आरोप
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम लंबे वक्त बाद भारत में खेलने आई है। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (Border Gavaskar Trophy) के तहत नागपुर के पहले टेस्ट मैच में भारतीय गेंदबाजों की बदौलत भारत ने ऑस्ट्रेलिया को करारी शिकस्त दे दी है। परंतु यह हार ऑस्ट्रेलिया को पची नहीं और टीम के दिग्गज खिलाड़ियों से लेकर ऑस्ट्रेलियाई मीडिया तक यह आरोप लगाने लगा है कि भारतीय गेंदबाजों ने चीटिंग की है और रवींद्र जडेजा ने बॉल टेंपरिंग तक की है। ऑस्ट्रेलिया जिन कामों के लिए हमेशा ही सुर्खियों में रहा है शायद वो कुछ वैसे ही आरोप भारत पर भी लगाने की कोशिश कर रहा है। मैच के दौरान उस वीडियो में भी देखा गया है कि रवींद्र जडेजा के हाथों के पीछे बॉल छिपी हुई थी और वे अपने हाथों में दवा लगा रहे थे क्योंकि उनके हाथ में चोट लगी थी और इसी चोट के चक्कर में लंबे समय से वे बाहर थे।
Border Gavaskar Trophy: पिच पर भी उठाए सवाल
इसके अलावा जब ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज भारतीय पिचों पर टिककर नहीं खेल पाए तो इसका आरोप भी भारत की पिचों पर मढ़ दिया गया। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया यह तक कहने लगा है कि भारत ने अपने हिसाब से पिच में भी टेंपरिंग की है। हालांकि इसके कोई सबूत सामने नहीं आए हैं।जिस पिच पर ऑस्ट्रेलिया बल्लेबाज टिक नहीं पा रहे थे उसी पर भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने शतकीय पारी खेली। ऐसे में पिच पर प्रश्न उठाना ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर्स को शोभा नहीं देता है। अहम बात यह है कि भारतीय पिचों पर अच्छा खासा स्पिन मिलता है और ऑस्ट्रेलिया क्रिकेटर्स को स्पिन खेलने में दिक्कत होती है तो यह भारतीय पिचों की नहीं उनकी समस्या है। वहीं यह भारतीय गेंदबाजों का कौशल है कि वे आस्ट्रेलिया को घुटनों पर ला रहे हैं।
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देखा जाये तो 90 के दशक में भारत का क्रिकेट इतना अच्छा नहीं था। इसके बावजूद अनिल कुंबले और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ियों की बदौलत भारत, ऑस्ट्रेलिया में ही मैच जीत लेता था। वहां कि पिचों पर भारतीय बल्लेबाजों का टिकना कठिन माना जाता था। इसके बावजूद भारतीय खिलाड़ी अच्छा खेलकर आते थे। बाद में सौरव गांगुली से लेकर राहुल द्रविड़ और एमएस धोनी के नेतृत्व में टीम ने कई बार ऑस्ट्रेलिया में जाकर बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी (Border Gavaskar Trophy) जीत चुकी है। इसके अलावा भारत में भी कुछ ऐसा ही जीत का सिलसिला रहा। ऐसे में भारत जब अच्छा नहीं खेल पाता था तो 90 के दशक में हार जाता था। लेकिन जब गेम सुधरा तो ऑस्ट्रेलियाई पिच हों या भारतीय, भारत ने अनेक बार सीरीज अपने नाम की है।
जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समस्या पिच में नहीं बल्कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन में होती है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया को अपने गेम को सुधारना चाहिए और छोटे बच्चों की तरह चीटिंग का बेबुनियाद आरोप लगाना आलोचनात्मक है, जोकि यह एक मजबूत टीम को कमजोर दिखाता है।
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