UNSC Row: भारत के पीछे आने या ‘बर्बाद होने’ के बीच चीन क्या चुनेगा ?

चीन के लिए भारत के साथ प्रतिस्पर्धा या सहयोग में से किसी एक को चुनने का समय आ गया है।

UNSC and India, Time for China to choose between Competition and Cooperation with India

Source- TFI

UNSC and India – कहते हैं कि आपका सबसे अच्छा साथी एक पड़ोसी होता है जो किसी समस्या में आपकी सबसे पहले सहायता करता है, लेकिन जब बात कूटनीति की आती है तो भारत के सबसे बड़े दुश्मन उसके पड़ोसी यानी चीन और पाकिस्तान जैसे देश ही साबित होते हैं। वैश्विक स्तर पर जब भी भारत को समर्थन की आवश्यकता पड़ती है तो भारत का विरोध करने में चीन सबसे आगे रहता है। पाकिस्तान के आतंकियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाना हो या फिर कोई अन्य मुद्दा ही क्यों न हो… चीन का रूख हमेशा ही भारत विरोधी रहता है। हालांकि अब चीन का समय पूरा हो रहा है क्योंकि उसके पास जो UNSC में जिन एक्सट्रा पावर के दम पर वो उछलता है उसको अब नियंत्रण करने की तैयारी शुरू हो गई है। इस खेल की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष साबा कोरोसी के भारत दौरे के साथ हुई है।

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“नाकाम रहा वैश्विक निकाय”

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें अध्यक्ष साबा कोरोसी भारत दौरे (UNSC and India) पर आए। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को उनसे मुलाकात भी की। दोनों नेताओं ने जल संसाधनों के संरक्षण और अनुकूलन के महत्व पर चर्चा की। इसमें UNGA के चीफ ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC में बदलाव को लेकर एक अहम और बड़ा बदलाव बयान दे दिया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य ने यूक्रेन पर हमला किया और सुरक्षा परिषद स्थिति से निपटने में नाकाम रही। इससे स्पष्ट होता है कि यह वैश्विक निकाय बेकार हो गया है। राजनयिकों और रणनीतिक विशेषज्ञों के एक समूह को संबोधित करते हुए कोरोसी ने कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता है ताकि यह वैश्विक शक्तियों के बदलते संतुलन को परिलक्षित कर सके और विभिन्न देशों में वित्तीय संकट का मुकाबला कर सके।

साबा कोरोसी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लेकर कहा है कि सुरक्षा परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने और युद्धों को रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन अब वह पंगु हो चुकी है। सुरक्षा परिषद को आक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने वाला निकाय होना चाहिए। साबा कोरोसी ने यह भी कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार आवश्यक है और उसके शुरुआत भी UNGA के माध्यम से ही होगी। इस दौरान उन्होंने भारत के भी संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य बनने की बात कही। अब कोरोसी का यह बयान चीन के लिहाज से बेहद खतरनाक साबित होने वाला है, वो कैसे? चलिए बताते हैं।

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UNSC and India- सुधार की कोशिशें 

भारत लंबे वक्त से यह बोलता आ रहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में बड़े संशोधनों की आवश्यकता है क्योंकि संगठन की प्रासंगिकता समाप्त हो रही है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ये कह चुके हैं कि 77 साल पहले बनी UNSC जैसी संस्था में अहम बदलाव होने चाहिए वरना यह केवल एक खंडहर जैसा संगठन साबित होगा। एस जयशंकर ने इस बयान के माध्यम से मुख्य निशाना चीन पर साधा था क्योंकि चीन ही एक ऐसा देश हैं जो कि हर चीज में अपनी टांग अड़ाता रहता है। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई सीट को लेकर भी चीन विरोध करता आया है।

UNSC के स्थाई सदस्यों के पास वीटो की पावर होती है। 5 स्थाई सदस्यों में से किसी एक देश ने भी यदि किसी प्रस्ताव का विरोध कर देता है तो वो प्रस्ताव सीधे कूड़ेदान में चला जाता है। अहम यह है कि स्थाई सदस्यों में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन शामिल हैं। चीन को छोड़कर सभी सदस्य भारत (UNSC and India) का स्वागत करने के लिए उत्साहित हैं लेकिन चीन अपनी वीटो पावर का उपयोग भारत के विरुद्ध कर देता है और स्थायी सदस्य बनने से रोक देता है। हालांकि अब संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के अध्यक्ष ने साबा कोरोसी ने संकेत दिया है कि शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र में बदलाव होते दिखेंगे, जो देखा जाये तो भारत के हित में हो सकते हैं।

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व्यापार होगा अहम बिंदु

देखा जाये तो UNSC में भारत की स्थायी सीट के लिए एकमात्र समस्या चीन ही है। ऐसे में यह भारत के लिए आवश्यक हो जाता है कि वो साम दाम दंड या भेद, कुछ भी करके चीन को सही रास्ते पर ले आये। इसके लिए सबसे अहम बिंदु ट्रेड यानी व्यापार ही होगा। आज पूरी दुनिया डिमांड और सप्लाई के खेल पर चलती है। चीन जहां कोरोना की त्रासदी के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग का हब बनकर बैठा है। हालांकि उसके लिए सबसे बड़ा बाजार भारत ही है। अब इसके जरिए भारत, चीन पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है।

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार जिस प्रकार से आत्मनिर्भर भारत अभियान को तेजी से आगे बढ़ा रही है उसका प्रभाव चीन पर पड़ ही रहा है। रक्षा से लेकर स्टील और स्मार्टफोन से लेकर तकनीकी सामान तक में भारत का निर्यात बढ़ रहा है। आज भारत न केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरी कर रहा है, साथ ही अन्य देशों को भारत में निर्मित सामान निर्यात भी कर रहा है। भारत से मिलने वाली इस प्रतिस्पर्धा से चीन के लिए समस्याएं खड़ी हो सकती हैं क्योंकि चीन चाहे किसी भी सामान की क्वांटिटी भले ही बढ़ा ले लेकिन उसकी क्वालिटी यानी गुणवत्ता के कारण तो पूरी दुनिया का उस पर से भरोसा उठ ही रहा है।

ऐसे में भारत (UNSC and India) यह दबाव बना सकता है कि चीन UNSC में भारत का समर्थन करें अन्यथा उसके लिए ट्रेड यानी भारत में आयात पर समस्याएं और बढ़ सकती हैं। इसके अतिरिक्त भारत की ताकत भी वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है। भारत का कद वैश्विक स्तर पर विराट होता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि अमेरिका जिस रूस से व्यापार करने पर देशों को बैन करने की धमकी देता है, भारत उसी रूस के साथ तेल खरीद लेता है।

चीन अब भारत की यह ताकत समझ चुका है, जिसके चलते चीन के पास दो ही विकल्प हैं या तो भारत से टकराव लेकर आर्थिक स्तर पर अपनी बर्बादी की आधारशिला रखें या फिर भारत का सहयोग कर वैश्विक स्तर पर एशिया की धाक जमाने में भागीदार बने। चीन के लिए दूसरा विकल्प चुनना ही बेहतर रहेगा।

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