वो वास्तविक कहानी जिससे प्रेरित है रानी मुखर्जी की “मिसेज चटर्जी बनाम नॉर्वे”

नॉर्वे के ऊपर कंलक है यह सच्ची कहानी!

The Bhattacharya case that inspired “Mrs. Chatterjee vs Norway

Source: Economic Times

रानी मुखर्जी की एक फिल्म आ रही है, “मिसेज चटर्जी वर्सेज़ नॉर्वे”। यह फिल्म वास्तविक घटना पर आधारित है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नॉर्वे में भारतीय महिला से नॉर्वे की सरकार उनके बच्चों को अलग कर देती है।

नॉर्वे की सरकार आरोप लगाती है कि भारतीय महिला अपने बच्चों को जर्बदस्ती खाना खिलाती है- अपने पास सुलाती है- बच्चों को अच्छे कपड़े नहीं पहनाती है और एक बार तो थप्पड़ भी मार दिया था। बस, इसीलिए भारतीय महिला से उसके बच्चों को छीनकर दूर कर दिया जाता है। महिला लंबी कानूनी लड़ाई लड़ती है और अपने बच्चों को वापस पा लेती है। यही इस फिल्म में दिखाया गया है।

क्या है वास्तविक कहानी?

यह फिल्म भारतीय दंपत्ति अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के साथ नॉर्वे में जो कुछ वास्तव में घटित हुआ, उसी पर आधारित है। वर्ष 2011 में नॉर्वे की चाइल्स वेलफेयर सर्विसेज ने अनुरूप और सागरिकता के दोनों बच्चों अभिज्ञान और ऐश्वर्या को बच्चों की देखभाल संबंधी विभाग में भेज दिया था।

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दंपत्ति के ऊपर आरोप थे उनके पास बच्चों के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। उनके पास बच्चों को लिए अच्छे कपड़े और खिलौने नहीं थे। नॉर्वे की सरकार ने तय किया था कि दोनों बच्चों को 18 वर्ष तक देखभाल संबंधी विभाग में रखा जाएगा। इस दौरान भारतीय माता-पिता को उनके बच्चों से मिलने तक की अनुमति नहीं दी गई। 10 वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद सागरिका ने अपने बच्चों को वापस पाया।

यह फिल्म इसी कहानी पर आधारित है। इस सच्चे वाकये से एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि पश्चिमी देश भारतीय संस्कृति को ना ही समझते हैं और ना ही समझने का प्रयास करते हैं- इसके स्थान पर वो भारतीय संस्कृति को घृणा की दृष्टि से देखते हैं।

उन्हें नहीं पता कि भारत में माता-पिता अपने छोटे बच्चों को हाथ से ही खाने खिलाते हैं और यह किसी भी तरह गलत या फिर अमानवीय नहीं है बल्कि बच्चों के लिए माता-पिता का प्यार है।

जहां तक बच्चों को साथ सुलाने की बात रही तो पश्चिमी देशों यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि एक भारतीय परिवार किस तरह से आपस में जुड़ा होता है। छोटे बच्चों को तो छोड़िए भारत में कई बार बड़े बच्चे भी अपने मां-बाप के साथ सोते हैं- इसमें ग़लत क्या है? इसमें बच्चों के लिए ख़तरा कहां से आ गया? लेकिन दूसरे देशों की संस्कृति को घृष्णा की दृष्टि से देखने के कारण पश्चिमी देशों को यह कभी भी समझ नहीं आएगा।

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