हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद जॉर्ज सोरोस का सक्रिय होना संयोग नहीं है

समझिए कैसे?

जॉर्ज सोरोस

Source: TFI MEDIA

“चोट लगी है उसे पर क्यों महसूस मुझे हो रहा,

दिल तो बता दें कि क्या है इरादा तेरा!”

गीतकार ने इन पंक्तियों को लिखा तो प्रेम भाव से था, लेकिन उसे क्या पता था कि एक दिन इनका भावार्थ ही बदल जाएगा, जिसमें एक अलग ही दर्शन देखने को मिलेगा। उक्त शब्दों का अर्थ यह भी हो सकता है कि किसी पर हुई कार्रवाई से कोई और बिलबिला रहा है और हताशा में आकर उसने अपना भी भांडाफोड़ लिया। जॉर्ज सोरोस इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

इस लेख में पढ़िए कि कैसे हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और जॉर्ज सोरोस का विलाप संयोग नहीं है।

जॉर्ज सोरोस का विलाप

कुछ दिनों पूर्व जॉर्ज सोरोस ने जर्मनी के म्यूनिख टेक्निकल विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान दिया। इस दौरान महोदय इस बात पर आक्रोशित थे कि कोई अडानी-हिंडनबर्ग विवाद को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा?

इन महोदय की हताशा यहीं नहीं रुकी बल्कि इन्हें समस्या यह भी है कि आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैश्विक समुदाय से इतना सम्मान क्यों मिलता है? इनके अनुसार गौतम अडानी की प्रगति से “भारतीय लोकतंत्र को खतरा है”, एवं उसकी हार में ही “लोकतंत्र की जीत है”। इतना ही नहीं, महोदय ने ये तक कह दिया कि मोदी और अडानी का भाग्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है।

और पढ़ें: वामपंथियों के सरगना जॉर्ज सोरोस मोदी विरोध में उल्टियां क्यों कर रहे हैं?

वामपंथियों के आका सोरोस का इशारा कथित रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट की ओर था, जिसके द्वारा वैश्विक वामपंथी गिरोह ने भारत विरोधी षड्यंत्र रचा था और उनके षड्यंत्र को पानी देने का काम भारत की विपक्षी पार्टियों ने रिपोर्ट पर हंगामा मचाकर किया।

अब बड़ा प्रश्न यह है कि आखिरकार वामपंथियों के आका को भारत विरोधी बयानबाजी के लिए स्वयं क्यों आगे आना पड़ा?

इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है कि भारत इस समय संसार के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रों में से एक है। जिसके सामने सोरोस के प्रिय राष्ट्र चीन की तो छोड़िए, अमेरिका तक की नहीं चलती।

रूस-यूक्रेन युद्ध में जिस दृढ़ता से भारत ने हर हमले का प्रतिकार किया और अमेरिका की आँख में आँख डालकर बोला कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए ही निर्णय करेगा- किसी के दबाव में नहीं, उससे जॉर्ज सोरोस समेत भारत का अहित चाहने वाले लगभग सभी दल और संगठन बौखलाए हुए हैं।

षड्यंत्रकारी जॉर्ज सोरोस

इसीलिए कुछ विश्लेषकों का मानना है कि जॉर्ज सोरोस भारत के विरुद्ध अपना सब कुछ दांव पर लगाने को है, वो भी आर्थिक दृष्टिकोण से। अब अर्थव्यवस्था पे असर पड़ेगा, तो राजनीति तक बात तो आएगी न।

और पढ़ें: हर्ष मंदर पर ED का छापा क्यों जॉर्ज सोरोस के लिए एक बड़ा झटका है?

वो कैसे? जॉर्ज सोरोस की बातों पर अगर ध्यान दें, तो उनका आशय स्पष्ट था, “मोदी और अडानी की पराजय में उसकी विजय है।” इस व्यक्ति का आधे से अधिक जीवन केवल दुनिया भर में उपद्रवियों को बढ़ावा देने में ही बीता है। यहूदी होकर भी इसने नाज़ी जर्मनी के अत्याचारियों का साथ दिया और इसे यह स्वीकार करने में कोई पश्चात्ताप या ग्लानि भी नहीं होती।

ये व्यक्ति कितना शातिर है, इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हो कि इसने कैसे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया था। 1992 में इसने ब्रिटेन की पाउंड व्यवस्था पर हमला किया और एक सुनियोजित षड्यन्त्र के अंतर्गत ये प्रचार कराया कि पौंड का मूल्य आवश्यकता से अधिक था, क्योंकि वह वैश्विक मुद्रा व्यवस्था के अनुकूल नहीं था। फिर क्या था, जॉर्ज सोरोस के एक इशारे पर पाउन्ड इतनी तेजी से गिरा, जितना वैश्विक अर्थव्यवस्था 1929 की ऐतिहासिक मंदी में भी नहीं गिरी होगी।

अब इससे सोरोस को फायदा क्या हुआ? ब्रिटेन में त्राहिमाम मच गया और सोरोस ने 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का मुनाफा कमाया। इसने यही मॉडल एशिया के अनेक अर्थव्यवस्थाओं पर अपनाया और खूब लाभ कमाया। मतलब दूसरों की त्रासदी में अपने लिए लाभ ढूँढने वाला व्यक्ति है जॉर्ज सोरोस, जिसका बस चले तो अपना घर फूँक कर ब्रेक डांस भी कर ले, वो अलग बात है कि अब जनाब 92 वर्ष के आसपास हैं।

दोनों का एक ही उद्देश्य

तो इसका हिंडनबर्ग से क्या वास्ता? हिंडनबर्ग अमेरिका की इनवेस्टमेंट रिसर्च कंपनी है। 2017 में इसे ‘नाथन एंडरसन’ नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति ने स्थापित किया था। इस कंपनी का मुख्य काम शेयर मार्केट, इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव्स पर रिसर्च करना है यानी कि शेयर मार्केट में कंपनियां पैसों की हेरा-फेरी तो नहीं कर रही हैं या फिर बड़ी कंपनियां अपने फायदे के लिए अकाउंट मिसमैनेजमेंट तो नहीं कर रही हैं। लेकिन इनवेस्टमेंट रिसर्च करने के साथ-साथ यह एक शार्ट-शेलर कंपनी भी है जोकि शेयर मार्केट में अलग-अलग कंपनियों के शेयर खरीदती और बेचती है और उससे मुनाफा कमाती है।

हिंडनबर्ग (Hindenburg report) ने अडानी ग्रुप को लेकर यह रिपोर्ट जारी क्यों की इसे समझने के लिए सबसे पहले ‘लॉन्ग पोजिशन’ और ‘शॉर्ट पोजिशन’ जैसे शब्दों को समझना बेहद जरूरी है। दरअसल, शेयर मार्केट में कंपनी के शेयरों को दो तरीके से खरीदा व बेचा जाता है जिसमें पहला है ‘लॉन्ग पोजिशन’ और दूसरा है ‘शॉर्ट पोजिशन’।

उदाहरण के लिए किसी कंपनी या व्यक्ति ने शेयर मार्केट में 100 रुपये में किसी कंपनी के शेयर खरीदे और 150 रुपये में बेच दिए। ऐसे में उसे 50 रुपये का लाभ हुआ। इस तरह इसे लॉन्ग पोजिशन कहते हैं।

और पढ़ें: अमेरिका से ब्रिटेन तक: डोभाल ने सूचना युद्ध के विरुद्ध अंतिम लड़ाई का शंखनाद कर दिया है

अब कल्पना कीजिए कि यही व्यापार कंपनियों या किसी औद्योगिक समूह के विरुद्ध न करके अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को लपेटे में लेते हुए की जाए, तो? यही काम है जॉर्ज सोरोस का, जिनके लिए अराजकता टॉनिक समान है, चाहे खुद के देश में हो, या फिर किसी अन्य देश में।

वह तो भला मानिए कि भारत का रुपये पूरी तरह से कन्वर्टिबल नहीं है, अन्यथा जो त्राहिमाम इंग्लैंड में 90 के दशक में मचा था, उससे कहीं भीषण आर्थिक नुकसान जॉर्ज सोरोस भारत का करते। इसकी ओर हाल ही में बातों ही बातों में एस जयशंकर ने संकेत भी दिया था। जयशंकर ने जॉर्ज सोरोस को लेकर क्या कहा था- आप स्वयं सुन लीजिए।

ऐसे में एक बात निश्चित है कि चाहे हिंडनबर्ग हो या फिर जॉर्ज सोरोस दोनों का उद्देश्य एक ही- अनिश्चितता फैलाकर- अराजकता फैलाकर- आरोप लगाकर- लाभ कमाना- शॉर्ट शैलिंग करना- ऐसे में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के तुरंत बाद जॉर्ज सोरोस का बाहर आकर भारत विरोधी बयानबाजी करना कोई संयोग नहीं बल्कि बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का एक षड्यंत्र अधिक प्रतीत होता है।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version