“लालच शौक को जरूरत में बदल देता है”
Farzi Web Series Review: यह संवाद न केवल हमारी जीवनशैली को बिना लाग-लपेट के चित्रित करता है, अपितु यही वेब सीरीज़ “फ़र्ज़ी” का सार है। काले धन एवं नकली नोटों पर चर्चा से लेकर पुस्तकें छप जाती हैं, परंतु इसकी रूपरेखा क्या है? इसका नेटवर्क कितना विशाल है? इस पर कम ही लोग चर्चा करते हैं, लेकिन वेबसीरीज़ फ़र्जी में इसे बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया है।
Farzi Web Series Review: राज एंड डीके का बढ़िया काम
तो कथा का आरंभ होता है सनी से, जो एक कलाकार है और पेंटिंग की फर्स्ट कॉपी बड़ी कुशलता से बनाता है। उसके नाना की एक पत्रिका है, वो पत्रिका एवं प्रिंटिंग प्रेस बंद होने के मुहाने पर है और वह इसे स्वीकार नहीं कर पाता। इसके अतिरिक्त सनी अपनी घिसी पिटी जीवनशैली से तंग आ चुका है और वह किसी भी स्थिति में इससे बाहर निकलना चाहता है और इसके लिए वह जो मार्ग अपनाता है, उससे क्या क्या बदलाव उसके जीवन में आता है, “फ़र्जी” (Farzi Web Series Review) इसी के बारे में है।
बचपन में हम सब ने सुना था, “लालच बुरी बला है”, परंतु यह होता कैसे है, “फर्जी” ने बिना लाग लपेट दिखाया है। राज एंड डीके की जोड़ी को आप सम्मान की दृष्टि से देखें या घृणा की वो आपका विकल्प है, परंतु उनकी कला ऐसी है कि आप उसे नकार नहीं सकते।
एक उत्कृष्ट कलाकार अथवा रचनाकार वही है जो अपने विचार किसी पर थोपता नहीं और न ही वो जनता को अपने एजेंडे से पकाता है, और “फर्जी” ने इन दोनों बिंदुओं पर काफी ध्यान दिया है।
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ये कथा कालेधन, विशेषकर नकली नोटों के निर्माण एवं उससे जुड़े सभी प्रकार के कनेक्शन के बारे में है, चाहे वह सामाजिक हो या फिर राजनीतिक। नकली नोट कैसे बनता है, कैसे वह मूल नोट एवं उसके निर्माताओं को भी भ्रमित कर सकता है, कैसे वह सुरक्षा एजेंसियों की दृष्टि से कभी-कभी बच जाता है, इस पर फ़िल्मकारों ने जबरदस्त ध्यान दिया है। इसके अतिरिक्त इस नेटवर्क को दुरुस्त रखने हेतु लोग कैसे काम करते हैं, और वे किस हद तक जाने को तैयार है, “फर्जी” इसे भी बिना किसी लाग लपेट के कवर करता है।
Farzi Web Series Review – संवाद लेखन अव्वल है
निस्संदेह इस वेब सीरीज़ में कुछ और एंगल भी है, जैसे सुरक्षा एजेंसियों और राजनीतिज्ञों के बीच का रिश्ता, अपराधियों की मानसिकता, राजनीति और क्षेत्रवाद इत्यादि। परंतु वामपंथियों की भांति यहाँ कुछ भी जबरदस्ती नहीं ठूँसा गया है, या जिसे देखकर दर्शक अपना माथा पीट ले।
“फर्जी” की सबसे खास बात ये है कि वह किसी को नहीं छोड़ता, लेफ्ट राइट या सेंटर। ये संवाद इस सीरीज़ के लेखन का दृष्टिकोण भी परिलक्षित करता है, “कभी कभी सवाल परफेक्शन का नहीं होता, परसेप्शन का होता है”।
अब आते हैं इस सीरीज़ के लेखन पर। जिसने भी इस सीरीज़ के संवाद लिखे हैं, उसे पुरस्कृत अवश्य करना चाहिए। संवाद लेखन भी एक ऐसी कला है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण ये नहीं कि उसपे लोग सीटियाँ बजाए अपितु ये महत्वपूर्ण है कि ये संवाद आपके जीवन से कितना रिलेटेबल है। मिडिल क्लास और उनके ऋणों की समस्या पर भी इस सीरीज़ ने उतना ही कटाक्ष किया है, जितना जल्दी अमीर बनने की लालसा पर।
“फर्जी” में और कुछ अच्छा हो या न हो, परंतु सबसे उत्कृष्ट बात तो यह है कि यहाँ पर अपने आप को सही सिद्ध करने के लिए किसी को भी फर्जी में विलेन नहीं बनाया गया, जिसके लिए “लीला”, “सेक्रेड गेम्स”, “तांडव” जैसे सीरीज़ काफी बदनाम रहे हैं, और कुछ हद तक “द फैमिली मैन” का प्रथम संस्करण भी। परंतु इस बारे में फिर कभी।
बेहतरीन अभिनय
अब बात करें अभिनय की, तो इस सीरीज़ में लगभग सभी ने बेहतरीन परफ़ॉर्मेंस दी है। शाहिद कपूर के अभिनय को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये कभी बेकार अभिनेता थे ही नहीं, बस एक उचित अवसर की तलाश में रहते थे।
सनी के रोल में उन्होंने जान फूंकी है। उन्होंने ऐसा कार्य किया है, जिसमें आपको इनकी उत्सुकता, जल्दी अमीर होने की अधीरता एवं अपने लक्ष्य के लिए किसी भी हद तक जाने की लालसा, सब दिखाई देगी।
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इन्हे एक विशुद्ध एन्टी हीरो के रूप में पेश किया गया है, जो यदि अन्याय का पर्याय नहीं तो कम से कम कुटिल तो है, और सबसे बढ़िया बात, अन्य एन्टी हीरो की भांति आप इनके लिए फर्जी की सहानुभूति नहीं प्रकट कर पाएंगे, क्योंकि इनके कर्मों को देखकर आपको भी लगेगा – इसका परिणाम खराब होगा।
शाहिद कपूर के अतिरिक्त केके मेनन हमेशा की भांति उत्कृष्ट रहे हैं। कालेधन के एक नेटवर्क सरगना मंसूर बिलाल के रूप में वे अपने फोकस और अपने लक्ष्य के प्रति अपनी एकाग्रता को बिना किसी लाग लपेट के रेखांकित करते हैं।
बैंक ऑफिसर से इंटेलिजेंस अफसर बनी राशि खन्ना भी आपको अपने प्रयास के साथ न्याय करती दिखेंगी। परंतु इस सीरीज़ के एक्स फैक्टर एक नहीं दो है – मिनिस्टर पवन गहलोत के रूप में जाकिर हुसैन और एसटीएफ अफसर माइकल वेदनयगम के रूप में अपने बहुचर्चित कलाकार विजय सेतुपति, जिनका हिन्दी उद्योग में ये प्रथम प्रयास है।
माइकल और मंत्री गहलोत के बीच की वार्तालाप आपको हँसाएगी भी, और ये भी बताएगी कि जीवन में सब कुछ ब्लैक एण्ड व्हाइट नहीं होता। हाँ, वेब सीरीज़ प्रेमियों के लिए एक विशेष सूचना – इस सीरीज़ से एक अलग “स्पाई यूनिवर्स” की रचना संभव है, जो रोचक भी है और “YRF स्पाई यूनिवर्स” के ठीक विपरीत रचनात्मक और तार्किक भी।
इस वेब सीरीज़ में कुछ चीजें आपको अटपटी लग सकती हैं, जैसे माइकल और सनी के निजी जीवन पर फोकस, या फिर इस सीरीज़ के एपिसोड की समयसीमा। परंतु अगर आपके लिए एक अच्छी और अनोखी कथा अधिक महत्वपूर्ण है, तो “फ़र्ज़ी” आपको निराश नहीं करेगी। ये परफेक्ट नहीं है, परंतु बेकार तो बिल्कुल नहीं है। अधिक जानकारी के लिए वेब सीरीज़ देखें, Farzi Web Series Review में स्पॉईलर्स उपलब्ध नहीं!
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