एक क्राइम सिंडीकेट है, जिसकी पूछ समस्त संसार में है। अब सिंडीकेट ऐसा है, तो उसका आका भी कोई ऐसा वैसा तो कतई नहीं होगा। वह भी कोई धूर्त, क्रूर व्यक्ति होगा, जिसके एक निर्देश पर संसार के किसी भी कोने में त्राहिमाम मचाया जा सकता है। ऐसे में वह व्यक्ति किसी से स्वयं तो नहीं भिड़ेगा, अपने मातहतों को ही उसका “काम तमाम” करने को कहेगा। परंतु यदि उसे स्वयं अखाड़े में आना पड़े, तो?
ऐसा दो ही अवसरों पर हो सकता है: या तो वह सरगना इतना मंदबुद्धि है कि उसे किसी पर विश्वास नहीं या फिर सामने वाला शख्स इतना प्रभावशाली है कि सरगना के मैदान में आए बिना उसका काम नहीं चलने वाला, जॉर्ज सोरोस के साथ इस समय यही हो रहा है।
इस लेख में आप पढ़ेंगे कि कैसे जॉर्ज सोरोस भारत के बढ़ते प्रभुत्व के कारण अपने बिल से बाहर आने को विवश हो गया है।
जॉर्ज सोरोस की वास्तविकता
जॉर्ज ऑरवेल की बहुचर्चित पुस्तक “1984” पढ़ी है? यदि नहीं, तो अविलंब पढिए। इसमें एक ऐसी संस्था के बारे में बताया जाता है, जिसमें लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई स्थान नहीं है और सब कुछ “बिग ब्रदर” के इशारों पर होता है।
बिग ब्रदर का कोई रुप नहीं है लेकिन प्रशासन उसे अपना “माई बाप” मानता है। वर्तमान में एक ऐसी ही व्यवस्था अमेरिका में रूप ले रही है, जिसका सरगना जॉर्ज सोरोस है। जॉर्ज के जीवन का एक ही उद्देश्य है- विश्व से राष्ट्रप्रेम और वास्तविक लोकतंत्र को सदैव के लिए समाप्त करना।
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सुनने में यह आपको फिल्मी प्रतीत हो सकता है, लेकिन है नहीं। यदि आज अमेरिका भ्रष्टाचार और कुशासन से आर्तनाद कर रहा है, तो उसके पीछे इसी व्यक्ति का हाथ है। अमेरिका का दुर्भाग्य ये है कि जॉर्ज सोरोस अमेरिका के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक है।
कहने को यह Open Society Foundation के नाम से एक सेवा संस्थान चलाता है, जिसके माध्यम से वह संसार को स्वच्छ, लोकतान्त्रिक एवं सशक्त बनाने की बातें करता है, परंतु वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है।
यदि आप द वायर से से तंग हैं, आकाश बैनर्जी एवं ध्रुव राठी जैसे निखट्टुओं की बकवास से परेशान और BBC के निरंतर भारत विरोधी सामग्री परोसने से आपका रक्त उबलता है, तो आपको यह अवश्य जानना चाहिए कि इन सभी के पीछे इसी जॉर्ज सोरोस का हाथ होने की संभावना भी एक तथ्य है। जॉर्ज सोरोस ने लगभग 1 बिलियन डॉलर का कथित दान इसीलिए किया है ताकि भारत में बढ़ती कथित “राष्ट्रवाद की महामारी” को रोका जा सके।
भारत की तरक्की से बौखलाए वामपंथी
तो फिर ऐसा क्या हुआ, जिसके कारण विश्व को अपनी मुठ्ठी में करने चला ये सरगना भारत की प्रगति से बौखला रहा है? हाल ही में महोदय ने जर्मनी के म्यूनिख टेक्निकल विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान दिया। जहां महोदय इस बात पर आक्रोशित थे कि कोई अडानी-हिंडनबर्ग विवाद को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा?
इन महोदय की हताशा यहीं नहीं रुकी बल्कि जॉर्ज सोरोस को समस्या इस बात से भी है कि आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैश्विक समुदाय से इतना सम्मान क्यों मिलता है? आप स्वयं ही सुन लीजिए-
#MUSTWATCH
KNOW YOUR ENEMIES. Here, mastermind himself.If there is no George Soros, many #UrbanNaxals in India will die of unemployment and hunger. pic.twitter.com/Cl0OVg45vM
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) February 17, 2023
जी हाँ, इनके अनुसार गौतम अडानी की प्रगति से “भारतीय लोकतंत्र को खतरा है”, एवं उसकी हार में ही “लोकतंत्र की जीत है”। इतना ही नहीं, महोदय ने ये तक कह दिया कि मोदी और अडानी का भाग्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है।
वामपंथियों के आका सोरोस का इशारा कथित रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट की ओर था, जिसके द्वारा वैश्विक वामपंथी गिरोह ने भारत विरोधी षड्यंत्र रचा था और उनके षड्यंत्र को पानी देने का काम भारत की विपक्षी पार्टियों ने रिपोर्ट पर हंगामा मचाकर किया।
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वैश्विक वामपंथियों का भारत विरोधी हिंडनबर्ग षड्यंत्र जब फ्लॉप हो गया तभी तो उनका आका आकर हताशापूर्ण बयानबाजी कर रहा है, तभी तो सोरोसे ने बच्चों की तरह कहा कि मोदी विश्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हैं।
जॉर्ज सोरोस ने कहा, “राष्ट्रवाद, जो अब बहुत आगे निकल गया है। सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका भारत को लगा है, क्योंकि वहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं।”
उसने पीएम मोदी पर यहाँ तक आरोप लगाया कि वो कश्मीर में सख्ती कर रहे हैं, और वो लाखों नागरिकों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की धमकी दे रहे हैं। इनके अनुसार मुस्लिम विरोधी हिंसा से मोदी की “लोकप्रियता में अप्रत्याशित उछाल” आया है, जो लोकतंत्र के लिए बेहद हानिकारक है।
इन्हीं अरबपति जॉर्ज सोरोस ने वर्ष 2020 में एक वैश्विक विश्वविद्यालय की शुरूआत करने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने की बात कही थी। उसने कहा था कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना “राष्ट्रवादियों से लड़ने” के लिए की जाएगी।
सोरोस ने “अधिनायकवादी सरकारों” और जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए खतरा बताया था। सोरोस की इसी विचारधारा का भारत में अनेक वामपंथी जोर-शोर से प्रचार करते हैं और इसी विचारधारा के आधार पर सोरोस समर्थित संस्थाओं ने अमेरिका में ट्रंप के विरुद्ध माहौल बनाकर उन्हें सत्ता से बाहर करवाया।
अब बड़ा प्रश्न यह है कि आखिरकार वामपंथियों के आका को भारत विरोधी बयानबाजी के लिए स्वयं क्यों आगे आना पड़ा?
इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है कि भारत इस समय संसार के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रों में से एक है। जिसके सामने सोरोस के प्रिय राष्ट्र चीन की तो छोड़िए, अमेरिका तक की नहीं चलती। रूस-यूक्रेन युद्ध में जिस दृढ़ता से भारत ने हर हमले का प्रतिकार किया और अमेरिका की आँख में आँख डालकर बोला कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए ही निर्णय करेगा- किसी के दबाव में नहीं, उससे जॉर्ज सोरोस समेत भारत का अहित चाहने वाले लगभग सभी दल और संगठन बौखलाए हुए हैं।
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वामपंथियों का सबसे बड़ा दुख
दूसरी तरफ वामपंथी और वापमंथियों के आकाओं का सबसे बड़ा दुख यह है कि मोदी ने जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 को कैसे हटा दिया? हटा दिया तो हटा दिया लेकिन वैश्विक बिरादरी ने इसके विरुद्ध एक भी शब्द क्यों नहीं बोला?
वैश्विक बिरादरी ने नहीं बोला, ठीक है लेकिन जम्मू और कश्मीर में इतनी शांति कैसे है? भारत के इन निर्णयों और उन्हें लागू करने के तरीकों को देख-देखकर भारत विरोधियों की नींद हराम हो गई है।
अब जॉर्ज सोरोस की धमकियाँ भारत में भी अनसुनी नहीं गई हैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने सोरोस की निंदा करते हुए कहा है कि जॉर्ज सोरोस भारत के लोकतान्त्रिक अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं और यह स्वीकार्य नहीं होगा।
हम तो कहेंगे कि भारत को जॉर्ज सोरोस जैसों की बयानबाजी पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देनी चाहिए क्योंकि इन लोगों के सत्य से भारत समेत पूरा विश्व परिचित है, ऐसे में यह कुछ भी कहते रहें- लोग इनकी बातों के पीछे के एजेंडे को पहले ही समझ जाते हैं।
बाकी, भारत की प्रगति से जॉर्ज सोरोस जैसे भयभीत हो रहे हैं और खुले में आकर भारत विरोधी राग अलापते हुए बिलबिला रहे हैं- ये डर बहुत अच्छा है और डर बना रहना चाहिए।
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