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Satya Katha : सत्य सम्पूर्ण कथा हिंदी में

Trending News Team द्वारा Trending News Team
7 February 2023
in मुझे हिंदी में खबर बताओ
satya katha
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Satya Katha सत्य सम्पूर्ण कथा हिंदी में

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Satya Katha साथ ही इससे जुड़े सम्पूर्ण  के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

एक राज्य में वीरभद्र नाम का एक डाकू रहता था। वह बड़ी ही क्रूर प्रकृति का था। डाका डालते समय उसके आगे बूढ़ा-बच्चा, स्त्री-पुरुष जो आता वह उसकी निर्मम हत्या करने में नहीं चूकता था। इसलिए उसका आतंक दूर-दूर तक फैल गया। वहाँ के राजा ने कई बार उसे पकड़ने की चेष्ठा की, पर असफल रहा। इस वजह से भी उस डाकू का साहस बढ़ता गया।भले ही उसमें बहुत से दुर्गुण थे पर एक गुण यह था कि अपने द्वार पर आये हुए अतिथि का सत्कार कर उसकी सेवा करके उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करता था। इसके आलावा वह अपंग ओर निर्घन लोगों की समय-समय पर सहायता करता था।उनके प्रति उसका सहंदयपूर्ण व्यवहार देख कर सवको आश्चर्य होता की जो वीरभद्र डाका डालते समय, क्रूर हो उठता है वह अतिथि पर दयावान और विनीत कैसे हो जात्ता है ?एक दिन उस नगरी में पुरी, बदरिका आश्रम, द्वारिका और रामेश्वर इन चारों घामों की यात्रा करके एक साधु आये। रात होने वाली थी, इसलिये उन्होंने सोचा कि आज की रात किसी ब्राह्मण के यहाँ काटी जाय।

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वे एक गरीब, ब्राह्मण के घर पर गये और रात भर वहाँ रुकने के लिये कहा। ब्राह्मण यह सुनंकर बहुत प्रसन्न हुआ और अन्दर जाकर, अपनी पत्नी से साधु को भोजन कराने की बात कही तो उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।  satya katha

ब्राह्मणी ने गद्गद् स्वर में, कहा, हम बड़े अभागे हैं कि द्वार पर आये हुये अतिथि को एक जून पेट भर भोजन नहीं करा सकते ! इस समय .केवल दो रोटियाँ बची हुई हैं, जिन्हें मैंने बच्चों के लिए रख दिया है। बच्चे आज भूखे रह सकते हैं। हमें साधु की भोजन कराकर धर्म की रक्षा करनी चाहिये।

साधु ने पति-पत्नी की बात सुनकर सोचा कि इस-अन्न को खाने से पाप लगेगा। यहाँ ठहरना उचित नहीं है। ब्राह्मण हाथ-पाँव धोने के लिये बड़े लोटे में जल भर कर लाया तो साधु मे उससे कहा, बच्चा, मैने तुम लोगों की बातें सुन ली हैं। बच्चे भगवान के अवतार होते है। उनका हिस्सा मैं कैसे खा सकता हूँ! तुम यह बताओ कि आस-पास कोई धनी व्यक्ति रहता है ?  satya katha

ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर कहा महाराज, यहाँ मोहल्ले में सबसे धनी व्यक्ति वीरभद्र नामक डाकू है। लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं ?साधु तत्काल बोले, बेटा मैंने निश्चय किया है कि आज उसी के यहाँ रहूँगा। यह बात सुनकर ब्राह्मण ने विनती की, आपका उसके यहाँ जाना उचित नहीं। उसके सिर सैकड़ों हत्या का पाप चढ़ा है। इसीलिये वह बहुत दान-पुण्य करता है। आप रात्रि भर यहाँ रहें ओर रूखा सूखा भोजन खाकर विश्वाम करें। यह हमारा धन्य भाग है कि हमें आपकी सेवा करने का अवसर मिला है।

लेकिन साधु रुका नहीं और अपना कमंडल उठाते हुये उसने कहा, मैं .फिर कभी – तुम्हारे यहाँ- अवश्य आऊँगा । मैं तुम्हारे आतिथ्य से सतुष्ट हूँ। यह कहकर साधु उसे आशीर्वाद देकर चला गयासाधु कुछ देर बाद वीरभद्र की ऊँची अट्टालिका पर पहुँचा और दरवान से बोला, बेटां, अपने मालिक से जाकर कह दो कि एक साधु द्वार पर बैठा हुआ उनको प्रतीक्षा कर रहा है। satya katha

वीरभद्र के यहाँ आज तक कोई साधु-सन्त नहीं टिका था। वे उससे दूर रहते और उसकी दान-दक्षिणा स्वीकार नहीं करते थे। उसने मन में सोचा कि हो-न-हो कोई भेदिया साधु के वेष में आया है। द्वार पर पहुँचा तो साधु ने उसकी मंगल-कामन करते हुये रात भर ठहरने की स्वीकृत मांगी। डाकू ने उसने प्रसन होकर रहने तथा खाने की व्यवस्था कर दी।कुछ देर के बाद वह साधु के कमरे में आया और हाथ जोड़ कर बोला, आपने मेरी कुटिया को अपने सत्संग से कृतार्य कर दिया, अब कृपया भोजन करें।उसकी बात सुनकर साधु बोला, बेटा, में किसी के यहाँ भोजन तभी करता हूँ जब पहले मुझे मन चाही दक्षिणा मिल जाती है।

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वीरभद्र ने सोचा कि साधु महात्मा अधिक-से-अधिक कमंडल, लंगोटी, आध पाव गांजा और एक कम्बल ही तो माँगेंगे। अतः उसने कहा, महाराज, आप जो भी दक्षिणा कहेंगे मिल जाएगी। वीरभद्र के यहाँ से आज तक कोई असन्तुष्ट होकर नही लौटा है।

साधु ने मुस्कराकर कहा, मेरे लिये भोजन से अधिक दक्षिणा का महत्व होता है।डाकूं बोला, महाराज, आप अतिथि और फिर सन्त है, आप जो चाहे मांग लें, उसके बाद चलकर भोजन करें।साधु ने कहा, बेटा, पहले वचन दो कि जो कुछ मागूगा वही दोगे ?

वीरभंद्र छाती फुलांकर बोला, मैंने आज तक कभी अतिथि से झूठा वायदा नहीं किया है। आप जो माँगेंगे वह मैं आपकी सेवा में उपस्थित कर दूँगा।इस आश्वासन को पाकर साधु सरलता से बोला, वीरभद्र,पहले वचन दो कि आज से कभी झूठ नहीं बोलोगे। यह मेरी दक्षिणा है।साधु की बात सुनकर डाकू ने सोचा कि यह संत कितना मूर्ख है। यह चाहता तो आज मेरी पूरी सम्पत्ति माँग लेता, पर उसने माँगी भी तो क्या चीज ? उसने गंभीरता से कहा, महाराज, आपकी बात स्वीकार है। आज से कभी झूठ नहीं बोलूंगा।इसके बाद साधु ने जाकर भोजन किया और रात्रि भर विश्राम करने के बाद सुबह को अपनी राह चल दिया।

अब वीरभद्र साधु को दिये वचन के अनुसार सच बोलने लगा। लेकिन इसके कारण उसका डाका डालना बन्द हो गया।कुछ महीनों के बाद उसकी संचित पूँजी समाप्त हो गई तो वह बहुत चिन्तित हुआ।उसके साथियों ने भी धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ दिया ओर अपना नया गिरोह बना लिया। वे उसको साधु का चेला कहते मखौल उड़ाते।इस भाँति वीरभद्र का जीवन ही बदल गया। अब कोई आय न होने के कारण वह बहुत चिन्तित रहने लगा।एक दिन उसने अपनी परिस्थिति पर विचार कर सोचा कि उसने साधू से सच बोलने के लिये कहा है। यह वचन नहीं दिया था कि डाका नहीं डालेगा। अतः क्यों न फिर से डाका डाला जाय।बड़ी देर तक सोचने-विचारने के बाद उसने निश्चय किया कि डाका डालकर कुछ धन एकत्र कर लिया जाय।उसने पहले के डाके में लूटी हुई एक राजा की पोशाक निकाल कर पहन ली। संध्या को घोड़े पर सवार हुआ और मध्य रात्रि को राजधानी जाकर राजमहल में पहुँचा।बड़े फाटक के पास एक खूंटी पर घोड़ा बाँध कर उसने पहरेदारों से फाटक खोलने के लिए कहा। उन लोगों मे पूछा, आप कौन है?उसने मुस्कराकर उत्तर दिया, मैं एक डाकू हूँ और यहाँ चोरी करने के लिए आया हूँ।यहाँ का राजा बहुधा रात्रि को नगर में जाकर वहाँ के हाल-चाल का पता लगाया करता था। द्वारवाल राजसी पोशाक देखकर समझे कि महाराज उनकी परीक्षा ले रहे है।

चुपचाप उसे भीतर जाने दिया। उन्होंने यह भी सोचा कि चोर इस भाँति निडर होकर अपना प्रचार कभी नहीं करता है। इस भाँति वीरभद् अन्दर गया और कुछ बहुमूल्य मणि तथा नौलखा हार लेकर बाहर आ गया। उसके बाहर चले आने पर भी पहरेदारो ने कोई अड़चन नही डाली।

प्रातः काल जब राजा उठे तो उनको ज्ञात हुआ कि रात्रि को महल मे चोरी हुई है। राजा ने द्वारपालों को बुलवा कर पूछा कि कल रात्रि को महल के भीतर कौन-कौन लोग आये थे।

काठ का उड़न घोड़ा द्वारपालों ने उत्तर दिया, महाराज ! एक व्यक्ति आपके ही समान पोशाक पहने हुए यहाँ आया। वह कहता था कि चोर हैं। हम समझे आप भेष बदल कर हमारी परीक्षा ले रहे हैं। फिर कोई व्यक्ति चोरी करने की नियत से आयेगा तो वह क्यों अपने मन की बात बतावेगा। इसीलिये हम लोगों ने उस व्यक्ति को आने-जाने में नहीं रोका।

राजा को द्वारपालों की बात सुनकर बहुत अचरच हुआ।बड़ी देर तक वे चिन्तित रहे। फिर कुछ निश्चय करके मंत्री को बुलवाया। उनके आने पर आदेश दिया कि राज्य भर में डुग्गी पिटवा दें कि राजा उस साहसी व्यक्ति से मिलना चाहते हैं, जिसने अपने आपको चोर बतला कर राजमहल में चतुराई के साथ चोरी की है।मंत्री ने उनकी आज्ञा का पालन करके चारों ओर डुग्गी पिटवा दी। राजधानी तथा अन्य नगरों में इस समाचार से बहुत हलचल हुई और लोग उस व्यक्ति को देखने के लिये ललायित हो उठे।

वीरभद् ने राजा की घोषणा सुनी तो उसने वही राजसी पोषक निकाल कर पहनी और राजा के दरबार में सम्मिलित होने के लिये रवाना हो गया।राजमहल में पहुंच कर अपने आने की सूचना दी।राजा ने तुरन्त ही उसे सम्मानपूर्वक दरबार में लाने को आज्ञा दे दी। वीरभद्र वहाँ पहुचा और उसने राजा का अभिवादन किया।महाराज उसे देख कर दंग रह गये और क्रोधित होकर पूछा कि वह वहाँ क्यों आया है उसकी सच्चाई पर मुग्घ हो गया ! वीरभद् ने पूरी कथा सुनाई और साधु वाली घटना विस्तार से बतायी। ने राजा की बातें सुनकर उनसे निवेदन किया कि आगे वह एक ईमानदार नागरिक की भाँति जीवन व्यतीत करेगा

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