“वे भारतीय दवा उद्योग को बर्बाद करना चाहते हैं”, इसीलिए बार-बार बनाया जा रहा है निशाना

कोरोना काल के बाद ही ऐसा क्यों होने लगा?

"They want to destroy the Indian pharmaceutical industry", that's why it is being targeted again and again

SOURCE TFI

जब कमजोर समझे जाने वाले लोग तरक्की करने लगते हैं तो कुछ लोगों को कुछ अधिक ही तकलीफ होती है। भारत इस समय प्रत्येक मुद्दे पर एक अहम वैश्विक ताकत बनकर उभरा है। आर्थिक हो या कूटनीतिक सभी में भारत ने अमेरिका जैसे देशों को घुटनों पर लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसका नतीजा यह है कि भारत को बदनाम करने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें निशाना बनाया गया है भारतीय फार्मास्यूटिकल सेक्टर को… लेकिन कैसे चलिए इस पर प्रकाश डालते हैं।

भारतीय फार्मास्यूटिकल सेक्टर पर निशाना

दरअसल,  हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें यह दावा किया गया कि भारतीय आई ड्रॉप डालने से अमेरिका में लोग अंधे हो रहे हैं। इस मामले में अमेरिकी फूड एंड ड्रग प्रशासन (एफडीए) ने भारत में बने आई ड्रॉप के इस्तेमाल को लेकर आगाह किया है। एफडीए ने कहा कि भारतीय दवा कंपनी की आई ड्रॉप का इस्तेमाल करने से अमेरिका के एक दर्जन राज्यों में कम से कम 55 लोग प्रभावित हुए हैं। कुछ लोगों की आंखें संक्रमित हो गईं, रोशनी चली गई, जबकि एक की मौत भी हो गई है।

एक तरफ जैसे ही अमेरिका ने यह आदेश जारी किया वैसे ही भारत में चेन्नई स्थित कंपनी ने दवा का उत्पादन बंद कर दिया। अमेरिका ने एजरीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स आई ड्रॉप को इस्तेमाल नहीं लाने की सलाह दी है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल प्रिवेंशन (सीडीसी) चेन्नई स्थित ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर द्वारा बनाई गई एजरीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स आई ड्रॉप की बंद बोतलों का परीक्षण कर रहा है कि आखिर ये आई ड्रॉप इतने खतरनाक कैसे हैं। वहीं एफडीए ने कहा है कि वे इस दवा के आयात पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं।

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जांच अभी बाकी है

अहम बात यह है कि ये दवा भारत में नहीं बिकती है। यह एक कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिग प्लांट है जो दूसरों के जरिए अमेरिकी बाजार में सप्लाई करता है। यह दवा भारत में नहीं बिकती है। इस मुद्दे पर ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर ने एक बयान जारी कर कहा कि कंपनी संभावित बैक्टीरियल संक्रमण की वजह से एजरीकेयर, एलएलसी और डेलसम फार्मा की आर्टिफिशियल टीयर्स लुब्रिकेंट आई ड्रॉप्स को वापस ले रही है। जानकारी के मुताबिक अमेरिका में डॉक्टरों को स्यूडोमोनास एरुगिनोसा के एक प्रकोप के प्रति अलर्ट कर दिया गया है।

दवा कंपनी किस तरह से इस दवा को बना रही है और कैसे इसमें यह खतरनाक साबित हुई यह जांच और शोध का विषय है लेकिन इन सबसे पहले ही एक धड़ा ऐसा है जो कि इसे भारतीय कंपनी… भारतीय कंपनी… कहकर पेश कर रहा है। इन कथनों से ही साजिश की दुर्गन्ध आ रही है कि क्या यह भारतीय फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने की साजिश तो नहीं है क्योंकि पिछले कुछ समय से भारतीय दवा कंपनियों की दवाओं को लेकर एक अभियान सा चल पड़ा है।

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66 बच्चों की मौत का मामला

पिछले वर्ष अफ्रीकी देश गाम्बिया में 66 बच्चों की अचानक मौत हो गई थी. इसके बाद दावा किया गया था कि भारत में बने एक कफ सीरप को पीने की वजह से उन 66 बच्चों की मौत हुई है। इसको लेकर  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बयान जारी किया और लोगों को वो कफ सीरप न लेने की सलाह दी। भारत पर सवाल उठाए गए, और कफ सीरप बनाने वाली कंपनी मेडन फार्मा को कठघरे में खड़ा कर दिया गया।

इस दौरान भारत सरकार ने स्पष्ट तौर पर बयान दिया कि भारतीय कंपनी के कफ सीरप को पीने से मौत होना असंभव है। भारत सरकार ने कंपनी के एक प्रोडक्ट की क्वालिटी चेक करवाई लेकिन कुछ भी संदेहास्पद नहीं निकला। भारत सरकार ने इस मामले में मुखरता दिखाई तो भारत पर आरोप लगाने वाली गाम्बिया सरकार खुद अपने ही बयान से पलट गई और उसने खुद बयान बदल लिया और सामने आया कि वे सभी 66 बच्चे डायरिया और ई-कोलाई जैसी बीमारियों से त्रस्त थे।

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विदेशी मीडिया बना रहा मुद्दा

सत्य जाने बगैर विदेशी मीडिया ने कफ सीरप को कोसना शुरू कर दिया और निशाने पर भारत आ गया। अहम यह है कि विदेशी मीडिया की तरह भारतीय वामपंथी मीडिया भी इस मुद्दे पर भारत के ही खिलाफ खड़ा दिखने लगा जो कि बेहद ही आलोचनात्मक स्थिति है। उस दौरान भी एक ही बात कहकर विरोध किया जा रहा था,  भारतीय कंपनी… भारतीय कंपनी, जो कि सीधे तौर गलत था।

गाम्बिया में बच्चों की मौत के कांड के ही कुछ महीनों बाद भारत के एक और कफ सीरप को लेकर सवाल खड़े किए गए और यह आरोप लगाया गया कि भारतीय कफ सीरप पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की जान चली गई है। इसको लेकर भी काफी हो हल्ला मचा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको लेकर भी चेतावनी जारी की और लोगों को यह कफ सीरप उपयोग न करने की सलाह दी गई जिससे वैश्विक स्तर पर लोगों को इस कफ सीरप से भयभीत किए जाने के पूरे प्रयास किए गए। इस बार भी नरेटिव वही था, भारतीय कंपनी… भारतीय कंपनी।

उज्बेकिस्तान द्वारा यह दावा किया गया कि मरने वाले 18 बच्चों ने भारत के नोएडा स्थित मैरियन बायोटेक में बनी कफ सिरप डॉक-1 मैक्स का सेवन किया था। हालांकि, अभी इस मामले में जांच की जा रही है। अहम बात यह है कि इस कंपनी का सीरप भारतीय बाजार में नहीं बेचा जा रहा है। भारतीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने इस मुद्दे पर जांच के आदेश दिए हैं लेकिन रिपोर्ट अभी तक हमारे सामने नहीं आई हैं।

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भारतीय दवाओं से कुछ लोगों को परेशानी

त्रुटि की संभावनाएं प्रत्येक काम में हो सकती हैं लेकिन ऐसा अचानक क्या हुआ है कि अक्टूबर से लेकर अब तक लगातार भारतीय दवाओं से कुछ लोगों को परेशानी होने लगी। इससे पहले किसी भी ग्लोबल मार्केट ने यह शिकायत की ही नहीं कि भारतीय कंपनी की दवाएं खराब है। गाम्बिया का मुद्दा फेल साबित हुआ, उज्बेकिस्तान और अमेरिका के आईड्रॉप केस की भी जांच चल रही है लेकिन सवाल यह है कि अचानक ऐसा क्यों? इस सवाल के बीच हम पिछले कुछ वर्षों में भारत का फॉर्मास्यूटिकल सेक्टर को देखें तो वैश्विक ताकतों की चिढ़ने की वजह सामने आ जाती है।

भारत ने कोरोना के दौरान सबसे पहले सबसे बेहतरीन और असरदार वैक्सीनों को बनाया। जानकारी के मुताबिक 97 देशों ने वैक्सीन भारत से ही ली जो कि भारत के फॉर्मा सेक्टर के लिए एक बूम था। चीन और अमेरिका जैसे देशों में सबसे ज्यादा फार्मा का काम होता है और कोरोना काल में भारत ने न केवल इन दोनों देशों को टक्कर दी बल्कि उनसे आगे भी निकल गया और यह उन सभी के लिए एक झटका साबित हुआ। और तो और चीन में बनी वैक्सीन सवालों के घेरे में आ गईं।

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भारतीय फार्मा कंपनियों की दवाओं पर कभी कोई सवाल नहीं उठा सका। कोरोना में जब भारत सबसे आगे निकल गया तो फार्मा सेक्टर की वैश्विक कंपनियों और उनके देशों को भारत से दिक्कत हुई है। ऐसे में दवाएं खराब हैं या सही हैं यह तो जांच का विषय है लेकिन जांच से पहले ही भारतीय कंपनियों को बदनाम करने का एक दुष्प्रचार चलाया जा रहा है जो कि यह सवाल पुख्ता करता है कि क्या वैश्विक शक्तियों के निशाने पर भारत का फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर तो नहीं है?

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